हाइलाइट्स

  • जुल्फिकार अली भुट्टो ने बेटों को दी थी बदले की कसम
  • अल जुल्फिकार ने हाईजैक की थी PIA एयरलाइन
  • बेनजीर भुट्टो ने किया था PIA हाईजैकिंग का विरोध

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Bilawal Bhutto Zardari Family: बिलावल भुट्टो के मामा थे 'आतंकी', पाक के लिए बन गए थे मुसीबत! | Jharokha

Bilawal Bhutto Zardari Family : जिन बिलावल भुट्टो जरदारी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपमानजनक टिप्पणी की, उनके खुद के मामा ने हिंसा की राह चुनी थी और आतंकी संगठन बना लिया था. आइए जानते हैं पाकिस्तान में भुट्टो परिवार के अनसुने इतिहास को...

Bilawal Bhutto Zardari Family: बिलावल भुट्टो के मामा थे 'आतंकी', पाक के लिए बन गए थे मुसीबत! | Jharokha

Bilawal Bhutto Zardari Family : पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी (Bilawal Bhutto Zardari) ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) पर अपमानजनक टिप्पणी की. उनकी अमर्यादित टिप्पणी पर भारत सहित दुनियाभर में विरोध भी दिखाई दिया... लेकिन अगर हम गुजरे वक्त में जाएं तो इन्हीं बिलावल के मामा और पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो (Pakistan Former PM Benazir Bhutto) के भाईयों ने एक आतंकी संगठन अल जुल्फिकार (Al-Zulfiqar) बनाया था और कई ऑरेशन्स को अंजाम भी दिया था... इसमें सबसे खतरनाक मिशन PIA एयरक्राफ्ट की हाईजैकिंग का है, जिसने दुनिया भर में सनसनी मचा दी थी... इस हाईजैकिंग के बाद तब तानाशाह जिया उल हक की सत्ता ने भी घुटने टेक दिए थे और हाईजैकर्स की मांगों को मान लिया था...

जुल्फिकार अली भुट्टो ने बेटों को दी थी बदले की कसम

जुल्फिकार अली भुट्टो (Zulfikar Ali Bhutto) की फांसी पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास में कभी न भूलने वाली घटना थी. जुल्फिकार अली भुट्टो ने मौत से पहले अपने बेटों से कहा था कि वे उनकी हत्या का बदला लें. बदले की आग में जलते बेटों ने इसे अब्बू की आखिरी इच्छा के रूप में लिया था. जब भुट्टो को फांसी दी गई तब उनके दो नौजवान बेटों मुर्तजा भुट्टो और शहनवाज भुट्टो (Murtaza Bhutto and Shahnawaz Bhutto) ने पाकिस्तानी सेना (Pakistan Army) का मुकाबला करने का फैसला किया. दोनों ने मिलकर अल-जुल्फिकार संगठन बनाया.

अल जुल्फिकार ने हाईजैक की थी PIA एयरलाइन

संगठन ने 1981 में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मीडिया में तब सनसनी मचाई गई जब पेशावर जाने वाले पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइन (PIA ) प्लेन को हाईजैक कर लिया गया... प्लेन को काबुल ले जाया गया. इस हाईजैकिंग को अंजाम दिया था सलामुल्लाह टीपू (Salamullah Tipu) और उनके साथियों ने... जिसे खुद मुर्जता भुट्टो ने हाइजैक से कुछ महीने पहले काबुल एयरपोर्ट पर पहली बार कमर्शल हवाईजहाज का कॉकपिट दिखाया था. सोवियत के समर्थन वाला काबुल प्रशासन ऐसे ही ऑपरेशन के इंतजार में था जिसे पाकिस्तानी सेना और अमेरिका दोनों को चोट पहुंचे... बता दें कि तब पाकिस्तान अमेरिका में खासी करीबी थी...

