बरसात की शुरुआत थी... दो आदिवासी दोस्त किसी काम से जंगल में थे... अचानक तूफान आया और एक लड़के पर बिजली गिरी... लड़के का हुलिया अब काला नहीं बल्कि लाल और सफेद हो चुका था... बिजली गिरने के बाद भी वह लड़का जिंदा रहा... उसके मुंह से शब्द निकले- भगवान का संदेश मिल गया... ये कोई मामूली लड़का नहीं था... बल्कि आगे चलकर इसे भगवान बिरसा के नाम से जाना गया...
आज 9 जून का संबंध इन्हीं बिरसा मुंडा (Birsa Munda) से है. आज झरोखा में जानेंगे इन्हीं के बारे में...
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क्यों मिला बिरसा नाम? || How he got his name Birsa
बात 1875 की है जब रांची अपनी प्राकृतिक संपदाओं के लिए दुनिया में मशहूर था और यहां के जंगल और जमीन पर अंग्रेजों के साथ साथ कई जमीदारों की भी नजरें थी. तब 15 नवंबर 1875 को रांची से 60 किलोमीटर दूर उलिहातु गांव में जन्म हुआ था बिरसा मुंडा का... बालक को बिरसा ( Birsa ) नाम इसलिए दिया गया था क्योंकि उस दिन बृहस्पतिवार का दिन था...
जंगल में जब एक दिन बच्चे पर बिजली गिरी तब वह घर लौटा... गांव वालों को लगा जैसे बच्चे में कोई दैवीय शक्ति आ चुकी हो... मुंडा जाति की एक महिला अपना बीमार बच्चा बिरसा के पास लाती है... कहते हैं, बिरसा के सिर पर हाथ रखने भर से बच्चा हंसने खेलने लगा... 8 दिन में एक बार खाना खाने वाले बिरसा की चर्चा सैंकड़ों किलोमीटर दूर तक पहुंचने लगी...
बिरसा ने अलग पंथ बना दिया || Birsa created a separate sect
कहते हैं कि वह अपने नुस्खों से चेचक को ठीक कर दिया करते थे... बिरसा पहले रोग दूर करने वाले के रूप में मशहूर हुए... और फिर लोग उनका उपदेश सुनने के लिए इकट्ठा होने लगे... वह हिंदू धर्म की कुरीतियों के भी खिलाफ थे... और ईसाई मिशनरियों के क्रिया कलापों के भी... बिरसा के अनुयायियों का एक अलग पंथ बन गया और वे उन्हें भगवान के तौर पर पूजने लगे. बिरसा के संदेश सुनकर लोग अब अपनी जमीन से ज्यादा प्यार करने लगे थे. जहां उनकी ख्याति बढ़ रही थी तो स्थानीय जंमीदार और मिशनरीज उनके दुश्मन भी बन रहे थे...
वे समझ चुके थे कि अगर समय रहते कुछ नहीं किया गया, तो सब हाथ से निकल जाएगा... ब्रिटिश अफसरों से सांठ गांठ करके एक रिपोर्ट तैयार की गई... इसमें बिरसा के कार्यकलापों और उपदेशों को संदेहास्पद बताया गया. तमाड़ क्षेत्र की रिपोर्ट में कहा गया कि बिरसा तमाम हथकंडों से लोगों को अपना अनुयायी बना रहा है जबकि सिंहभूम की रिपोर्ट में कहा गया कि वह आदिवासियों को ईसाई धर्म छोड़कर हिंदू बनने के लिए प्रेरित कर रहा है. वह जल्द जंगल अपने अधीन कर लेगा. उसका पंथ मानने वालों को ही जंगल में रहने की अनुमति दी जाएगी.
