हाइलाइट्स

  • पहला विश्व युद्ध ऑस्ट्रिया और सर्बिया के बीच शुरू हुआ था
  • जंग में सबसे ज्यादा नुकसान फ्रांस ने झेला था
  • वर्साय की संधि से फ्रांस ने जर्मनी से पुराना हिसाब चुकता किया
  • 1870-71 फ्रेंको-पर्शियन युद्ध का हर्जाना भी वसूला

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Treaty of Versailles: आज ही हुई थी इतिहास की सबसे बदनाम 'वर्साय की संधि', जर्मनी हो गया था बर्बाद!

प्रथम विश्व युद्ध के बाद हुई वर्साय की संधि ( Treaty of Versailles ) क्या थी? इस संधि से जर्मनी को क्या नुकसान पहुंचा? वर्साय की संधि के लिए पैलेस ऑफ वर्साय को ही क्यों चुना गया? ऐसे कई सवालों का जवाब मिलेगा इस आर्टिकल / वीडियो में

Treaty of Versailles: आज ही हुई थी इतिहास की सबसे बदनाम 'वर्साय की संधि', जर्मनी हो गया था बर्बाद!

Today in History 28 June : वर्साय की संधि ( Treaty of Versailles ), पहले विश्व युद्ध के बाद की शांति संधि थी. इसे जर्मनी और मित्र देशों के बीच युद्ध की संभावना को खत्म करने के मकसद से तैयार किया गया था. आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड ( Archduke Franz Ferdinand ) की हत्या के ठीक पांच साल बाद वर्साय के महल में 28 जून 1919 को इस पर हस्ताक्षर किए गए. फर्डिनेंड की हत्या के बाद ही पहला विश्व युद्ध ( World War I ) शुरू हुआ था.

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11 नवंबर 1918 के दिन युद्धविराम के बाद पहला विश्व युद्ध समाप्त हो गया था लेकिन शांति संधि को समाप्त करने के लिए पेरिस शांति सम्मेलन में मित्र देशों की बातचीत में छह महीने लगे. आइए आज जानते हैं कि वर्साय की संधि क्या थी? ( What was Treaty of Versailles? ) वर्साय की संधि से जर्मनी को क्या चोट पहुंची? ( How Germany affected by Treaty of Versailles ) वर्साय की संधि को किन देशों ने बनाया ( Which countries negotiated the terms of the Treaty of Versailles? ) था?

वर्साय की संधि || Treaty of Versailles

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 50 वैगन वाली कोयले की एक ट्रेन हर घंटे जर्मन फ्रंटिअर को पार करती थी.... ट्रेन से सप्लाई होने वाला कोयला फ्रांस, बेल्जियम, इटली की कंपनियों को पहुंचाया जाता था.... बदले में जर्मनी को कोई रकम नहीं मिलती थी... बल्कि ये तो उसकी उस सजा का भुगतान था जिसे फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और इटली ने उसपर थोपा था... आज झरोखा में बात करेंगे वर्साय की संधि की जिसे इतिहास की सबसे बदनाम संधियों में से एक माना जाता है... 28 जून 1919 ही वह तारीख है, जब जर्मनी ने इस संधि पर अपने हस्ताक्षर किए थे... आज झरोखा में इतिहास के इसी किस्से पर बात होगी...

प्रथम विश्व युद्ध से नुकसान || Damage from World War I

ऑस्ट्रिया और सर्बिया के बीच शुरू हुई जंग एकतरफा थी... पूर्वी यूरोप में ऑस्ट्रिया का वर्चस्व न बढ़ जाए इसलिए रूस युद्ध में कूद गया... रूस का प्रभाव न बढ़ जाए इसलिए जर्मनी युद्ध में कूदा... जर्मनी का प्रभाव न बढ़े इसलिए फ्रांस भी कूदा... जर्मनी ने ज्यों ही बेल्जियम पर हमला किया, फ्रांस भी अपनी झिझक छोड़कर मैदान में कूद पड़ा. जापान से लेकर अमेरिका तक जो भी संप्रभु राष्ट्र थे, इस जंग में शामिल हो गए. दो खेमे बन गए... एक ओर ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, इटली, अमेरिका और जापान थे जबकि दूसरी ओर ऑस्ट्रिया, तुर्की, जर्मनी, बुल्गारिया आदि... कुल 27 देश इस जंगल में शामिल हुए... 28 जुलाई 1914 को शुरू हुई जंग 11 नवंबर 1918 को खत्म हुई. जंग कुल 1565 दिन चली. साढ़े 6 करोड़ जवान जंग लड़े जिसमें से 90 लाख मारे गए... 50 लाख खो गए और सवा दो करोड़ अपंग हो गए... 4 खरब डॉलर से ज्यादा की हानि हुई... जर्मनी, रूसी, ऑटोमन और ऑस्ट्रो-हंगेरियाई साम्राज्य धराशायी हो गए...