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टीपू ने एक आज्ञाकारी और जुनूनी शिष्य की तरह प्लेन के कंट्रोल्स को अच्छे से समझ लिया था और हाईजैक को परफेक्टली एक्जिक्यूट किया. हाईजैकिंग 13 दिन तक चली थी जिसमें पाक सेना के लेफ्टिनेंट तारिक रहीम (Lieutenant Tariq Rahim) की जान गई थी. हाइजैकर्स ने गलती से उन्हें जनरल रहीमुद्दीन खान (Rahimuddin Khan) का बेटा समझ लिया था, जो बलूचिस्तान में मार्शल लॉ के ऐडमिनिस्ट्रेटर थे... इसकी वजह से हाईजैकर्स की डिमांड के आगे जिया प्रशासन को झुकना पड़ा था और उसने मांग को मानते हुए पाक की जेलों में बंद 54 PPP कार्यकर्ताओं को रिहा किया था.

बेनजीर भुट्टो ने किया था PIA हाईजैकिंग का विरोध

इस हाइजैकिंग को तब बिलावल की मां और जुल्फिकार की बेटी बेनजीर भुट्टो का विरोध झेलना पड़ा था. बेनजीर तब नजरबंद थी और जिया की तानाशाही के खिलाफ एक राजनीतिक आंदोलन की अगुवाई कर रही थी... अल जुल्फिकार ने इसके बाद जिया उल हक को भी मारने की कोशिश की... 1980 में पोप जॉन पॉल द्वितीय के सम्मान में कराची में आयोजित कार्यक्रम में विस्फोट किया गया.

बेनजीर भुट्टो किताब मेरी आपबीती (Benazir Bhutto Book Meri Aap Biti) में लिखती हैं- रेडियो ऑस्ट्रेलिया ने एक रात मीर के उस बयान को प्रसारित किया, जो उसने बंबई में दिया था. उसका अल जुल्फिकार संगठन पाकिस्तान लिबरेशन आर्मी के नाम से जाना जाता है, उसने कहा था कि वह पाकिस्तान का तख्तापलट कर रख देगा. उसने यह कसम खाई कि वह हिंसा के जरिए वहां के प्रशासन को हटाकर रहेगा.

अल जुल्फिकार ने पाकिस्तान में घुसकर की 54 कार्रवाई

मीर ने बताया कि उसके अल जुल्फिकार ने कम से कम 54 कार्रवाईयां पाकिस्तान के अंदर घुसकर की हैं जिसमें पोप के आने से पहले कराची स्टेडियम का बम विस्फोट भी शामिल है. यह पूछे जाने पर कि क्या अल जुल्फिकार का मुख्यालय काबुल में है, मीर ने बताया था कि काबुल में उनकी मौजूदगी जरूर है, लेकिन मुख्यालय पाकिस्तान के अंदर ही है. बेनजीर का दिल बैठ गया, काश वह भाई मीर से बात कर पातीं, उसे देख पातीं. 5 साल से बेनजीर ने मीर और शाह से मुलाकात नहीं की थी. वह बस अखबारों में छपी तस्वीर के जरिए जानती थी कि कैसे दिखते हैं उनके भाई मीर यानी मुर्तजा और शाह यानी शहनवाज.

मीर मुर्तजा भुट्टो, अल-जुल्फिकार का ऑपरेशनल और पॉलिटिकल बॉस था... उसने यासर अराफात और मुअम्मर खद्दाफी जैसे विद्रोही अरब नेताओं से सीखा. प्लेन हाईजैक के बाद रिहा किए गए PPP ऐक्टिविस्ट आसिफ बट ने किताब “Sar-e-rah Kai Sooliyan Thee” में लिखा है कि मीर मुर्तजा इस कदर आवेश में था कि जरा सी गलती पर फांसी का आदेश भी दे रहा था. काबुल में दिन के कुछ घंटों की ट्रेनिंग होती थी बाकी समय सिनेमाघरों में भारतीय फिल्में देखने में बीतता था.

