हाइलाइट्स

  • इंदिरा के विरोध में कांग्रेस में हावी था सिंडिकेट गुट
  • के. कामराज थे सिंडिकेट गुट के मुखिया
  • इंदिरा के फैसले के विरोध में मोरारजी देसाई ने दिया था इस्तीफा
  • इंदिरा ने एक रात में लागू कर दिया था बैंकों के राष्ट्रीयकरण का फैसला

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Jharokha 19 July, Bank Nationalization in India: इंदिरा ने एक झटके में क्यों बदली थी बैंकों की तकदीर?

1969 में इंदिरा गांधी ने एक रात में 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था. आइए जानते हैं, बैंकों के राष्ट्रीयकरण की वजह को और इसके असर को भी... 

Jharokha 19 July, Bank Nationalization in India: इंदिरा ने एक झटके में क्यों बदली थी बैंकों की तकदीर?

Today History (aaj ka itihas) 19 July in Hindi : बुजुर्ग नेताओं की फौज से घिरी इंदिरा राजनीतिक भंवरजाल से निकलने की तैयारी कर बैठी थीं...19 जुलाई 1969 की रात को 8.30 बजे, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने राष्ट्र के लिए घोषणा की कि देश में 85 प्रतिशत बैंक डिपॉजिट को कंट्रोल करने वाले 14 प्रमुख कमर्शियल बैंकों का राष्ट्रीयकरण (14 Bank Nationalised banks in 1969) कर दिया गया है. इंदिरा ने 1969 में आज ही के दिन 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था... कैबिनेट के हस्ताक्षर के बाद, शाम को इंदिरा गांधी ने रेडियो पर राष्ट्र को संबोधित किया...आज झरोखा में हम जानेंगे इंदिरा के फैसले को... फैसले के असर को और उस सिंडिकेट को भी जिसने आगे चलकर इंदिरा को पार्टी से बेदखल किया...

इंदिरा ने किन बैंकों का किया था राष्ट्रीयकरण

इंदिरा ने जिन बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था.. इसकी सूची में इलाहाबाद बैंक (Allahabad Bank), बैंक ऑफ बड़ौदा (Bank of Baroda), बैंक ऑफ इंडिया (Bank of India), सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (Central Bank of India), केनरा बैंक (Canara Bank), पंजाब नेशनल बैंक (Punjab National Bank) और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया (United Bank of India) शामिल थे.

सरकार ने ऐसा करने के पीछे जो तर्क दिया, वो ये था कि वे सिर्फ पूंजिपतियों की ही मदद कर रहे थे और बड़े आर्थिक क्षेत्र से दूर थे. आजादी के बाद 350 से ज्यादा प्राइवेट बैंकों की नाकामी की वजह से जमाकर्ताओं को अपना सारा पैसा गंवाना पड़ा था, इसलिए इसे एक लोकलुभावन फैसला भी करार दिया गया. लेकिन सच्चाई जो थी वह कुछ और ही थी... प्रधानमंत्रियों और उनके विरोधियों के बीच चल रह रस्साकशी के बीच ये फैसला एक मास्टरस्ट्रोक था...

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इस मुद्दे को लेकर चर्चा बहुत दिन से चल रही थी लेकिन कानूनी चुनौतियों के खतरे को देखते हुए पीएम के अंदर आगे बढ़ने में हिचकिचाहट थी. इंदिरा गांधी के अलावा, इस फैसले को आगे बढ़ाने में शामिल दूसरे लोग थे पी.एन. हक्सर, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव, साथ ही अर्थशास्त्री पी.एन. धर और के.एन. राज...

डी.एन. घोष ने इसमें एक अहम भूमिका निभाई गई थी, जो तब वित्त मंत्रालय के बैंकिंग विभाग से जुड़े थे और 1985 में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के अध्यक्ष भी बने. घोष की जीवनी नो रिग्रेट्स में इस फैसले के बारे में तफ्सील से बताया गया है. 17 जुलाई की मध्यरात्रि को हक्सर के पास एक फोन आता है और उन्हें 24 घंटे में अध्यादेश का मसौदा तैयार करने वाली टीम में शामिल होने के लिए कहा गया, ताकि कार्यवाहक राष्ट्रपति वी.वी. गिरि पद छोड़ने से एक दिन पहले और संसद के समक्ष उस पर हस्ताक्षर कर सकें.

कांग्रेस की लीडरशिप में था विवाद

देश राजनीतिक बवंडर के बीच था... कांग्रेस की लीडरशिप में मनमुटाव तेज हो चला है... बैंकों के राष्ट्रीयकरण का कैबिनेट का फैसला वित्त मंत्री मोरारजी देसाई के इस्तीफे के एक दिन बाद आया... देसाई इस कदम का विरोध कर रहे थे. इसके अलावा कैबिनेट के फैसले के बाद गिरि ने अध्यादेश पर हस्ताक्षर किए, जिन्हें अगले ही दिन पद छोड़ना था... यह महत्वपूर्ण था क्योंकि गिरि के जाने के बाद यह नहीं बताया जा सकता था कि राष्ट्रपति भवन में अगला व्यक्ति कौन होगा और किसके खेमे से होगा... सिंडिकेट खेमे से या इंदिरा की पसंद का!

