हाइलाइट्स

  • तीसरी बार राष्ट्रपति बनेंगे शी जिनपिंग
  • चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने बदले कई नियम
  • ताइवान और भारत को लेकर चीन सख़्त
  • रूस के साथ मिलकर अमेरिका को देगा चुनौती!

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Xi Jinping तीसरी बार बनेंगे China के राष्ट्रपति, भारत के लिए खतरे की घंटी तो नहीं?

Xi Jinping तीसरी बार China के राष्ट्रपति बनने वाले हैं. राष्ट्रवाद के नाम पर भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया समेत सभी पड़ोसी देशों पर जिनपिंग आक्रामक रहे हैं. उनके तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के वैश्विक मायने क्या हैं?

Xi Jinping तीसरी बार बनेंगे China के राष्ट्रपति, भारत के लिए खतरे की घंटी तो नहीं?

चीन (China) के बीजिंग शहर में शी जिनपिंग (Xi Jinping) की ताजपोशी की तैयारी चल रही है. वह लगातार तीसरी बार चीन के राष्ट्रपति बन सकते हैं... कई जानकार बताते हैं कि महज 10 सालों में राष्ट्रपति जिनपिंग (Xi Jinping) दुनिया के ताकतवर नेताओं में से एक बन गए हैं. इसलिए यह कहना कि उनके हाथ में सत्ता की कमान सौंप दी जाएगी गलत है. इसे यूं कहा जाए कि फिलहाल चीन की सत्ता उनके हाथों से लेकर किसी और को सौंपना किसी के वश में है ही नहीं. शी जिनपिंग के पास फिलहाल तीन पद हैं. वह बतौर महासचिव, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख हैं. इसके अलावा बतौर राष्ट्रपति जिनपिंग विश्व में चीन का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसके अलावा सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (CMC) के चेयरमैन की हैसियत से वो चीन के सैन्यबलों के कमांडर हैं. जिसके अंतर्गत पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLI) यानी कि चीनी सैनिक और पीपुल्स आर्म्ड पुलिस (PAP) आती है.

माओत्से तुंग के बाद सबसे शक्तिशाली नेता

जिनपिंग, माओत्से तुंग के बाद चीन के सबसे शक्तिशाली नेता बताए जाते हैं. यही वजह है कि चीन में सर्वोच्च नेता के दो कार्यकाल के नियम को 2018 में बदल दिया गया था. जिसके मुताबिक देश का सुप्रीम नेता 10 साल बाद अपना पद छोड़ देता है. अगर यह नियम नहीं बदला होता तो कम्युनिस्ट पार्टी, शी जिनपिंग को तीसरी बार राष्ट्रपति बनाने का निर्णय नहीं ले सकती थी.

संभव है कि 69 साल के जिनपिंग आजीवन चीन की सत्ता पर बने रहें... मार्च 2023 में जिनपिंग का कार्यकाल खत्‍म हो रहा है, 2012 में वे चीन के राष्ट्रपति बने थे. महज 10 सालों में राष्ट्रपति शी जिनपिंग दुनिया के ताकतवर नेताओं में से एक बन गए हैं. राष्ट्रवाद, अधिनायकवाद और लगातार सैन्य आधुनिकीकरण में जुटा हुआ चीन ना केवल अपने देश के लिए बल्कि दूसरे देशों के लिए भी चुनौती बनता जा रहा है. बीजिंग में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं नेशनल कांग्रेस के उद्घाटन के मौके पर शी जिनपिंग ने कहा कि 'ताइवान को अपने देश में शामिल करने के लिए वह अपनी सेना को ताइवान में उतारने के लिए भी तैयार है.' यानी ठीक वैसी ही सैन्य कार्रवाई जैसी रूस ने यूक्रेन में की.

उद्घाटन सत्र के दौरान गलवान घाटी संघर्ष का वीडियो भी चलाया गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक महासभा के दौरान भारतीय सैनिकों से मार खाने वाले पीएलए रेजिमेंट कमांडर क्वी फैबाओ को भी प्रतिनिधि के तौर पर बुलाया गया था... मतलब साफ़ है जिनपिंग आगे के वर्षों में आक्रामक रणनीति अपना सकते हैं. जैसा कि अब तक वह करते भी रहे हैं.. लेकिन चीन अभी ज़्यादा बड़ा ख़तरा किसके लिए है ताइवान के लिए या भारत के लिए... आज इन्हीं तमाम मुद्दों पर होगी बात, आपके आपने कार्यक्रम में, जिसका नाम है मसला क्या है?

एक तरफ चीन में जिनपिंग की राजनीतिक हैसियत बढ़ रही है तो वहीं दूसरी तरफ जीरो कोविड पॉलिसी के कारण चीन भारी आर्थिक नुकसान झेल रहा है. यही वजह थी की सात दिवसीय कांग्रेस के आगाज़ से एक दिन पहले शनिवार को चीन में शी जिनपिंग के विरोध में जबरदस्त और ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन भी देखने को मिला. विरोध प्रदर्शन को देखते हुए बीजिंग में सुरक्षा के मज़बूत इंतज़ाम किए गए हैं.