अल जुल्फिकार के लड़ाकों को अफगानिस्तान में मिली ट्रेनिंग

संगठन के लोगों को ट्रेनिंग अफगानिस्तान में ही दी गई थी. संगठन का मकसद जनरल जिया उल हक की हत्या करना था. संगठन का ये मकसद न सिर्फ इसलिए नामुमकिन जैसा था क्योंकि जिया पाकिस्तान के ऐसे शख्स थे जिनकी सुरक्षा के लिए चप्पे चप्पे पर बंदोबस्त था. मुर्तजा के आदमियों के लिए जिंदा रहकर डूरंड लाइन को क्रॉस कर पाना भी नामुमकिन जैसा ही था. भुट्टो भाई दक्षिणी अफगानिस्तान की बेरंग और बेरहम पहाड़ियों से पाकिस्तान तक ट्रेक करने के रास्ते से बेखबर थे. जलालाबाद से तोरखम तक की यात्रा में ऐसे मुजाहिदीन थे जो सोवियत समर्थित लोगों को मौत की नींद सुलाने के लिए बेकरार थे.

मुर्तजा की बेटी फातिमा भुट्टो 1981 के अपहरण के एक साल बाद पैदा हुई थी. अपनी किताब "सॉन्ग्स ऑफ ब्लड एंड टीयर्स" में उन्होंने इस घटना के लिए आईएसआई की साजिश के रूप में पेश किया. वहीं दूसरी ओर, बट का कहना था कि विमान को हाईजैक करने की योजना मीर मुर्तजा के दिमाग की उपज थी और मेजर तारिक रहीम की शूटिंग का आदेश भी उन्होंने ही दिया था.

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मुर्तजा को जनरलों की मिलीभगत का संदेह था. जब टीवी कैमरों ने मेजर रहीम के लहूलुहान और बेजान शरीर को डामर पर धकेलने, उसकी खोपड़ी और हड्डियों को कुचलने के बाद टीपू द्वारा "V" साइन बनाते हुए फुटेज रिकॉर्ड किया, तो मुर्तजा टर्मिनल के अंदर विजयी उल्लास में अपनी मुट्ठी से हवा में जमकर मुक्के मार रहे थे. हालांकि, उसे रिकॉर्ड नहीं किया जा सका था.

अल जुल्फिकार ने जिया उल हक के प्लेन को निशाना बनाया

कम ट्रेनिंग पाए हुए बट और उसके साथियों ने पाकिस्तान पहुंचकर कम तैयारी के साथ जिया के प्लेन पर हमले की योजना बनाई. रावलपिंडी में एक घर की छत से उन्होंने इस साजिश को अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश की थी... घर को उन्होंने किराये पर लिया था... मिसाइल निशाने से चूक गई और अल जुल्फिकार के खिलाफ हुई कार्रवाई के बाद कई जेल में डाल दिए गए. आसिफ बट सहित कुछ लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई.

ऐसे पीपीपी वर्कर्स जो संदिग्ध नहीं थे लेकिन अल जुल्फिकार से सहानुभूति रखने और उसके कार्यकर्ताओं को भोजन उपलब्ध कराकर अपने यहां रखने के लिए उन्हें बुरी तरह से टॉर्चर किया गया. बगैर ट्रायल के... लाहौर के किले में उनके साथ ज्यादती की सारी हदें पार कर दी गई... मियां जहांगीर और चौधरी इशाक... दोनों लाहौर हाईकोर्ट में वकील थे और भुट्टो के तगड़े समर्थक थे... दोनों की मौत इसी टॉर्चर से हुई...

अल-जुल्फिकार की कहानी आपसी हिंसा से खत्म हुई....

मुर्तजा भुट्टो और उनके सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में से एक, राजा अनवर के मतभेद बढ़ने के बाद अल-जुल्फिकार में दरारें दिखाई देने लगीं. रजा पाकिस्तान लौटना चाहते थे और जिया तानाशाही के खिलाफ अपने राजनीतिक संघर्ष में बेनजीर भुट्टो की मदद करना चाहते थे. मुर्तजा ने अपने हिटमैन सलामुल्लाह टीपू को रजा और उनके समर्थकों की हत्या करने के लिए कहा. टीपू एक पूर्व वामपंथी छात्र नेता थे, जो 1980 में अल-जुल्फिकार में शामिल हुए थे. रजा को मुर्तजा के अनुरोध पर काबुल जेल में डाल दिया गया था और अंततः टीपू को भी ऐसा ही किया गया था जब 1984 में उनकी जंगली हरकते काबुल और मुर्तजा के लिए सुरक्षा खतरा बन गई थीं.