इससे ठीक एक हफ्ते पहले, कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने इंदिरा गांधी को चुनौती दी थी... उन्होंने संजीव रेड्डी को पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया था... लेकिन इंदिरा के समर्थन से वीवी गिरी निर्दलीय मैदान में उतरे थे... भारत के इतिहास में यह पहली बार था जब किसी निर्दलीय ने राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की हो...

इंदिरा बन गई थी गरीबों की नायिका

कृषि क्षेत्र के लिए आगे चलकर जो भी फायदे हुए, इस कदम ने इंदिरा गांधी को गरीबों के बीच नायिका के तौर पर स्थापित कर दिया. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसने कांग्रेस में उनके विरोधी गुट को बुरी तरह परास्त किया... कांग्रेस में इंदिरा का विरोध कर रहे पुराने नेताओं की ये वह टोली थी जो इंदिरा को आगे बढ़ते नहीं देखना चाहते थे.

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राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान जारी रही और 1980 में छह और बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया...

सबसे पहले जानते हैं बैंकों के राष्ट्रीयकरण के असर को

इंदिरा गांधी के फैसले को कुछ आलोचक भयानक आर्थिक भूल कहते हैं, क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSB) भारी नुकसान, कर्ज में डूब गए... और SBI को छोड़कर किसी भी बैंक ने खास तरक्की नहीं की. इस समय देश में सार्वजनिक क्षेत्र (Public Sector Banks) के कुल 12 बैंक मौजूद हैं. दो बैंकों के प्राइवेटाइजेशन का ऐलान पहले ही किया जा चुका है... हालांकि कोई खास प्रगति इस तरफ देखी नहीं गई है. हाल ही में दिग्गज आर्थिक जानकारों ने राय दी है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को छोड़कर सरकार को दूसरे सभी सरकारी बैंकों का प्राइवेटाइजेशन (Privatisation of banks) कर देना चाहिए.

यह रिपोर्ट देश के दो दिग्गज आर्थिक एक्सपर्ट ने तैयार की है. इस पॉलिसी पेपर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इकोनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल की सदस्य पूनम गुप्ता और नीति आयोग के पूर्व वाइस चेयरमैन और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अरविंद पनगढ़िया ने तैयार किया है.

बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी रिपोर्ट में बताया गया कि इंडियन इकोनॉमिक फ्रेमवर्क और पॉलिटिकल इथॉस के आधार सरकार के पास कम से कम एक पब्लिक सेक्टर बैंक का होना जरूरी है. ऐसे में एसबीआई को छोड़कर सभी सरकारी बैंकों का प्राइवेटाइजेशन कर देना चाहिए. भविष्य में अगर हालात बदले तो एसबीआई का भी प्राइवेटाइजेशन कर दिया जाएगा.

सरकारी बैंकों की बुरी हालत

बैंक राष्ट्रीयकरण के समर्थक तर्क देते हैं कि इस फैसले से ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग का प्रसार हुआ, हरित क्रांति में मदद मिली और देश में गरीबी भी कम हुई. इसने बैंक के फाइनेंस पर कुछ उद्योगपतियों की पकड़ को भी खत्म कर दिया... लेकिन अगर हम आज जमीनी स्तर पर देखते हैं तो सरकारी बैंक निजी बैंकों से बहुत पीछे दिखाई देते हैं. रिजर्व बैंक के आंकड़े कहते हैं कि 2017 तक देश में सरकारी बैंक ब्रांचेस का नेटवर्क पीक पर था लेकिन इसके बाद के कुछ सालों में इसमें 4389 की कमी आई है जबकि प्राइवेट बैंकों की शाखाएं 7000 बढ़ गईं.

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सरकारी बैंकों की सिर्फ शाखाएं ही नहीं घटी बल्कि लोन देने के बिजनेस में उनका योगदान भी घटा है. टीवी 9 की रिपोर्ट बताती है कि मार्च 2015 तक क्रेडिट मार्केट में प्राइवेट बैंकों की हिस्सेदारी 20.8 परसेंट थी लेकिन मार्च 2021 तक यह बढ़कर 35.4 प्रतिशत पर पहुंच गई... दूसरी ओर सरकारी बैंकों को देखें तो मार्च 2015 तक क्रेडिट मार्केट में उनकी हिस्सेदारी 71.6 फीसदी थी जो मार्च 2021 में घटकर 56.5 फीसद रह गई थी.

आज क्रेडिट कार्ड के मार्केट में SBI को छोड़कर कोई भी सरकारी बैंक टॉप पोजिशन पर नजर नहीं आता है. क्रेडिट कार्ड बाजार में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी निजी सेक्टर के HDFC बैंक की है जिसके 1.52 करोड़ से ज्यादा क्रेडिट कार्ड ग्राहक हैं.