जिनपिंग को चुनौती देने वाला चीन में कोई नहीं

फ़िलहाल जिनपिंग को चुनौती देने वाला चीन में कोई नहीं है. इसकी एक वजह यह भी है कि जिनपिंग अपने विरोधियों पर बेहद सख़्त रहे हैं. जो भी उनके ख़िलाफ़ गए, उनपर केंद्रीय एजेंसियों की मदद से रेड डलवा दी गई और अंतत: विरोधियों को भ्रष्टाचार के आरोप में दबा दिया गया. पत्रकार, गोदी मीडिया बन चुके हैं. जो सरकार की तारीफ़ के अलावा कुछ और करने का दुस्साहस नहीं कर सकती.

यही वजह थी कि कोरोना काल के दौरान चीन से वैसी कोई तस्वीर देखने को नहीं मिली, जो वहां की असल भयावहता को बता सके. मानवाधिकार को लेकर चीन पर लगातार सवाल उठते ही रहे हैं.

विरोधियों के ख़िलाफ़ जासूस बिठा दिए

जिन‍पिंग के नेतृत्‍व में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी इतनी मज़बूत हो गई है कि उसने अपने सभी विरोधियों के ख़िलाफ़ जासूस बिठा दिए हैं. देश के अंदर भी और बाहर भी. जिससे उन्हें कुछ बोलने ही नहीं दिया जाता. कोई ना कोई आरोप लगाकर उसे देश विरोधी बता दिया जाता है. चीन ने जासूस वाली यह नीति दुश्मन देशों के ख़िलाफ़ भी अपनाया है. भारत समेत कई देशों में चीन के जासूस पकड़े गए हैं.

जिनपिंग, अपने पहले कार्यकाल से ही विदेशी नीति को लेकर बेहद आक्रामक रहे हैं. हालांकि इसकी एक वजह वहां की मज़बूत अर्थव्यवस्था भी है जो मौजूदा दौर में अमेरिका के बाद विश्व की दूसरी सबसे बड़ी शक्ति है. फ़िलहाल विदेश नीति की बात करें तो वह बेहद आक्रामक है, ख़ासतौर पर अमेरिका को लेकर.

चीन ने अपनाई 'वोल्‍फ वॉरियर' की नीति

शी जिनपिंग ने हमेशा से 'वोल्‍फ वॉरियर' की नीति अपनाई है. फिर चाहे वह अमेरिका हो, जापान, साउथ कोरिया, ताइवान या भारत. चीन आए दिन अमेरिका के ख़िलाफ़ आक्रामक बयान देता रहता है. घरेलू स्‍तर पर चीन में जापान के खिलाफ राष्‍ट्रवाद की भावना मजबूत हो रही है. जिनपिंग के पहले कार्यकाल में दक्षिण कोरिया के सामान का बायकॉट किया गया था, जिससे उनका बिजनेस खतरे में आ गया. मौजूदा समय में चीन की विदेश नीति ताइवान के इर्द-गिर्द है.

'जिनपिंग अपनी ताकत को शोऑफ करने में यकीन करते हैं. देश के अंदर भी वह अपनी छवि, माओत्से तुंग के बराबर स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए राष्ट्रपति ने पर्सनैलिटी कल्ट कल्चर शुरू किया है. इस कल्चर के तहत वहां के अखबार, किताब, कॉमिक्स और कार्टून में जिनपिंग की वीरता और महानता के नए-नए क़िस्से गढ़े गए.

अब बारी ताइवान की

रविवार को कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस में शी जनिपिंग ने कहा कि हॉन्गकॉन्ग पर अब चीन का नियंत्रण स्थापित हो चुका है और अब बारी ताइवान की है. हमने ताइवान में विदेशी दखल को खारिज करने के लिए मजबूत कदम उठाए हैं. ताइवान चीन की वन चाइना पॉलिसी का हिस्सा है और उसे भी हम चीन में मिलाएंगे. यानी आनेवाले समय में जिनपिंग राष्ट्रवाद का सहारा लेने वाले हैं.

मीडिया रिपोर्ट्स में यहां तक दावा किया जा रहा है कि अपना कार्यकाल ख़त्म होने से पहले चीन ताइवान को लेकर कोई सख़्त कदम भी उठा सकता है. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ चीन के 100 वर्ष पूरे होने पर आयोजित एक कार्यक्रम में जिनपिंग ने वादा किया था कि वह ताइवान को चीन के साथ मिलाकर रहेंगे. अगस्‍त में जब अमेरिकी स्‍पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान गईं तो PLA ने अपनी सबसे बड़ी मिलिट्री ड्रिल लॉन्‍च कर दी. यानी चीन की सेनाओं ने पहले ही मिलिट्री ड्रिल की तैयारी कर रखी थी.

