Durga Pooja 2021: दुर्गा पूजा के अलग-अलग रंग

Updated : Sep 30, 2019 14:30
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Editorji News Desk

यूं तो दुर्गापूजा की धूम देशभर में देखने को मिलती है लेकिन प.बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, त्रिपुरा में इसकी रौनक कुछ अलग ही है।  नवरात्रि के 9 दिनों में जो चहल-पहल और रौनक देश भर में दिखाई देती है वो माहौल और मन को भक्तिमय बना देती है। चलिए जानते हैं दुर्गापूजा से जुड़ी कुछ खास बातें।

पंडाल- दुर्गापूजा में बनाए गए पंडाल आकर्षण का केंद्र होते हैं, सिर्फ प.बंगाल ही नहीं बल्कि देशभर में जगह-जगह ये पंडाल बनाए जाते हैं। लोग अपने परिवार, दोस्तों के साथ एक पंडाल से दूसरे पंडाल घूमने जाते हैं। एक से बढ़कर एक डिजाइन के पंडाल लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। पंडाल के आसपास खाने-पाने के स्टॉल के साथ मेले भी लगते हैं

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गरबा- शारदीय नवरात्रि के दौरान पूरा गुजरात गरबा के रंगों में रंगा नजर आता है। जगह-जगह गरबा नाइट्स और इवेंट्स आयोजित किये जाते हैं जहां लोग पारंपरिक कपड़ों में सजधज कर बड़े उत्साह से हिस्सा लेते हैं। गरबा खेलने के लिए विदेशी सैलानी भी इस दौरान पहुंचते है। गरबा खेलने की तैयारी महीनों पहले से ही शुरू हो जाती है।

धुनुची डांस और ढाक- दुर्गा पूजा में धुनुची डांस न हो ऐसा हो ही नहीं सकता...बंगाली परंपरा के अनुसार एक खास तरह के बर्तन, धुनुची में सूखे नारियल के छिलकों को जलाकर देवी दुर्गा मां की आरती की जाती है...इस दौरान ढाक की थाप पर लोग धुनुची के साथ झूमकर नाचते हैं और करतब भी करते हैं.  

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कन्या पूजन- महाअष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन किया जाता है। 3 से 9 साल तक की कन्याओं को खीर, पूरी, हलवा, चने की सब्जी का भोज खिलाया जाता है और दक्षिणा-गिफ्ट देकर आर्शीवाद लेने के बाद विदाई दी जाती है

सिंदूर खेला- नवरात्रि के 10वें दिन यानी विजयदशमी को पंडालों में महिलाएं मां दुर्गा की पूजा करने के बाद उन्‍हें सिंदूर चढ़ाती हैं...खास कर बंगाली महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं, जिसे सिंदूर खेला कहा जाता है। मान्‍यता है कि मां दुर्गा की मांग भरकर उन्‍हें मायके से ससुराल विदा किया जाना चाहिए. सिंदूर खेला के बाद लोग नाचते-गाते हुए मां की प्रतिमा को पानी में विसर्ज‍ित कर विदाई देते हैं।

रावण दहन- शारदीय नवरात्रि के दसवें दिन देशभर में विजय दशमी का त्योहार मनाया जाता है। जिसे भगवान राम के लंका दहन से भी जोड़ा जाता है। इस मौके पर बहुत सी जगहों पर रावण दहन का आयोजन होता है। बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाने वाला विजयदशमी में रावण के पुतले को जलाया जाता है।

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