रावण दहन से लेकर एक से एक सुंदर बड़े पूजा पंडाल लगाने तक... दुर्गापूजा और दशहरा को लेकर हमारे देश में कई परंपराएं हैं. इसी तरह बंगाल में भी एक बहुत पुरानी परम्परा है, जो प्रचलित है वो है धुनुची नृत्य यानि धुनुची नाच.
दुर्गापूजा पंडालों में धुनुची नृत्य का नज़ारा देखकर आंखें ठहर जाती हैं. क्या पुरुष और क्या महिलाएं...इस डांस को करने वाले कभी दांतों में फंसाकर तो कभी दोनों हाथों के बीच, धुनुची की ऐसी अठखेलियां दिखाते हैं कि देखने वाले हैरान रह जाते हैं. सबसे खास बात है उनका गज़ब का बैलेंस. इस डांस के लिए ना तो कोई ट्रेनिंग होती है, और ना ही प्रैक्टिस. बस ढाक का साथ मिलते है देवी दुर्गा के भक्त हाथ में जलती धुनुची लेकर मंत्रमुग्ध होकर नाचने लगते हैं.
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क्या होता है धुनुची नृत्य?
नवरात्रि के दौरान दुर्गापूजा में होने वाला धुनुची नाच दरअसल शक्ति नृत्य है. मान्यताओं के मुताबिक, देवी भवानी ने महिषासुर का वध करने से पहले शक्ति और ऊर्जा बढ़ाने के लिए धुनुची नृत्य किया था. धुनुची नाच सप्तमी से शुरू होकर अष्टमी और नवमी तक चलता है. धुनुची से ही मां दुर्गा की आरती भी उतारी जाती है.
क्या होता है धुनुची?
दरअसल, धुनुची मिट्टी से बना होता है. इस धुनुची में सूखे नारयल की जाट, जलता कोयला, कपूर और सभी हवन सामग्रियों को रखकर इसे जलाया जाता है. पारंपरिक तौर पर यही धुनुची सबसे शुद्ध और सही मानी जाती है. इसे लेकर भक्त बंगाली धुनों पर ढाक यानि एक खास तरह के ढोल-नगाड़ों की थाप पर नृत्य करते हैं और देवी दुर्गा की उपासना करते हैं. ऐसा मानना है कि इसे देवी भगवती प्रसन्न होती हैं.
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धुनुची नृत्य दुर्गा पूजा का अटूट हिस्सा है. ये नृत्य इतना लोकप्रिय है कि दुर्गा पूजा के दौरान बंगाल के हर पूजा पंडाल में इस नृत्य की झलक आसानी से देखने को मिल जाती है.
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