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इस महायुद्ध के आगे महाभारत, पेलोपोनेशियन युद्ध, सिकंदर, चंगेज और नेपोलियन के सैन्य अभियान बौने दिखाई देने लगे थे... इस युद्ध के गर्भ में ही पलता रहा द्वितीय विश्व युद्ध भी...

प्रथम विश्व युद्ध- कब हुआ युद्धविराम? (World War I)

11 नवंबर 1918 की सुबह 11 बजे विश्व युद्ध का औपचारिक अंत हुआ. 11वें महीने की 11 तारीख को 11 बजे... जर्मनी के प्रतिनिधिमंडल ने फ्रांस में युद्धविराम के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे... युद्धविराम की खबर जैसे ही फैली, यूरोप और अमेरिका की गलियों-सड़कों में लोग झूमने लगे... 4 साल की जंग के बाद लोग ऐसी सुबह देख रहे थे जब धमाकों की आवाजें नहीं थी, किसी की मौत की खबर नहीं थी... झंडे लहरा रहे थे, देशभक्ति के तराने बज रहे थे.. पेरिस, लंदन, न्यू यॉर्क की सड़कों पर नाचते गाते परेड निकाली जाने लगी थी...

इसके 2 महीने बाद जनवरी 1919 में 6 महाद्वीपों में फैले लगभग 3 दर्जन देश पेरिस में इकट्ठा होते हैं. इन डेलिगेट्स को सिर्फ जटिल और संवेदनशील सीमाओं पर ही बात नहीं करनी थी बल्कि जर्मनी और उसके सहयोगियों से आर्थिक और सैन्य शर्तों पर भी चर्चा करनी थी. ईस्टर्न, सेंट्रल यूरोप का नक्शा फिर से तय होना था, मिडिल ईस्ट में भी नई सीमाएं बननी थी... पेरिस कॉन्फ्रेंस के टॉप डेलिगेट्स जिसमें यूएस के प्रेसिडेंट Woodrow Wilson, फ्रांस के राष्ट्रपति Georges Clemenceau, ग्रेट ब्रिटेन के प्रधानमंत्री David lloyd George और इटली के प्रधानमंत्री Vittorio Orlando थे.

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मित्र राष्ट्रों के प्रमुख जंग जीतने को लेकर एकमत थे लेकिन आगे क्या होना चाहिए इसे लेकर वे एकराय नहीं थे... मित्र देशों की जीत में सबसे ज्यादा योगदान देने वाले तीन देशों का जर्मनी को लेकर रुख अलग अलग था... इन सभी के अलग अलग राष्ट्रीय हित थे. इसलिए उनका विचार भी अलग था कि जर्मनी से किस तरह पेश आया जाए.

विश्व युद्ध का दोष जर्मनी पर || World War Blame on Germany

इन तीन देशों में सबसे ज्यादा नुकसान फ्रांस ने झेला था... फ्रांस की जमीन पर सबसे ज्यादा जंग लड़ी गई थी... फ्रांस के शहर के शहर खत्म हो चुके थे, गांवों का पता ही नहीं था... सड़कें गायब हो चुकी थी, रेल लाइनें तबाह हो चुकी थीं... स्कूल बर्बाद हो चुके थे... पुल, सुरंगे किसी काम की नहीं रह गई थीं... फ्रांस की 6 हजार फैक्ट्री तबाह हो चुकी थीं... अब फ्रांस चाहता था कि इस नुकसान की भरपाई जर्मनी ही करे... फ्रांस के सामने खुद को एक राष्ट्र के तौर पर बचाए रखने की चुनौती भी थी.. दूसरे मित्र राष्ट्रों से उलट फ्रांस की लंबी सीमा जर्मनी से लगती थी और दोनों देशों का इतिहास विवादों और जंगों से भरा हुआ था... इस बात की आशंका अब भी थी कि जर्मनी फ्रांस पर एक बार फिर हमला कर दे... इसीलिए फ्रांस जर्मनी से मिलिट्री ताकत भी छीन लेना चाहता था... उसकी कालोनियों को भी और आर्थिक स्रोतों को भी खत्म कर देना चाहता था...