दूसरे नंबर पर स्टेट बैंक है जिसके 1.27 करोड़ ग्राहक हैं, लेकिन तीसरे, चौथे और पांचवें नंबर पर निजी बैंक ही हैं... ये आंकड़े गवाही देते हैं कि निजी बैंकों का न सिर्फ रिश्ता ग्राहकों से अच्छा है बल्कि वे सेवाओं के मामले में भी सरकारी बैंकों से आगे हैं.

इंदिरा को बैंकों के राष्ट्रीयकरण की जरूरत क्यों पड़ी?

जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद कांग्रेस की नैया डगमगाने लगी थी... पार्टी पर बुजुर्ग नेताओं का सिंडिकेट हावी था... के. कामराज इस सिंडिकेट के मुखिया थे.. इसी सिंडिकेट ने लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाया लेकिन जब उनका निधन हुआ तो ऑफर के कामराज को मिला... लेकिन उनके इनकार करने पर सत्ता मिली इंदिरा को... बुजुर्ग नेता चाहते थे कि इंदिरा का रिमोट उनके पास रहे लेकिन इंदिरा कहां किसी की सुनने वाली थी. तब राम मनोहर लोहिया के शब्दों में इंदिरा 'गूंगी गुड़िया' से ज्यादा नहीं थी... पार्टी में उनको सुनने वाले बहुत कम थे

सिंडिकेट नेताओं में के कामराज, Morarji Desai, S. Nijalingappa, C. M. Poonacha, Neelam Sanjiva Reddy, Atulya Ghosh और दूसरे कई नेता था. इन नेताओं से तनातनी के बीच इंदिरा खुद को मजबूत करने में और पार्टी में स्थापित करने में जुटी हुई थीं. 1968-69 के दौरान सिंडिकेट के सदस्य इंदिरा गांधी को गद्दी से उतारने की योजना बनाना शुरू कर चुके थे. मई 1969 में तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन का निधन हुआ.

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वीवी गिरी कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाए गए. यहां सिंडिकेट के नेता राष्ट्रपति के पद पर अपनी पसंद के शख्स को बिठाना चाहते थे. इंदिरा के विरोध के बावजूद सिंडिकेट के प्रमुख सदस्य नीलम संजीव रेड्डी को पार्टी की ओर से राष्ट्रपति का उम्मीदवार भी घोषित कर दिया गया. इन्हीं सब घटनाओं के बीच इंदिरा खुलकर मैदान में आ गईं. उन्होंने गरीबों के हित का हवाला देते हुए रातों रात 14 बैकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया...साथ ही, राजाओं के प्रिवीपर्स को भी बंद कर दिया... इंदिरा की लोकप्रियता बढ़ी और इसके बाद, अगले कुछ महीनों तक कांग्रेस में जबर्दस्त नाटकीय दौर भी बढ़ा... इंदिरा को उन्हीं की पार्टी से बाहर कर दिया गया...

इंदिरा ने नई पार्टी बनाई. इंदिरा की पार्टी का नाम रखा गया कांग्रेस (R) और दूसरी पार्टी हो गई कांग्रेस (O)। इंदिरा ने सिर्फ नई कांग्रेस ही नहीं बनाई बल्कि आने वाले वक्त में इसे ही असली कांग्रेस साबित कर दिया. उन्होंने ना केवल कांग्रेस के सिंडिकेट को हाशिए पर ला दिया बल्कि पीएम की कुर्सी बरकरार रखी और सरकार भी बचाई...

राष्ट्रपति चुनाव में इंदिरा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार और तब के उपराष्ट्रपति वीवी गिरी जीत गए... वोटिंग की रात से ठीक पहले, इंदिरा ने अपनी पार्टी के सांसदों से 'अंतरात्मा की आवाज पर वोट' करने को कहा था और यही बयान काम कर गया.

कांग्रेस पार्टी और सरकार पर नियंत्रण हासिल करने के बाद इंदिरा ने 1971 में समय से पहले आम चुनाव करवाए और बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की.

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बात अगर के. कामराज की हो तो बता दें कि वह 1954-1963 तक मद्रास स्टेट के मुख्यमंत्री रहे... साथ ही 1964-1967 तक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे... लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी को PM बनाने के पीछे कामराज का ही दिमाग माना जाता है.. 1976 में कामराज को मरणोपरांत भारत रत्न दिया गया था


चलते चलते आज की दूसरी घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं

1510: प्रशिया के बर्लिन में 38 यहूदियों को जिंदा जला दिया गया

1827: पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक मंगल पांडे का जन्म हुआ था

1947: कोरियाई राजनेता लिह वून-ह्यूंग की हत्या कर दी गई

2018: हिन्दी साहित्यकार गोपालदास नीरज का निधन हुआ

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