हाइलाइट्स

  • 6 सितंबर 1889 को जन्मे थे शरत चंद्र बोस
  • सुभाष चंद्र बोस से 8 साल बड़े थे शरत
  • शरत को पत्र लिखकर सुभाष लेते थे सलाह

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Sarat Chandra Bose : सुभाष चंद्र बोस को 'नेताजी' बनाने वाले शरत चंद्र बोस की कहानी | Jharokha 6 September

शरत चन्द्र बोस (Sarat Chandra Bose) का जन्म 6 सितंबर 1889 में हुआ थे. उनके पिता का नाम जानकी नाथ बोस (Janakinath Bose) और उनकी माता का नाम प्रभावती था. आइए जानते हैं शरत चंद्र बोस की जिंदगी को करीब से और किस तरह से उन्होंने सुभाष की मदद की...

Sarat Chandra Bose : सुभाष चंद्र बोस को 'नेताजी' बनाने वाले शरत चंद्र बोस की कहानी | Jharokha 6 September

शरत चन्द्र बोस (Sarat Chandra Bose) 6 सितंबर 1889 में जन्मे थे. उनके पिता का नाम जानकी नाथ बोस (Janakinath Bose) और उनकी माता का नाम प्रभावती था. शरत चन्द्र बोस, सुभाष चन्द्र बोस से 8 साल बड़े थे और दोनों भाई एक-दूसरे के बेहद करीब थे. जानकी नाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे. उसके बाद उन्होंने निजी प्रैक्टिस शुरू कर दी थी. उन्होंने कटक की महापालिका में लंबे वक्त तक काम किया और बंगाल विधानसभा के समय भी रहे थे. उन्हें राय बहादुर का खिताब भी अंग्रेजों द्वारा मिला था. शरत चन्द्र बोस की शादी विभावती से हुई थी.

सुभाष चंद्र बोस का द ग्रेट एस्केप मिशन

साल 1941 में 16-17 जनवरी के बीच की रात... कलकत्ता के एल्गिन रोड (Elgin Road, Kolkata) पर अपने पुश्तैनी मकान में नजरबंद नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) अंग्रेजों को चकमा देने वाले थे... उनके इस मिशन 'द ग्रेट एस्केप' (The Great Escape) की योजना बहुत पहले ही बन चुकी थी. घर में नजरबंदी के दौरान ही उन्होंने अपनी दाढ़ी बढ़ानी शुरू कर दी. उस रात उन्होंने अपने तन पर भूरे रंग का एक लंबा-सा कोट व लंबा-चौड़ा पायजामा चढ़ाया.. एक पठान का रूप धरा और देर रात अपने भतीजे शिशिर कुमार बोस (Sisir Kumar Bose) की मदद से अंग्रेजों के कड़े पहरे को धता बता कर नजरबंदी से बाहर निकल पाने में कामयाब रहे... शिशिर को जिस शख्स ने इस चक्रव्यूह को भेदने की कला सिखाई थी, वह थे शरत चंद्र बोस... सुभाष चंद्र बोस से 8 साल बड़े उनके भाई...

आज की तारीख का संबंध शरत चंद्र बोस से ही है जिनका जन्म 6 सितंबर 1889 में हुआ था... और आज झरोखा में हम जानेंगे शरत चंद्र बोस की जिंदगी को करीब से...

सुभाष चंद्र बोस 14 भाई बहन थे. सुभाष के अलावा प्रमिलाबाला मित्रा, सरलाबाला डे, सतीश चंद्र बोस, शरत चंद्र बोस, सुरेश चंद्र बोस, सुनील चंद्र बोस, तारूबाला रॉय, मलीना दत्ता, प्रोतिवा मित्रा, कलकलता मित्रा, शैलेष चंद्र बोस और संतोष चंद्र बोस... शरत और सुभाष का रिश्ता सिर्फ भाईयों का ही नहीं था बल्कि एक पिता और पुत्र जैसा भी था.

ये भी देखें- Rash Bihari Bose: रास बिहारी ने Subhash Chandra Bose को बनाकर दी आजाद हिंद फौज

1921 में भारतीय सिविल सेवा से इस्तीफा देते वक्त सुभाष ने भाई शरत को पत्र लिखकर उनसे सलाह और मदद मांगी थी. उन्होंने लिखा था- मुझे आपके आदर्शों पर भरोसा है. मेरा फैसला आखिरी है और ये अटल है लेकिन मेरा मौजूदा कदम आपके हाथ में है. क्या आप मुझे नए और हिम्मत से भरे रास्ते को चुनने के लिए शुभकामनाएं नहीं देंगे?

