आजादी से 3 साल पहले... इटावा से बंबई पहुंचा एक नया लड़का आंखों में हिंदी सिनेमा का ऐसा नूर गढ़ने का ख्वाब संजा बैठा था जिसने 16 साल बाद उसे शोहरत का कोहिनूर दे दिया... 1944 में के आसिफ ने मुगल ए आजम ( Mughal-E-Azam ) फिल्म बनाने का फैसला किया था... फिल्म सैयद इम्तियाज अली ताज के उपन्यास 'अनारकली' पर आधारित थी. तब चंद्रमोहन ( Actor Chandra Mohan ) इसमें मुख्य किरदार के लिए चुने गए थे और नई नवेली अभिनेत्री नरगिस ( Actress Nargis )... अनारकली के किरदार के लिए. फिल्म का प्रोडक्शन शुरू होता, उससे पहले 1946 में चंद्रमोहन का निधन हो गया... इसके 15 साल बाद जब आसिफ ने फिर से इस फिल्म पर काम शुरू किया तब चंद्रमोहन की जगह ले चुके थे दिलीप कुमार और नर्गिस की जगह थी मधुबाला... आज झरोखा के इस एपिसोड में हम बात करेंगे बॉलीवुड के एक ऐसे जुनूनूी फिल्ममेकर की, जो मुगल-ए-आजम बनाते बनाते खुद भी 'मुगल ए आजम' बन गया....
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हिंदी सिनेमा के इतिहास में बहुत कम फिल्म बनाकर भी शोहरत की बुलंदी छूने वाले फिल्मकारों में अकेला नाम आसिफ करीम ( FilmMaker k Asif ) का है. उत्तर प्रदेश के इटावा में 14 जून 1922 में जन्मे आसिफ ने मामूली कपड़े सिलने वाले दर्जी के तौर पर पारिवारिक काम से अपना करियर शुरू किया था, लेकिन बाद में उन्होंने तय किया कि वह अपने रिश्तेदार नाजिर अहमद खान ( Nazir Ahmed Khan ) के साथ काम करेंगे जो एक प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और ऐक्टर थे. अपनी मेहनत और लगन के बूते के आसिफ आगे चलकर आसिफ भी फिल्मों के निर्माता निर्देशक बन गए....
तीस साल के फिल्मी करियर में आसिफ ने कुल जमा तीन फिल्में बनाई. फूल 1945 ( Phool ), हलचल ( Hulchul ) 1951, मुगल ए आजम ( Mughal-e-Azam ) 1960... फूल अपने वक्त की सबसे बड़ी फिल्म थी, हलचल ने भी काफी धूम मचाई... मुगल ए आजम तो हिन्दी फिल्म इतिहास का शिखरबिंदु बन गई... (1945)
के आसिफ ( FilmMaker k Asif ) में ऐसी सनक थी कि हर कोई उन्हें देखकर भौंचक्का रह जाता था.. जब फिल्में 2 लाख में बन जाया करती थी, तब उन्होंने डेढ़ करोड़ वाली फिल्म बना डाली... फिल्म को इतिहास बनाने वाले के आसिफ का जुनून ऐसा था कि उन्होंने फिल्म में जोधाबाई की मोतियों की माला इसलिए नकली नहीं बनवाई क्योंकि कांच के मोती अगर जमीन पर गिरते तो आवाज नहीं होती... सच्चे मोती की माला जयपुर के राजा से मंगवाई गई. जोधाबाई ( Jodha Bai in Mughal E Azam ) के पूजाघर में खरे सोने से बनी भगवान कृष्ण की मूर्ति रखवाई गई. तानसेन की आवाज के लिए बड़े गुलाम अली खां ( Bade Ghulam Ali Khan ) को मिन्नतें कर करके राजी किया.. सलीम के घर लौटते समय मुख्य द्वार का एक सीन फिल्माने के लिए शूटिंग को कई दिन तक इसलिए रोके रखा क्योंकि प्रशासन ने रास्ते में आए बिजली के खंबे हटाने की अनुमति नहीं दी थी... युद्ध के दृश्य फिल्माने के लिए दो हजार ऊंट, चार हजार घोड़े, आठ हजार सिपाहियों भारतीय सेना ने उपलब्ध करवाए, खुद के आसिफ इसकी इजाजत लेकर आए... ऐसी भव्यता के बारे में तब सोचना भी नामुमकिन था...
रेगिस्तान की गर्मी में रेत जब तवे सी तप जाती है, उन्होंने एक दृश्य फिल्माया. इसमें बादशाह अकबर ( Mughal Ruler Akbar ) अपने लिए बेटे की मनौती मांगने सूफी संत की दरगाह नंगे पाव जाते हैं. इस सीन को शूट करने में कई दिन लग गए थे और आसिफ भी किरदार के साथ खुद नंगे पांव चलकर रेत पर ही शूटिंग कराते रहे, उन्होंने जूते नहीं पहने... ऐसी थी उनकी दिवानगी...
