हाइलाइट्स

  • साल 1969 में बना था ISRO
  • श्रीहरिकोटा में रॉकेट को मिलती है इक्वेटर की रफ्तार
  • 2002 में रखा गया 'सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र' नाम

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Why ISRO chose Sriharikota?: श्रीहरिकोटा से ही क्यों रॉकेट लॉन्च करता है ISRO? | Jharokha 28 Sep

Why rockets are launched in Sriharikota? : ISRO के लॉन्चिंग स्टेशन श्रीहरिकोटा में क्या विज्ञान छिपा है? आखिर क्यों इसरो यहीं से रॉकेट की लॉन्चिंग करता है? आइए जानते हैं श्रीहरिकोटा के विज्ञान को...

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      Why rockets are launched in Sriharikota? : क्या है श्रीहरिकोटा की कहानी? (Story of Sriharikota) क्यों श्रीहरिकोटा से ही इसरो अपने रॉकेट छोड़ता है? आज हम जानेंगे श्रीहरिकोटा में छिपे इस वैज्ञानिक रहस्य को और साथ ही जानेंगे उस दौर को जब श्रीहरिकोटा के इसरो ने रॉकेट प्रक्षेपण के लिए चुना था.

      साल 1969 में बना था ISRO

      साल 1969... इसी साल भारत का स्पेस ऑर्गनाइजेशन ISRO बना और इसी साल नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चांद की सतह पर पहला कदम रखा. इन दो घटनाओं के बीच मई 1969 में भारत में भी एक कदम रखा गया और वो भी ऐसी जमीन पर जो जंगल और पक्षियों से आबाद थी.

      भारतीय स्पेस मिशन की अगुवाई कर रहे विक्रम साराभाई (Vikram Sarabhai) ने मई 1969 में अपना कदम श्रीहरिकोटा में रखा था. पुलीकट झील (Pulicat Lake) के बीच स्थित झाड़ियों से भरी इस पट्टी को वह भारत का प्रक्षेपण केंद्र बनाना चाहते थे.

      ये भी देखें- Kirloskar Group Success Story: मशीनों के महारथी थे Laxmanrao, ऐसे बनाई अरबों की कंपनी

      तब झाड़ियां इतनी घनी थीं कि आने जाने के लिए बड़े बड़े पत्ते लगाकर टेंपररी रास्ता बनाना पड़ा था. श्रीहरिकोटा आईलैंड को रॉकेट लॉन्चिंग के लिए चुना गया था 1969 में लेकिन सेंटर ऑपरेशनल हुआ 1971 में... जब RH-125 Sounding Rocket को लॉन्च किया गया.

      पहला ऑर्बिट सैटलाइट रोहिणी 1A था, जो 10 अगस्त 1979 को लॉन्च किया गया लेकिन खामी की वजह से 19 अगस्त को नष्ट हो गया. तबसे लेकर अब तक सैंकड़ों सैटलाइट ISRO ने श्रीहरिकोटा से छोड़े हैं. 5 सितंबर 2002 को इसरो के पूर्व अध्यक्ष सतीश धवन की स्मृति में SHAR का नाम 'Satish Dhawan Space Centre' (SDSC) रख दिया गया.

      हम श्रीहरिकोटा की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि 28 सितंबर के दिन 2015 में इसरो ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से PSLV द्वारा रॉकेट का सफल प्रक्षेपण किया था. आज हम जानेंगे कि आखिर श्रीहरिकोटा को ही इसरो ने क्यों रॉकेट लॉन्चिंग के लिए चुना? (Why ISRO choose Sriharikota as a launching station) आइए जानते हैं.

      श्रीहरिकोटा में रॉकेट को मिलती है इक्वेटर की रफ्तार

      क्या आपने डिस्कस थ्रो करने जा रहे ऐथलीट को कभी गौर से देखा है? डिस्कस थ्रो करने से पहले ऐथलीट एक सर्कल में कई राउंड घूमता है. वे ऐसा डिस्कस रिलीज करने से पहले वेलोसिटी बढ़ाने के लिए करते हैं. वेलोसिटी जितनी ज्यादा होगी, डिस्कस उतना ही दूर जाएगा. अब ऐथलीट के मैदान से निकलकर धरती पर नजर डालें. अगर यही ऐथलीट इक्वेटर से डिस्कस को लॉन्च करना चाहे तो क्या उसका इक्वेटर के पास होना उसके लिए फायदेमंद साबित नहीं होगा?