जानकीनाथ और प्रभावती बोस के दूसरे बेटे और चौथी संतान शरतचंद्र का जन्म 6 सितंबर 1889 को हुआ था. उनके छोटे भाई सुभाषचंद्र बोस का जन्म उनके जन्म के 8 वर्ष बाद हुआ था. शरत को चरित्र की अनेख विशेषता पिता जानकीनाथ से मिली थीं.

बोस परिवार का वंश वृक्ष काफी विशाल है. परिवार के संस्थापक दशरथ बोस थे. ग्यारहवी शताब्दी के एक पूर्वज महीपति, जो अपनी सुबुद्धि खान की उपाधि की वजह से मशहूर हुए. उनके बेटे सोलहवीं शताब्दी में सुलतान हुसैन शाह के वित्त मंत्री और नौसेना कमांडर थे. इस तरह से पता चलता है कि साहस, नेतृत्व व प्रशासनिक क्षमताएं परिवार में पीढ़ियों से मौजूद थीं.

शरत उस वक्त युवावस्था में कदम रख रहे थे, जब बंगाल की राजनीति काफी उथल-पुथल के दौर में थी. बहिष्कार, स्वदेशी और लॉर्ड कर्जन के बंग विभाजन के खिलाफ संघर्ष का दौर... वह 18 साल के थे जब कांग्रेस में शामिल हुए... शरत परिवार के ऐसे पहले शख्स थे जो लंदन पढ़ाई के लिए गए. 1911 से 1914 तक वे लंदन में रहे. भारत में उनका घर 1, वुडबर्न पार्क राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बन गया था. कलकत्ता जाने पर महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू (Mahatma Gandhi and Jawahar Lal Nehru) उन्हीं के घर ठहरा करते थे.

महात्मा गांधी से मिलने के लिए टैगोर (Rabindranath Tagore) शरत के घर ही आते थे... कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राष्ट्र के प्रति शरत बोस का योगदान अज्ञात ही रह गया क्योंकि उनके प्रख्यात छोटे भाई सुभाष के तेज के सामने उनकी ख्याति फीकी पड़ गई थी. लेकिन सच यही है कि अगर शरत बोस ने अपना भावनात्मक, राजनीतिक और आर्थिक सहयोग न दिया होता तो हमें सुभाष का यह रूप न मिलता.

साल 1939 में त्रिपुरी कांग्रेस (Tripuri session of Congress) के बाद सुभाष ने अपने राजनीतिक जीवन में सबसे बड़े संकट का सामना किया. उस वक्त वे बिल्कुल अकेले पड़ गए थे. तब कांग्रेस के पुराने रक्षक और कांग्रेस लेफ्ट ने भी उन्हें अकेला छोड़ दिया था. उस संकट की स्थिति में कवि रवींद्रनाथ टैगोर और शरत बोस ही उनके साथ खड़े हुए थे.

साल 1941 में जब सुभाष भारत से भागे तो शरत ने ही उनको इस शानदार योजना की सलाह दी थी. एक बार विएना में उनका ऑपरेशन होना था और डॉक्टरों ने उनसे पूछा कि क्या वह कोई संदेश छोड़ना चाहते हैं, तो सुभाष मुस्कुराए और लिखा- मेरे देशवासियों के लिए मेरा प्यार और मेरे बड़े भाई के प्रति मेरा आभार...

आजादी के बाद भी होती रही शरत चंद्र और बेटों की जासूसी

नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी गोपनीय फाइलों (Netaji Subhas Chandra Bose Papers) की पड़ताल में चौंकाने वाले खुलासे हुए. पता चला कि नेताजी के बड़े भाई और स्वतंत्रता सेनानी शरत चंद्र बोस को ब्रिटिश हुकूमत बहुत बड़ा खतरा मानती थी. अंग्रेज, शरत चंद्र को सुभाष चंद्र बोस के पीछे की असली ताकत मानते थे. ब्रिटिश पुलिस अधिकारी चार्ल्स टेगार्ट ने ब्रिटिश शासन के खतरनाक प्रतिद्वंद्वी और सुभाष चंद्र बोस के पीछे की असली शक्ति के रूप में शरत चंद्र बोस का जिक्र किया है.

फाइलों से यह भी पता चलता है कि केवल ब्रिटिश हुकूमत ही नहीं, बल्कि स्वतंत्र भारत की पहली कांग्रेस सरकार भी 1949 में दक्षिण कलकत्ता उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार को हराने वाले शरत चंद्र बोस से काफी सावधान थी. फाइलों में मिले सबूतों से साफ है कि नेहरू सरकार इसी डर के कारण शरत चंद्र की हर गतिविधियों पर बारीकी नजर बनाई हुई थी और 24 घंटे उनके पीछे जासूस लगे रहते थे.