1897 को बिरसा जेल से रिहा हुए || Birsa was released from jail in 1897
जमींदारों की चाल कामयाब हो गई. सरकार ने बिरसा को बंदी बनाने का फैसला किया. डिप्टी कमिश्नर ने सैनिकों की टुकड़ी भेजी. लेकिन बिरसा घुटनों तक धोती, हाथ में तीर-धनुष लेकर अपने साथी आदिवासियों के साथ अंग्रेजों का काल बन गए. इस पराजय के बाद अंग्रेजों ने बिरसा पर सरकारी कार्य में बाधा डालने, अशांति फैलाने के मामले दर्ज किए. और फिर एक दिन रात के अंधेरे में बिरसा को चालाकी से बंदी बना लिया गया... कठोर कारावास के बाद 30 नवंबर 1897 को बिरसा जेल से रिहा हुए...
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बिरसा पर कार्रवाई के बाद जो मुंडा ईसाई बनने लगे थे, बिरसा ने उन्हें फिर से एकजुट करने की कोशिश की. मुंडाओं के पूर्वजों की स्मृति जगाने के लिए उन्होंने पवित्र यात्राएं की.. नवरतनगढ़ की मिट्टी और पानी लाई गई... चुटिया के मंदिर से तुलसी के पौधे, जगन्नाथपुर के मंदिर से चंदन... और डोमबारी पहाड़ को नया मुख्यालय बनाया गया.. 24 दिसंबर 1899 को मिशन उलगुलान को अंजाम दिया गया... रांची से चाईबासा तक के 400 वर्गमीटर के इलाके में पुलिस चौकियों, इसाई मिशनों और गोरे अफसरों के क्लबों पर तीरों की ताबड़तोड़ बारिश की गई.
सरबदा ईसाई मिशन का गोदाम जला दिया गया... खूंटी थाने में दो पुलिसवालों को घायल कर दिया गया... बिरसा और आदिवासियों के तीरों की मार के आगे मिशनरियों और अंग्रेजों के हौंसले धराशायी हो रहे थे. आखिर में हजारीबाग और कलकत्ता से सेना बुलाई गई.
8 जनवरी 1899 को हुआ अंग्रेज और मुंडाओं का संग्राम
डोम्बारी की पहाड़ी पर 8 जनवरी 1899 को भयंकर संग्राम हुआ. कमिश्नर फार्ब्स, डिप्टी कमिश्नर स्ट्रटफील्ड और कैप्टर रॉश के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना के सामने सीना तानकर खड़े थे 4 हजार मुंडा आदिवासी... इस हमले में स्टैट्समैन ने खबर 400 मुंडाओं के मारे जाने की छापी... कहते हैं कि जंग इतनी भीषण थी कि सैलरकब पहाड़ की मिट्टी में आज भी हम आदिवासियों के रक्त को सूंघ सकते हैं...
बिरसा यहां भी पकड़े नहीं जा सके तो उनपर 500 रुपये का इनाम घोषित कर दिया. इसपर भी निर्धन आदिवासी अपने कर्तव्य से डिगे नहीं... जंगल जंगल छान रही पुलिस ने आखिर में एक जगह विश्राम कर रहे बिरसा को पकड़ लिया.... बिरसा के 400 साथियों में से 17 जेल में ही दम तोड़ चुके थे... बिरसा को भयंकर यातनाएं दी गईं... 9 जून 1900 की सुबह बिरसा को खून की उल्टियां होने लगी और उनका निधन हो गया... मृत्यु का कारण 'एशियाटिक हैजा' कोबताया गया लेकिन ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेजों ने मुकदमे की कोई ठोस वजह न मिलने पर उन्हें जहर दे दिया था... मृत्यु के वक्त बिरसा मुंडा सिर्फ 25 साल के थे. 25 साल में वह भगवान का दर्जा पा चुके थे. जल जंगल और जमीन के लिए लड़कर कम उम्र में बेहद महान उपलब्धि पाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी बिरसा को हमारा कोटि कोटि नमन्
चलते चलते आज की दूसरी अहम घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं
- 1964: जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री ( Lal bahadur Shashtri) ने देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला।
- 1752: फ्रांसीसी सेना ने त्रिचिनोपोली में ब्रिटिश के समक्ष आत्मसमर्पण किया
- 1956: अफगानिस्तान में जबर्दस्त भूकंप से 400 लोगों की मौत।
- 1960: चीन में तूफान से कम से कम 1,600 लोगों की मौत।