ताइवान-चीन के बिगड़ रहे रिश्ते

अमेरिका से करीबी के बीच, ताइवान के चीन से रिश्‍ते बिगड़ते जा रहे हैं. जुलाई 2022 में अपने अमेरिकी समकक्ष जो बाइडेन से फोन पर बात करते हुए ताइवान को लेकर जिनपिंग ने कहा था कि अमेरिका आग से खेल रहा है. इधर चीन और रूस की क़रीबी अमेरिका को परेशान कर रही है.

पिछले एक दशक के शासन के दौरान चीन ने दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना का निर्माण किया है. इसके अलावा चीन ने एक परमाणु और बैलिस्टिक शस्त्रागार में भी बड़ा इजाफा किया है. यही कारण है कि चीन के पड़ोसी देश भारत, जापान, ताइवान, ऑस्ट्रेलिया और वियतनाम जैसे देश अपनी सैन्य शक्ति को चीन के बराबर खड़ा करने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं. संभव है जिनपिंग के अगले कार्यकाल के दौरान, इंडो-पैसिफिक में हथियारों की दौड़ तेज हो. इसकी तस्दीक इस बात से भी होती है कि भारत इन दिनों नई-नई मिसाइलें, एयर डिफेंस, पनडुब्बियां, लाइट टैंक जैसे हथियारों पर फोकस कर रहा है. जबकि दक्षिण कोरिया ब्लू-वाटर नेवी विकसित कर रहा है. वहीं ऑस्ट्रेलिया परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियां खरीद रहा है.

भारत की सीमा में घुसने का कर रहा प्रयास

वहीं अगर भारत के नज़रिए से देखें तो चीन बार-बार भारत की सीमा में घुसने का प्रयास कर रहा है. LAC पर चीन के बढ़ते घुसपैठ के बीच कांग्रेस लगातार आरोप लगाती रहती है कि भारतीय क्षेत्र पर चीन अपना कब्जा बढ़ा रहा है, लेकिन सरकार अपनी छवि बचाने के लिए चुप है. दरअसल जून महीने में LAC के पास चीनी एयरफोर्स के युद्धाभ्यास करने का खुलासा हुआ था. जानकारी के मुताबिक इसमें चीन ने वायु रक्षा हथियारों का भी बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया.

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जून के आखिरी हफ्ते में चीन का एक एयरक्राफ्ट LAC पर तैनात भारतीय जवानों की पोजिशंस के बहुत नजदीक आ गया था. जिसके बाद इंडियन एयरफोर्स एक्टिव हो गई थी. हालांकि भारत की चेतावनी के बाद चीनी एयरक्राफ्ट वापस चला गया.

सुब्रमण्यम स्वामी के आरोप

बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी पीएम मोदी पर देश को धोखा देने का आरोप लगाया है. उन्होंने ट्वीट कर दावा किया कि जिस एससीओ सम्मेलन में मोदी गए थे, वहीं पर शी जिनपिंग ऐसे मानचित्र बांट रहे थे जिनमें लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश को चीन का हिस्सा दिखाया गया था. इन क्षेत्रों को दूसरे आधिकारिक नाम भी दिए गए थे. रूस भी अपने मैप में चीन के दिए नाम स्वीकार कर लिए हैं.

भारत दूर-दूर तक चीन के आसपास नहीं

वहीं अर्थव्यवस्था की बात करें तो चीन की अर्थव्यवस्था 17.7 ट्रिलियन डॉलर की है. जो आज की 3.1 ट्रिलियन डॉलर वाली भारतीय अर्थव्यवस्था से लगभग 6 गुना ज़्यादा है. सिर्फ जीडीपी की बात कर लें तो आज चीन की जीडीपी भारत से 5.46 गुना बड़ी है. वर्ल्ड बैंक के अनुसार 2021 में भारत की जीडीपी 3.1 ट्रिलियन डॉलर की थी, जबकि चीन की 17.7 ट्रिलियन डॉलर की. अगर थोड़ी देर के लिए मान लें कि चीन की अर्थव्यवस्था यहीं रुक जाती है और भारतीय अर्थव्यवस्था 7-7.50 प्रतिशत की दर से लगातार बढ़ती रहती है, तो भी चीनी अर्थव्यवस्था को पार करने में भारत को लगभग 25 साल लगेंगे.

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प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय के एक बयान के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 2047 तक 20 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा, बशर्ते अगले 25 वर्षों में वार्षिक औसत वृद्धि 7-7.5 प्रतिशत हो. यह अगस्त महीने का बयान है. जबकि मंगलवार को आईएमएफ़ ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि 7.4 प्रतिशत से कम होकर 6.8 प्रतिशत होगी और 2023 में इससे भी कम. ऐसे में भारत चीन के आस-पास भी है या नहीं?

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