Russia-Ukraine War: यूक्रेन पर युद्ध थोपने वाले रूस पर कई सारे आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए हैं. इसके बावजूद रूस, युद्ध नहीं रोक रहा है. सवाल उठ रहा है कि रूस पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के बावजूद अपनी अर्थव्यवस्था को कैसे संभाल रहा है. वहीं यूरोप भी क्रूड ऑयल के लिए रूस पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए विकल्प तलाश रहा है. आपको जानकर हैरानी होगी कि यूरोप रोजाना रूस को 850 मिलियन डॉलर यानी कि 64,89,46,52,500 रुपये दे रहा है. हालांकि 27 सदस्यीय यूरोपियन यूनियन के सभी नेता दशकों से तेल और नेचुरल गैस के लिए रूस पर निर्भरता कम करने के लिए रास्ता देख रहे हैं. लेकिन क्या यह इतना आसान होगा? और अगर यूरोप ने रूस का बॉयकॉट किया तो यूरोप के लोगों और बाकी दुनिया पर उसका क्या असर होगा?
एनर्जी के लिए यूरोप रूस को कितने पैसे देता है?
यूरोप रोजाना रूस को 64,89,46,52,500 रुपये दे रहा है
सिर्फ क्रूड ऑयल के लिए खर्च हो रहा है 450 मिलियन डॉलर
गैस के लिए यूरोप रोजाना दे रहा है 400 मिलियन डॉलर
रूस की कमाई का 43 प्रतिशत इनकम सिर्फ तेल और गैस से
यूरोप भले ही इस युद्ध को लेकर रूस की निंदा कर रहा हो लेकिन उनसे धड़ल्ले से गैस और तेल का आयात कर रहा है और इसके बदले में रोजाना 850 मिलियन डॉलर दे भी रहा है. यूरोप रोजाना गैस के बदले 400 मिलियन डॉलर और तेल के बदले 450 मिलियन डॉलर दे रहा है. साल 2011 से 2020 के बीच का आंकड़ा देखें तो रूस की कमाई का 43 प्रतिशत इनकम सिर्फ तेल और गैस से है.
रूस का यूरोप में कितना बड़ा तेल बाजार है इसको समझने के लिए एक बार आंकड़ों पर नजर डालते हैं.
यूरोप, रूस से कितना तेल खरीदता है?
रूस ने साल 2020 में 260 मिलियन टन क्रूड ऑयल बेचा
सिर्फ यूरोप ने 138 मिलियन क्रूड ऑयल की खरीदारी की
यानी कि रूस जितना तेल बेचता है 53% यूरोप के पास जाता है
वहीं यूरोप अपनी जरूरत का एक चौथाई क्रूड ऑयल रूस से लेता है
अगर रूस से तेल लेना बंद कर दें तो क्या होगा?
यूरोप रोजाना 3.8 मिलियन बैरल तेल खरीदता है
रूस के विकल्प के तौर पर हो सकता है मिडिल ईस्ट देश
अमेरिका, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका से हो सकता है आयात
सस्ते दामों पर सिर्फ मिडिल ईस्ट देशों से ही मिल सकता है तेल
नए बिजनेस पार्टनर ढूंढ़ने और इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में लगेगा समय
यूरोप एकदम से तेल लेना बंद कर दे तो होगा भारी नुकसान
रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले यूरोप रोजाना 3.8 मिलियन बैरल खरीदता था. ऐसे में अगर नए सिरे से क्रूड ऑयल देनदार देश ढूंढ़ा भी जाए तो विकल्प के तौर पर मिडिल ईस्ट देश हो सकता है. जिनका मौजूदा बाजार एशिया में है. इसके अलावा अमेरिका, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका जैसे देशों से ही तेल आयात किया जा सकता है. हालांकि अगर सस्ते दामों पर तेल का विकल्प देखा जाए तो वह मिडिल ईस्ट ही है. हालांकि किसी भी तरह के बदलाव के लिए या नए बाजार विकल्प के लिए समय लगेगा. अचानक से तेल खरीदारी पर रोक लगाने से यूरोप की अर्थव्यवस्था तबाह हो सकती है...
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रूस का बॉयकॉट करने से ग्लोबल मार्केट पर असर
कोरोना महामारी का असर पूरी तरह नहीं हुआ है खत्म
रूस-यूक्रेन युद्ध भी बर्बाद कर रहा है अर्थव्यवस्था
रूस का बॉयकॉट, यूरोप को बुरी तरह करेगा प्रभावित
व्यापार के लिए शिपिंग आदि की व्यवस्था तुरंत नहीं हो सकती
सऊदी अरब ने पहले ही सप्लाई बढ़ाने से किया है मना
कागज पर रूस का बॉयकॉट आसान, असल में भारी परेशानी
क्रूड ऑयल की आपूर्ति को संतुलित करना नहीं होगा आसान
विश्व की अर्थव्यवस्था अभी कोरोना महामारी से जूझना सीख ही रही थी कि रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हो गया. ऐसे में पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था अभी चरमराई हुई है. वहीं अगर रूस का बॉयकॉट किया तो दुनिया के लिए मौजूदा दौर में और परेशानी खड़ी होगी. शिपिंग और साजो-सामान संबंधी बाधाओं की वजह से रूस के लिए भी यूरोप का पूरा बाजार एशिया की तरफ शिफ्ट करना आसान नहीं होगा.
OPEC oil उत्पादक संघ प्रमुख सऊदी अरब ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि रूस का बॉयकॉट करने की स्थिति में तेल आपूर्ति पहले की तरह बनाए रखने के लिए सप्लाई नहीं बढ़ाया जाएगा... इसके साथ यह भी स्पष्ट नहीं है कि पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के बाद भारत और चीन जैसे देशों पर कितना प्रभाव पड़ेगा.
कई जानकारों ने आगाह करते हुए कहा है कि रूस पर प्रतिबंध लगने की स्थिति में कागज पर भले ही हालात सामान्य लग रहे हों लेकिन असल में इतने बड़े स्तर पर क्रूड ऑयल की आपूर्ति को संतुलित करना आसान नहीं होगा. क्योंकि सब कुछ नए सिरे से शुरुआत नहीं की जा सकती है.
बॉयकॉट से रूस को क्या नुकसान?
पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के बाद रूस ने कच्चे तेल की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बेंचमार्क के मुकाबले प्रति बैरल 35 डॉलर कम किए हैं. हालांकि इसके बावजूद रूस का नुकसान सीमित है. तेल से रूस की जो भी कमाई हो रही है उससे प्रतिबंधों के बीच रूस ने अपनी अर्थव्यवस्था को संभाले रखा है. जानकारों के मुताबिक जब तक रूसी बैरल को बाजार मिल रहा है, तभी तक उनका व्यापार है. जैसे ही बाजार मिलना बंद होगा, तेल के दाम काफी बढ़ जाएंगे और रूस को भारी आर्थिक नुकसान झेलना होगा.