नुकसान ब्रिटेन ने भी झेला था और वह भी चाहता था कि उसका नुकसान जर्मनी से वसूला जाए... हालांकि, ब्रिटेन फ्रांस की तरह जर्मनी को पूरी तरह बर्बाद करके नहीं छोड़ना चाहता था... ब्रिटेन का अंपायर काफी बड़ा था... यह वो दौर था जब ब्रिटिश राज में सूरज अस्त नहीं होता था... जंग के बाद उसकी चिंता अर्थव्यवस्था को लेकर थी. जर्मनी उसका ट्रेडिंग पार्टनर रहा था और भविष्य में दोनों देश फिर इसी रास्ते पर आगे बढ़ सकते थे... ब्रिटेन जर्मनी को आर्थिक ताकत फिर से हासिल करते देखना चाहता था. उसका डर ये भी था कि एक ही हफ्ते में जर्मनी चाहे तो यूरोप को अस्थिर कर सकता था... जंग की समाप्ति पर क्रांति ने रूस को अस्त व्यस्त कर रखा था... ब्रिटेन को समंदर में जर्मनी से खतरा हो सकता था इसलिए वह जर्मनी को सजा तो देना चाहता था लेकिन एक हद तक... वह चाहता था कि जर्मनी की नेवी को छोटा कर दिया जाए...

इस गुट में तीसरा मजबूत देश अमेरिका था... अमेरिका ने जंग में एंट्री देर से की थी... वह खुद को इस दौर से अलग थलग करके रखना चाहता था... अमेरिकन इस जंग को यूरोप के मसले के तौर पर देखते थे... और इसीलिए इसमें उनकी भी ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी... अमेरिका ने खुद को तटस्थ रखने का फैसला किया और सभी पक्षों से डिप्लोमैटिक और ट्रेड रिलेशन जारी रखने का फैसला किया... खासतौर से जर्मनी के साथ...

यूरोपीय देशों से उलट, अमेरिका का इस जंग में सीमाओं को लेकर कोई विवाद नहीं था... उसकी धरती पर जंग लड़ी भी नहीं गई... हालांकि जर्मनी द्वारा मेक्सिको को उकसाने और अमेरिका पर हमले के लिए राजी करने का खुलासा जरूर हुआ था... लेकिन फिर भी यूएस प्रेसिडेंट वूडरॉ विल्सन तटस्थ रहने का फैसला कर बैठे थे....

पैलेस ऑफ वर्साय को ही क्यों चुना गया? || Why Palace of Versailles selected for treaty?

28 जून 1919 को पेरिस के बाहरी हिस्से में मौजूद पैलेस ऑफ वर्साय में यूरोपीय डिग्निटरीज इकट्ठा होना शुरू हो जाते हैं. जंग कई महाशक्तियों ने लड़ी थी लेकिन इसकी समाप्ति पर दोष मंढ़ दिया गया था इकलौते जर्मनी पर... संधि पर हस्ताक्षर के लिए वर्साय महल के हॉल ऑफ मिरर्स को चुना गया था. यहीं 1871 में फ्रांस की हार पर जर्मन साम्राज्य की घोषणा की गई थी. वही तारीख 28 जून इसलिए चुनी गई, क्योंकि इसी दिन 1914 में ऑस्ट्रिया के राजकुमार फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या हुई थी, जिसके बाद प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ था... न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, 28 जून के दिन यह इवेंट महज 37 मिनट चला. इसमें 32 देशों के 27 प्रतिनिधिमंडल शामिल हुए थे.

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इस संधि की सिर्फ शर्तें ही जर्मनी को अपमान से भर देने वाली नहीं थी बल्कि जर्मन प्रतिनिधियों को जिस तरह से ठहराया गया वह भी किसी लिहाज से सम्मानजनक नहीं था... जर्मन प्रतिनिधियों को ट्रायनन पैलेस होटल में ठहराया गया जिसे कांटेदार तारों से घेर दिया गया था... जर्मन प्रतिनिधियों को देश के किसी प्रतिनिधि या पत्रकार से संपर्क स्थापित करने से रोक दिया गया...

