हाइलाइट्स

  • मायावती 4 बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं, 4 बार लोकसभा सांसद भी रहीं
  • 1977 में इंदिरा को हराने वाले राज नारायण से सरेआम भिड़ गई थीं मायावती
  • यूपी की राजनीति पर मायावती ने गहरी छाप छोड़ी है

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UP Elections 2022 : मायावती के बिना क्यों अधूरी है यूपी की राजनीति? जानें पूरी कहानी

उत्तर प्रदेश की 4 बार मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती की राजनीति यात्रा ने न सिर्फ यूपी की राजनीति पर बल्कि देश की राजनीति पर गहरा असर डाला है, आइए जानते हैं बहनजी को...

UP Elections 2022 : मायावती के बिना क्यों अधूरी है यूपी की राजनीति? जानें पूरी कहानी

उत्तर प्रदेश की राजनीति (Uttar Pradesh Politics) में मायावती की शख्सियत को दरकिनार नहीं किया जा सकता है. देश के करोड़ों दलित आज भी जिन बहनजी को अपना नेता मानते हैं, उन्हीं मायावती को जानने के लिए हमें 1977 के उस दौर में लौटना होगा जब वह दिल्ली की जेजे कालोनी, इंद्रपुरी में पढ़ाती थी और साथ में सिविल सेवा की तैयारी करती थी.

1977 में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में वह राजनीति के धुरंधर नेता राजनारायण (Raj Narayan) से भिड़ गईं. ये वही राजनारायण थे, जिन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को रायबरेली से चुनाव हराया था. यह घटना हर जगह चर्चा का विषय बनी. यह खबर कांशीराम तक कैसे न पहुंचती!

मायावती की बायोग्राफी में अजॉय बोस लिखते हैं- कांशीराम एक दिन मायावती के घर पहुंचे. सिविल सेवा की तैयारी कर रही मायावती से उन्होंने कहा कि मैं तुम्हें ऐसा नेता बना दूंगा कि एक नहीं बल्कि कई आईएएस अफसर कतार लगाकर तुम्हारे आदेश को मानेंगे.

यहीं से मायावती के भविष्य ने करवट ली.

अपने 3 दशक से ज्यादा के राजनीतिक करियर में मायावती 4 बार लोकसभा सांसद बनीं और 4 बार ऐसे मौके आए, जब उन्होंने उत्तर प्रदेश की कमान भी संभाली...

1995 में मुख्यमंत्री (3 जून 1995-18 अक्टूबर 1995) - ये वह ऐतिहासिक दिन था, जब पहली बार कोई दलित महिला भारत के किसी राज्य की मुख्यमंत्री बनी.

चुनाव अपडेट LIVE

राम मंदिर आंदोलन (Ram Mandir Movement) के बाद हुए विधानसभा चुनाव 1993 में पहली बार यूपी में सपा और बसपा ने गठजोड़ किया था. गेस्ट हाउस कांड के बाद दोनों दलों के रास्ते अलग हो गए... तब बीजेपी के समर्थन से मायावती सीएम बनी.

तब वह 4 ही महीने मुख्यमंत्री रहीं लेकिन उनके जिस फैसले के लिए उन्हें याद किया जाता है, वह अंबेडकर नगर जिले और उधमसिंह नगर जिले को बनाए जाने का था.

1997 में मुख्यमंत्री (21 मार्च 1997-21 सितंबर 1997) - बतौर मुख्यमंत्री दूसरे कार्यकाल में माया सरकार ने भूमिहीनों को ग्राम सभा की जमीनें दीं.

इस कार्यकाल में भी मायावती ने जिलों को बनाने का सिलसिला जारी रखा गाजियाबाद (Ghaziabad District) से अलग करके गौतमबुद्ध नगर जिला (Gautam Buddha Nagar District) और प्रयागराज (Prayagraj) से अलग करके कौशांबी जिला (Kaushambi District) बनाया गया. मुरादाबाद (Moradabad) से अलग करके ज्योतिबाफुले नगर (अमरोहा) बनाया. अलीगढ़ (Aligarh) से अलग महामाया नगर जिला (हाथरस) बनाया गया और छत्रपति साहूजी महाराज नगर भी बनाया, जो सिर्फ 6 महीने अस्तित्व में रहा.