      कुछ ऐसा ही तब होता है जब भारत सतीश धवन स्पेस सेंटर या श्रीहरिकोटा के हाई ऑल्टिट्यूड रेंज से रॉकेट छोड़ता है. 53 सालों से ये कहानी लगातार जारी है.

      What is Equator? || इक्वेटर क्या है?

      अगर आपके दिमाग में इक्वेटर को लेकर सवाल पैदा हुआ है, तो सबसे पहले इसका जवाब जानते हैं... इक्वेटर यानी इक्वल लाइन... हिन्दी में इसे भूमध्य रेखा के नाम से जानते हैं... यह एक काल्पनिक रेखा होती है... ये रेखा पृथ्वी को दो हिस्सों में बांट देती है... एक इस रेखा के नीचे वाला हिस्सा जिसे सदर्न हेमिस्पेयर (Southern Hemisphere) और दूसरा ऊपर वाला हिस्सा जिसे नॉर्दर्न हेमिस्पेयर (Northern Hemisphere) कहा जाता है... यानी दक्षिणी और उत्तरी गोलार्ध...इसकी अहमियत ये है कि इसकी मदद से रॉकेट को नेविगेट करने में आसानी होती है... इसका एक नाम जीरो डिग्री लैटिट्यूड (Zero Degree Latitude) भी है.

      एक रॉकेट की औसत रफ्तार 11 किलोमीटर प्रति सेकेंड होती है... आपके एक बार पलक झपकाने पर रॉकेट 11 किलोमीटर आगे बढ़ चुका होता है... रॉकेट को इस तरह से बनाया जाता है कि इसका अगला हिस्सा तीर की तरह होता है. जब इसकी लॉन्चिंग होती है तो इसे ग्रेविटी के विपरीत अंतरिक्ष की यात्रा करनी होती है. रॉकेट जब हवा के बीच में से गुजरता है तो इसमें काफी प्रेशर लगता है.

      हाईस्पीड से चलने वाले सभी चीजें इसी डिजाइन से बनती हैं... ऊंचाई से कूदने पर स्विमर्स भी खुद को इसी तरह ढाल लेते हैं.

      भूमध्य रेखा के नजदीक से क्यों होती है रॉकेट लॉन्चिंग?

      हर रॉकेट को भूमध्य रेखा के पास से ही लॉन्च किया जाता है... ऐसा क्यों है ये भी जान लेते हैं. पृथ्वी को अपने अक्ष पर एक चक्कर पूरा करने में 24 घंटे लगते हैं. पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूरब की ओर 1600 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा की रफ्तार से घूमती है. यानी जब अपनी प्यारी धरती घूमती है तो उसपर मौजूद सभी वस्तुएं इसी रफ्तार से घूमती हैं. और अगर कोई चीज इस भूमध्य रेखा के पास से छोड़ी जाए तो उसे ज्यादा रफ्तार मिलती है.

      भूमध्य रेखा से नीचे अंटार्कटिक रेखा (Antarctic Line) है. यहां क्योंकि धरती का आकार छोटा हो जाता है इसलिए यहां इसकी रफ्तार 1180 किलोमीटर प्रति घंटा हो जाती है जबकि ऊपर यह 1670 रहती है... 500 किलोमीटर प्रति घंटा का फर्क है. इसी फर्क का फायदा उठाने के लिए भूमध्य रेखा से या उसके पास से रॉकेट को लॉन्च किया जाता है.