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दस्तावेजों से यह भी जानकारी मिलती है कि पश्चिम बंगाल की तत्कालीन पीसी घोष सरकार के खिलाफ शरत चंद्र ने एक विपक्षी ब्लॉक बनाने की जो योजना बनाई थी, जिसका नतीजा ये हुआ कि सबसे पुरानी पार्टी के खिलाफ उनका यह विरोध राज्य व देशभर में काफी चर्चित हो गया था. इससे भी कांग्रेस सरकार काफी डर गई थी.

शरत ने चुने थे 50 हजार सैनिक

शरत चंद्र ने 18 सितंबर 1941 को जापान के चांसलर को पत्र लिखा. शरत ने यह पत्र नेताजी के लापता होने के बाद लिखा था. शरत ने इसमें लिखा था कि उनके पास करीब 10 हजार लोग ऐसे हैं जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ जापान की मदद करने के लिए तैयार हैं. शरत ने यह खत किसी ओहटा नाम के शख्स को लिखा. इसमें उन्होंने लिखा था कि मैं 50 हजार लोगों की सेना तैयार करने का वादा करता हूं. ये ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ने को तैयार हैं. आप हमारी मदद कीजिए.

उस वक्त जापान और जर्मनी दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटेन और उसके सहयोगी देशों के खिलाफ जंग लड़ रहे थे. शरत इसी मौके का फायदा लेना चाहते थे. उनका सोचना था कि यही वो मौका है जब जापान की मदद लेकर भारत से ब्रिटिश शासन का अंत किया जा सकता है.

बोस परिवार के हॉलिडे होम की अहमियत

यह कहा जाता है कि नेताजी के द ग्रेट एस्केप की योजना सिलीगुड़ी के पास दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र के कर्सियांग में गिद्धा पहाड़ के 'हॉलिडे होम' में बनी थी. अपने इस घर पर नेताजी अंतिम बार 1939 में आए थे. सिलीगुड़ी से 30 किलोमीटर दूर कासयांग के गिद्धा पहाड़ पर लगभग पौने दो एकड़ जमीन पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस का वह ऐतिहासिक घर आज भी मौजूद है, जो अब नेताजी म्यूजियम बन गया है.

रिकॉर्ड से पता चलता है कि यह घर शरत चंद्र बोस ने 1922 में एक अंग्रेज राउली लैस्सेल्स वार्ड से खरीदा था. यह घर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिवार का एक 'हॉलिडे होम' था. उनका परिवार अक्सर गर्मी व पूजा आदि की छुट्टियां बिताने यहीं आता था. 1945 में जेल से छूटने के बाद शरत चंद्र बोस परिवार के साथ अक्सर इसी घर में रहा करते थे.

वहीं, 1937 में बनी जर्मन वंडरर सिडान आज भी कोलकाता के एल्गिन रोड पर बोस के घर खड़ी हुई है. ये भारत की पहली ऑडी थी जिसे बोस परिवार ने 4,650 रुपये में 1937 में खरीदा था. यही वो घर है जहां से 1941 में सुभाष चंद्र बोस अंग्रेजों को चकमा देकर भागे थे और झारखंड के गोमोह रेलवे स्टेशन पहुंचे थे. ऑडी ने इस कार को फिर से रिस्टोर करने में कामयाबी भी हासिल की...

बात अगर शरत चंद्र बोस की करें तो 1947 तक वे कांग्रेस कार्यकारी समिति के सदस्य रहे थे. अगस्त 1946 में केंद्र में बनी अंतरिम सरकार में वे शामिल हुए और उन्हें वर्क्स, माइन्स एंड पावर्स मंत्रालय का प्रभार दिया गया. परंतु 1947 में उन्होंने विभाजन के खिलाफ जोरदार विरोध किया और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी से इस्तीफा दे दिया. वह विभाजन को रोकना चाहते थे लेकिन अफसोस ऐसा हो न सका. शरत चंद्र बोस का 1950 में कोलकाता में निधन हो गया.

चलते चलते आज की दूसरी घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं

1522 : समंदर के रास्ते पृथ्वी का पूरा चक्कर लगाने वाला पहला जहाज विक्‍टोरिया आज ही के दिन स्पेन लौटा था

1988 : सोवियत संघ ने अंडरग्राउंड न्यूक्लियर टेस्ट किया

1998 : जापान के फ़िल्म निर्माता-निर्देशक अकिरा कुरोसावा का निधन हुआ

2008 : डी. सुब्बाराव ने भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर का कार्यभार संभाला

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