मुर्तजा ने काबुल में संगठन का कामकाज तब समेटा जब छोटे भाई शहनवाज भुट्टो को 1985 में फ्रेंच रिवेरा में नीस में जहर देकर मार डाला गया. बेनजीर और मुर्तजा दोनों ने जोर देकर कहा कि उन्हें उनकी अफगान पत्नी ने जहर दिया था, जो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की एजेंट बन गई थी. मुर्तजा बाद में सीरिया चले गए और वहां से कम महत्वपूर्ण अल-जुल्फिकार ऑपरेशन जारी रखा.

20 सितंबर 1994 को मुर्तजा भुट्टो की कराची में घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई. बेनजीर तब पाकिस्तान की प्रधानमंत्री थीं. कई लोग मानते हैं कि इस हत्या को सेना ने अंजाम दिया था, और वह भी मेजर तारिक रहीम की हत्या का बदला लेने के लिए...

पाकिस्तान के पूर्व दिग्गज क्रिकेटर और वहां के पीएम रह चुके इमरान खान ने अपनी किताब मैं और मेरा पाकिस्तान में भुट्टो परिवार और अल जुल्फिकार पर रोशनी डाली है. उन्होंने लिखा है-

साल 1974 में हॉलैंड में पाक क्रिकेट टीम के सम्मान में दूतावास में समारोह रखा गया था. यहां बेनजीर राजदूत से नौकर की तरह पेश आ रही थीं. राजदूत बेचारा भाग भागकर मेज कुर्सिंया लगा रहा था. तब बेनजीर 20 साल की रही होंगी.

बेनजीर युवावस्था से ही महत्वाकांक्षी थीं. इमरान के ऑक्सफोर्ड छोड़ने के बाद वह वहां एक साल तक इसलिए रही क्योंकि वह ऑक्सफोर्ड यूनियन की अध्यक्ष बनना चाहती थीं. शायद उनकी मुख्य समस्या ये थी कि उनकी जिंदगी का सबसे पहला जिम्मेदारी का काम प्रधानमंत्री का पद था और वह पीएम इसलिए बनीं क्योंकि वह जुल्फीकार अली भुट्टो की बेटी थीं.

बेनजीर की मृत्यु के बाद 19 साल के बिलावल को पीपीपी का चेयरमैन बना दिया गया. इमरान ने लिखा है कि इंग्लैंड के प्रिंस चार्ल्स की योग्यता बिलावल अली भुट्टो से ज्यादा है क्योंकि बिलावल की आधी से ज्यादा जिंदगी तो विदेशों में बीती है. पाकिस्तान की सच्चाई का उसे कुछ पता नहीं है. वंशवादी राजनीति और तानाशाही पाकिस्तान का दुर्भाग्य है और इन दोनों ने प्रतिभाशाली व्यक्तियों को कभी प्रोत्साहित नहीं किया.

इमरान ने लिखा है कि बेनजीर पीएम पद के लायक नहीं थी... शादी के मामले में भी उनका फैसला गलत साबित हुआ... आसिफ अली जरदारी, जमींदार परिवार से थे. उनकी सारी जिंदगी पोलो के मैदान नें गुजरी थी. इमरान ने अपने कजन कमर खां से बेनजीर का परिचय कराया था और वह उससे शादी करने के बारे में सोचने भी लगी थी लेकिन तभी पिता की फांसी का बदला लेने के लिए उसके भाइयों ने अल जुल्फिकार नाम से संगठन बना लिया.

इस संगठन ने 1981 में पाकिस्तान एयरलाइंस के एक विमान का अपहरण भी कर लिया और बेनजीर को जेल जाना पड़ा. जब वह जेल से आईं तब तक कमर शादी कर चुका था और बेनजीर की शादी जरदारी से हुई.

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