      चूंकि रॉकेट की लॉन्चिंग पूर्व की ओर होती है और लॉन्चिंग के दौरान ईंधन बचाने की कोशिश भी रहती है. अब भारत उत्तरी गोलार्थ पर है और हमारे देश के ऊपर से भूमध्य रेखा नहीं गुजरती है... हां श्रीहरिकोटा इसी भूमध्य रेखा के पास है और इस वजह से रॉकेट लॉन्चिंग यहीं से होती है.

      2002 में रखा गया 'सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र' नाम

      2002 में 'श्रीहरीकोटा रेंज' या 'श्रीहरीकोटा लॉन्चिंग रेंज' को SHAR नाम मिला. इसका पूरा अर्थ है सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र. इसरो के पूर्व प्रबंधक और वैज्ञानिक सतीश धवन के निधन के बाद उनके सम्मान में ऐसा किया गया. श्रीहरिकोटा चेन्नई से लगभग 80 किमी नॉर्थ में है. सुल्लुरुपेटा - आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले का छोटा सा शहर है. इसी शहर में चेन्नई और कोलकाता को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर - पुलिकट झील के किनारे स्थित है श्रीहरिकोटा.

      Sriharikota Island मुख्य भूमि से 17 किमी दूर है और यह पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम पर पुलीकट झील से घिरा हुआ है. पुलिकट झील का बैकवाटर बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करता है. इस द्वीप में कई प्रकार के वनस्पति और जीव हैं. तट के किनारे कई नए बागान हैं जो चक्रवात के दौरान उच्च गति वाली हवाओं से आईलैंड को बचाते हैं. इस द्वीप में आदिवासी समुदाय, यानादीस का निवास था, जिनका बाद में पुनर्वास किया गया. उन्हें रोजगार के अवसर और शैक्षणिक सुविधाएं भी दी गईं.

      SHAR कोस्टल एरिया 27 किलोमीटर के साथ साथ 44 हजार एकड़ की जमीन पर फैला हुआ इलाका है..

      श्रीहरिकोटा रॉकेट लॉन्चिंग की पसंद बना इसकी कुछ और भी वजहें हैं

      सुरक्षा: हर देश चाहता है कि लॉन्चिंग की प्रक्रिया आबादी से दूर हो और इससे कभी भी मानव जीवन या संपत्ति को नुकसान न पहुंचे. श्रीहरिकोटा एक बड़ा बैरियर आइलैंड है. पुलिकेट लेक और बंगाल की खाड़ी, दोनों यहां से नजदीक है. स्पेसपोर्ट को मानव आबादी से दूर ही होना चाहिए और इसी वजह से ज्यादातर लॉन्चिंग तटीय इलाकों में, आइलैंड या रेगिस्तान में होते हैं.

      सोचिए क्या हो अगर स्पेस का जाने वाला रॉकेट क्रैश होकर शहरों पर गिर जाए? पूर्व की ओर होने वाले लॉन्च से रॉकेट ट्रेजेक्टरी बंगाल की खाड़ी के ऊपर से गुजरती है. और लॉन्चिंग के बाद का हर मलबा अगर होता है तो सीधा समंदर में जा गिरता है.

      ये भी देखें- Guru Nanak Dev Ji Biography : जब बाबर के आने से पहले अयोध्या पहुंचे थे गुरू नानक देव जी

      श्रीहरिकोटा की लोकेशन ऐसी है कि यह तीन ओर से समंदर से घिरा हुआ है जिसका मतलब है कि लॉन्चिंग पैड को ठंडा रखने के लिए लगातार इसे हवा मिलती रहती है. यहां कभी कभी ही खराब मौसम का सामना करना पड़ता है. बारिश भी यहां नवंबर-दिसंबर के महीने में ही होती है.

      चलते चलते आज की दूसरी घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं

      1887 - चीन के ह्वांग-हो नदी में बाढ़ से करीब 15 लाख लोग मरे.

      1950 - इंडोनेशिया (Indonesia) संयुक्त राष्ट्र का 60 वां सदस्य बना

      1836 - शिरडी साईं बाबा (Shirdi Sai Baba) का जन्म हुआ

      1929 - महान गायिका लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) का जन्म हुआ

      ISROsriharikotavikram sarabhai

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