संधि के फॉर्मेट को देखकर ही जर्मन प्रतिनिधियों के होश उड़ गए... वे तो आमने सामने की बात की उम्मीद लेकर आए थे लेकिन इन शर्तों ने उन्हें आघात पहुंचा दिया था... जर्मनी के राष्ट्रपति ने जब इन शर्तों को असहनीय और पूर्ति न करने लायक बताया, इसपर ब्रिटेन के पीएम लॉयड जार्ज ने कहा- कि अगर जर्मन लोग संधि पर हस्ताक्षर की मुहर नहीं लगाएंगे, तो हम बता दें कि आपको इसपर हस्ताक्षर करने ही होंगे. अगर आप वर्साय में ऐसा नहीं करते हैं, तो आपको बर्लिन में करना होगा... 29 मई को जर्मन डेलिगेशन ने अपने सवालों का प्रस्ताव थमाया... मित्र देशों ने मामूली संशोधन ही स्वीकार किए और फिर से साइन करने को कहा... इसके लिए 5 दिन का अल्टीमेटम दिया गया... जर्मनी की तत्कालीन शिडमान सरकार ने संधि को अस्वीकार करते हुए इस्तीफा दे दिया.. फिर गुस्टावबौर ने नई सरकार बनाई और इसे स्वीकार किया... 28 जून 1919 को नई सरकार के प्रतिनिधियों ने वर्साय के शीशमहल में संधि पर हस्ताक्षर किए...

वर्साय की संधि में जर्मनी ने क्या खोया?

फ्रांस ने जर्मनी से 1870-71 के फ्रेंको-पर्शियन युद्ध में हार का भी हिसाब चुकता किया...

संधि की अहम शर्तें थें-

वार गिल्ट

जर्मनी को पहला विश्व युद्ध स्वीकार करने का अपराध स्वीकार करना पड़ा

जर्मन आर्म्ड फोर्सेस के लिहाज से

जर्मन आर्मी को 1 लाख तक सीमित कर दिया गया
जबरन सैनिक बनाए जाने के नियम को बंद कर दिया गया, कोई भी शख्स स्वेच्छा से ही सैनिक बन सकता था
जर्मनी को आर्मर्ड वीइकल, पनडुब्बी या एयरक्राफ्ट की अनुमति नहीं थी
नेवी सिर्फ 6 बेटलशिप ही बना सकती थी
राइनलैंड एक डिमिलिटराइज्ड जोन बन गया.. इस एरिया में कोई भी जर्मन सैनिक तैनात नहीं हो सकता था..

क्षतिपूर्ति
जर्मनी को जंग से हुए नुकसान की भरपाई करनी थी... 1921 तक ये रकम तय नहीं की गई थी... इसे 6600 मिलियन पाउंड किया गया था

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जर्मन इलाके और उपनिवेश

Alsace-Lorraine फ्रांस को दे दिए गए
Eupen, Moresnet and Malmedy बेल्जियम को दिए गए
North Schleswig डेनमार्क को दिए गए (जनमत संग्रह के बाद)
West Prussia and Posen पोलैंड को दिए गए
Danzig एक फ्री सिटी बन गया जिसे लीग ऑफ नेशंस कंट्रोल कर रहे थे (सीपोर्ट पोलैंड को दिया गया)
Memel लिथुआनिया को दिया गया
Saar को लीग ऑफ नेशन को दिया गया (15 साल बाद यहां भी जनमत संग्रह हुआ था)
जर्मन उपनिवेश पर लीग ऑफ नेशंस का अधिकार हो गया... लीग ऑफ नेशंस का आमतौर पर मतलब फ्रांस और ब्रिटेन से है
Estonia, Latvia and Lithuania स्वतंत्र देश बन गए... जर्मनी ने इन्हें रूस से लिया था...

पहले विश्व युद्ध के बाद जर्मनी पर 269 अरब गोल्ड मार्क (तत्कालीन जर्मन करेंसी) का आर्थिक दंड लगाया गया था... यह करीब 1 लाख टन सोने की कीमत के बराबर था. आज से ठीक 100 साल पहले 28 जून 1919 को हुई वर्साय की संधि के तहत जर्मनी पर यह आर्थिक दंड लगा था...हालांकि, इसे बाद में कई बार संशोधित कर कम किया गया, लेकिन तब भी यह इतना था कि इसे चुकाने में जर्मनी को पूरे 91 साल लग गए. जर्मनी ने इस दंड की आखिरी किश्त 2 अक्टूबर 2010 को चुकाई...

आइए चलते चलते आज की तारीख में हुई दूसरी घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं-

1787, ब्रिटिश-भारतीय सेना का नेतृत्व करने वाले सर हेनरी जी. डब्ल्यू. स्मिथ ( Sir Harry Smith, 1st Baronet ) का जन्म.

1838, विक्टोरिया इंग्लैंड की महारानी ( Queen Victoria ) बनीं..

1921, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव ( P. V. Narasimha Rao ) का जन्म..

1940,बांग्लादेशी अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मोहम्मद युनुस ( Nobel Laureate Muhammad Yunus ) का जन्म...

(इस आर्टिकल के लिए रिसर्च मुकेश तिवारी @MukeshReads ने किया है)

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