दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court on UAPA in Delhi Riots Case) ने मंगलवार को महिला आवाज से जुड़े पिंजड़ा तोड़ की एक्टिविस्ट नताशा नरवाल (Natasha Narwal) और देवांगना कलीता (Devangana Kalita) के साथ साथ जामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा (Asif Iqbal Tanha) को जमानत दे दी. ये सभी पिछले साल से जेल में बंद हैं, दिल्ली पुलिस ने इन छात्रों पर दिल्ली दंगों (Delhi riots) को लेकर UAPA समेत कई तरह के केस दर्ज किए हुए हैं. इन्हें जमानत देते हुए हाईकोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और अनूप जयराम भंभानी की बेंच (Delhi High Court Bench) ने पुलिस और सरकार को लेकर कई अहम और तल्ख टिप्पणियां कीं.
दिल्ली दंगा: UAPA पर HC की सख्त टिप्पणी
- इस मामले में UAPA के तहत आतंकवादी गतिविधियों (धारा 15,17 और 18) के अपराधों में आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता
- विरोध करने के संवैधानिक अधिकार और आतंकी गतिविधि के बीच की रेखाओं को धुंधला कर दिया गया है
- हम यह कहने के लिए विवश हैं कि असंतोष को दबाने की अपनी चिंता में और इस डर में कि मामला हाथ से निकल सकता है, सरकार ने संवैधानिक रूप से अधिकृत 'विरोध का अधिकार' और 'आतंकवादी गतिविधि' के बीच की लाइन को धुंधला कर दिया है
- अगर इस तरह का धुंधलापन बढ़ता है तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा
- बिना किसी आधार के UAPA की सख्त धाराओं को लोगों पर लगाना इस कानून की मंशा और उद्देश्य को कमजोर करते हैं
तन्हा को लेकर चार्जशीट और 740 गवाहों की गवाही की सरकारी दलील पर कोर्ट ने कहा...
- तो क्या हम इंतजार करें कि तन्हा पहले लंबे समय तक जेल में बंद रहे और फिर हमें ये एहसास हो कि 740 गवाहों की गवाही निकट भविष्य में असंभव है
सरकारी पक्ष ने कहा कि आसिफ तन्हा SIO और जामिया कोओर्डिनेशन कमेटी का सदस्य है, इसपर हाईकोर्ट ने कहा
- ना तो SIO और ना ही जामिया कोओर्डिनेशन कमेटी कोई banned या Terrorist Organization हैं
- सरकार यातायात के मद्देनजर सड़क या हाईवे पर विरोध प्रदर्शन करने पर रोक लगा सकती है, लेकिन सरकार सार्वजनिक सभाओं के लिए सभी सड़कों या खुले क्षेत्रों को बंद नहीं कर सकती, जिससे कि लोगों के मौलिक अधिकारों को ठेस पहुंचे