फिल्म में संगीत के लिए नौशाद ( Naushad Saheb ) को चुना गया जो इंडस्ट्री में तब तक दो दशक बिता चुके थे. उन्हें कामयाब संगीतकार की पहचान भी मिल चुकी थी. 50 फिल्मों का संगीत तैयार कर चुके नौशाद की झोली में मदर इंडिया जैसी कामयाब फिल्में भी थीं... एक दिन के आसिफ पैसों से भरा ब्रीफकेस लेकर नौशाद साहब के घर गए और ब्रीफकेस सौंपते हुए कहा फिल्म के लिए यादगार संगीत तैयार कर दीजिए... नौशाद को यह तरीका पसंद नहीं आया... उन्होंने ब्रीफकेस वापस कर दिया... बाद में के आसिफ को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने नौशाद साहब की पत्नी को समझा बुझाकर उन्हें राजी किया...
फिल्म से जुड़ा एक और किस्सा बहुत मशहूर है... मुगल ए आजम ( Mughal-E-Azam ) में तानसेन के गाने कौन गाए, इसके जवाब में उनके जहन में एक ही नाम बार बार उठता था बड़े गुलाम अली खां... नौशाद से बात हुई... सबका एक ही मत था, वे कभी नहीं गाएंगे... आसिफ जब बड़े गुलाम अली खां से बात करने गए तो बार बार यही कहते रहे कि आपके अलावा कोई हो ही नहीं सकता... के आसिफ ने उस्ताद बड़े गुलाम अली खां से फिल्म में गाने की गुजारिश की तो खां साहब ने मना कर दिया... उन्होंने कहा कि इसमें उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है. इस पर के आसिफ ने उन्हें मुंह मांगी रकम देने की बात कही.... कहते हैं बड़े गुलाम अली खां ( Bade Ghulam Ali Khan ) ने तब पीछा छुड़ाने के लिए एक गाने के लिए 25 हजार रुपये मांगे... उस दौर में लता और रफी जैसे गायकों का पारिश्रमिक भी 500 रुपये से ज्यादा नहीं था... बावजूद इसके के आसिफ तैयार हो गए... उन्होंने बड़े गुलाम अली खां को अडवांस भी दे दिया... राग सोनी में प्रेम जोगन बन गई ऐसा गाया कि तानसेन मानो फिर से जिंदा हो उठे...
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मुगल ए आजम इतिहास की सबसे महंगी फिल्मों में शामिल है. जब ये बनी थी तब फिल्म को बनाने पर डेढ़ करोड़ खर्च हुए थे जबकि तब ग्रेड ए की फिल्मों का औसत बजट 10 लाख रुपये से ज्यादा नहीं होता था...
आखिर वह दिन भी आया जब फिल्म रिलीज को तैयार थी.... अप्रैल 1960 में सेंसर बोर्ड ने फिल्म में कुछ कांट छांट कराई और 8 अप्रैल को इसे सर्टिफिकेट जारी कर दिया... थोड़ी बहुत काट छांट के बाद फिल्म की लंबाई रह गई 20 रील में बंटी 17272 फीट की.... इसके बाद के आसिफ ने इसमें फिर से काट छांट की और अब नई लंबाई रह गई 16,599... 20 रील में बंटी... 12 मई 1960 को इसे पूरे फेरबदल के साथ सेंसर की मंजूरी मिल गई...
आसिफ ने मुगल ए आजम के कुछ साल बाद लव एंड गॉड फिल्म ( K Asif Movie Love and God ) को बनाना शुरू किया... इसमें उन्होंने संजीव कुमार को लिया था... इससे पहले कि वह फिल्म बना पाते दिल का दौरा से उनका निधन हो गया.. 9 मार्च 1971 को वह निधन हो गया... वह फिल्म जितनी बना पाए, उसे उसी रूप में उनकी पत्नी अख्तर आसिफ ( K Asif Wife Akhtar Asif ) ने के सी बोकाड़िया की मदद से 1986 में रिलीज किया.. अधूरी फिल्म देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि आसिफ इस फिल्म को क्या शक्ल देना चाहते थे. अगर ये फिल्म पूरी होती तो निश्चित ही यादगार फिल्म बन जाती...
चलते चलते आज की दूसरी घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं
1775: अमेरिकी सेना ( US Army Formation ) की स्थापना हुई.
1907: नॉर्वे में महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला ( Norway Women got voting rights ).
2007: चीन के गोवी रेगिस्तान में पक्षीनुमा विशाल डायनसोर के जीवाश्म मिले.
1595: सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोविंद सिंह का जन्म ( Guru Hargobind Singh Ji Birth ) हुआ.
1928: वामपंथी क्रांतिकारी चे ग्वेरा ( Communist Revolutionary Leader Che Guevara ) का जन्म हुआ.