2002 में मुख्यमंत्री (3 मई 2002-29 अगस्त 2003) - इस बार भी वे बीजेपी के समर्थन से ही सीएम बनीं. इस बार 511 एकड़ में फैले गौतमबुद्ध यूनिवर्सिटी (Gautam Buddha University) की आधारशिला रखी. हालांकि, इसी कार्यकाल में उनके बीजेपी से रिश्ते ऐसे उलझे कि उन्होंने तय किया कि अब दोबारा पार्टी का साथ नहीं लेंगी.

2007 में मुख्यमंत्री (13 मई 2007 – 15 मार्च 2012) - इस बार मायावती ने अकेले दम पर पूर्ण बहुमत हासिल करके प्रदेश में सत्ता हासिल की. पार्टी ने इन चुनावों में पहली बार अपनी रणनीति बदली. ब्राह्मणों को साथ लाने के लिए कई नारे दिए गए. हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है... ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा...

इसी का नतीजा हुआ कि चुनावों में पार्टी को प्रदेश में 37 फीसदी ब्राह्मण वोट मिले थे और पहली बार बीएसपी अकेले दम पर यूपी की सत्ता में पहुंची. 2009 में हुए आम चुनावों में उसे यूपी में सबसे ज्यादा 27.42% वोट मिले थे.

इसी कार्यकाल में बार मायावती ने सरकारी नौकरियों के प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था की थी जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के इस फैसले को खारिज कर दिया था...

पूर्ण बहुमत वाली ये सरकार ही मायावती के कार्यकाल में सबसे अधिक विवाद भी लेकर आई.

भ्रष्टाचार के आरोप - ताज कॉरिडोर मामले में सीबीआई चार्जशीट (Taj Corridor CBI Chargesheet) में मायावती और नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खिलाफ फर्जीवाड़े के गंभीर आरोप लगाए गए लेकिन जैसे ही मायावती 2007 में सत्ता में वापस आईं, तत्कालीन राज्यपाल ने इस केस में मुकदमा चलाने की इजाजत देने से इनकार कर दिया और सीबीआई की विशेष अदालत में चल रही कार्यवाही ठप हो गई.

मूर्तियों का निर्माण - नोएडा में दलित प्रेरणा स्थल (Dalit Prerna Sthal in Noida) और लखनऊ में अंबेडकर पार्क (Ambedkar Park in Lucknow) जैसे निर्माण से मायावती को ना सिर्फ तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा बल्कि उनपर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे, सबसे ज्यादा सवाल उठे बाबा साहब अंबेडकर और काशीराम जैसे नेताओं की मूर्तियों के साथ उनका खुद की मूर्तियों को लगवाना.. ये पहली बार था जब भारतीय राजनति में पहली बार किसी नेता ने अपने जीते जी अपनी मूर्तियां लगवाई

टिकट बेचने के आरोप – इसी कार्यकाल में पार्टी के सांसद जुगल किशोर ने उनपर टिकट बेचने का आरोप लगाया

और फिर जन्मदिन पर मायावती को नोटों की माला पहनाने वाली तस्वीर के बाद उन्हे विपक्ष ने दौलत की बेटी कहना शुरू कर दिया...

इसके बाद, मायावती की अगुवाई में बीएसपी को लगातार हार का सामना करना पड़ा, 2012, 2017 में यूपी की जनता ने मायावती को सत्ता से दूर रखा, शायद यही वजह है कि 2022 चुनाव से पहले मायावती ने साफ कर दिया कि अब वो सत्ता में लौटीं तो मूर्तियां नहीं बनवाएंगी

भले ही मायावती इस वक्त सत्ता से दूर हैं लेकिन उनकी छवि आज भी उस सख्त मिजाज नेता की है जो अपने कड़े फैसलों के लिए जानी जाती है. ये आकंड़े उसकी गवाही देते हैं.

1997 में- मुख्यमंत्री रहते रिव्यू मीटिंग ली और 127 अधिकारी सस्पेंड किए.

2002 में- 12 आईएएस ऑफिसर, 6 आईपीएस ऑफिसर सस्पेंड किए.

4 बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं मायावती भले एक दशक से यूपी में सत्ता के गलियारों से दूर हैं .. लेकिन उनकी पकड़ आज भी यूपी के एक बड़े वर्ग पर है. सत्ता में उनके वोट बैंक की बहुत बड़ी भूमिका है. इसलिए जितनी भी राष्ट्रीय पार्टी हों, या क्षेत्रीय पार्टी, मायावती के दबदबे को कोई भी खारिज नहीं कर सकता है.

ये भी देखें- UP Election 2022: कैराना में इकरा Vs मृगांका, जानिए क्यों दिलचस्प हुआ बहन-बेटी का मुकाबला?

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