हाइलाइट्स

  • कांशीराम के साथ सीखा राजनीति का कहकहा
  • 2017 में बीजेपी के साथ गए, 2019 में टूटा रिश्ता
  • 2022 में अखिलेश से दोस्ती लेकिन जल्द टूटा गठबंधन
  • राजभर अब मायावती की बीएसपी से चाहते हैं साझेदारी

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Uttar Pradesh Politics: ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको ठगा नहीं! अब किसके साथ जाएंगे राजभर? 2024 बड़ी चुनौती!

ओमप्रकाश राजभर के बयानों की भी चर्चा होती है और उनके राजनीतिक दोस्तों की भी. अब जब 2024 चुनाव आने को है, आइए जानते हैं कि राजभर की राजनीति किस करवट बैठ सकती है?

Uttar Pradesh Politics: ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको ठगा नहीं! अब किसके साथ जाएंगे राजभर? 2024 बड़ी चुनौती!

समाजवादी पार्टी (एसपी) गठबंधन से अलग होने के बाद सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) के लिए अब नये चुनावी साझेदार तलाशना एक चुनौती बन गई है. ज्यादातर विपक्षी दल विश्वास की कमी का हवाला देते हुए उनके संगठन में बहुत कम दिलचस्पी दिखा रहे हैं.

सुभासपा के सूत्रों ने कहा कि राजभर ने 2024 के आम चुनाव के लिए बीएसपी और कांग्रेस के साथ गठजोड़ करने के प्रति उत्सुकता तो दिखाई, लेकिन उन्हें बहुत कम सफलता मिली.

राजभर ने की है बीएसपी से दोस्ती की कोशिश

एसपी से गठबंधन टूटने के बाद सुभासपा (Suheldev Bhartiya Samaj Party) अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की तरफ हाथ बढ़ाने की कोशिश की तो बीएसपी के राष्ट्रीय संयोजक आकाश आनंद ने उन्हें 'स्वार्थी' बताते हुए सावधान रहने की जरूरत पर जोर दिया. दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दीपक सिंह ने भी राजभर की विश्वसनीयता पर सवाल उठा दिए.

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बीएसपी और कांग्रेस नेता की टिप्पणियों को नजरअंदाज करते हुए सुभासपा अध्यक्ष ने गठबंधन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात करने के उनके अधिकार पर सवाल उठाया और कहा कि कांग्रेस में सोनिया गांधी या प्रियंका गांधी और बीएसपी में मायावती (Mayawati) ही फैसले ले सकती हैं.

गौरतलब है कि बीएसपी प्रमुख मायावती के भतीजे और पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक आकाश आनन्द ने सोमवार को किए एक ट्वीट में किसी का नाम लिए बगैर कहा, 'बीएसपी की राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती जी के शासन,प्रशासन, अनुशासन की पूरी दुनिया तारीफ करती है लेकिन कुछ अवसरवादी लोग भी बहन जी के नाम के सहारे अपनी राजनीतिक दुकान चलाने की कोशिश करते हैं. ऐसे स्वार्थी लोगों से सावधान रहने की जरूरत है.'

आनन्द का यह बयान ऐसे वक्त आया जब राजभर बीएसपी से हाथ मिलाने की ख्वाहिश जता रहे थे. रविवार को जौनपुर में संवाददाताओं से बातचीत में राजभर ने कहा था कि उनका व्यक्तिगत रूप से मानना है कि अब बीएसपी से हाथ मिलाया जाना चाहिए.

हालांकि, आनन्द के ट्वीट के ठीक एक दिन बाद सुभासपा महासचिव और राजभर के पुत्र अरुण राजभर ने मंगलवार को कहा था कि उनकी पार्टी ने ना तो बीएसपी से कोई संपर्क किया और ना ही गठबंधन के बारे में कोई बातचीत हुई है.

कांग्रेस को भी राजभर ने दी है चोट

कांग्रेस के पूर्व विधान पार्षद दीपक सिंह ने 'पीटीआई—भाषा' से बातचीत में कहा, ''राजभर में विश्वसनीयता की कमी रही है. उन्हें यह प्रमाणित करना पड़ेगा कि वह भरोसे के हैं.'' सिंह ने कहा कि कांग्रेस के दरवाजे उसके लिए खुलेंगे जो भरोसे का हो, राजभर एक बार पहले कांग्रेस को धोखा दे चुके हैं. उन्होंने कहा, '' राजभर ने हमसे रैलियां कराई, हमारे संसाधन का उपयोग किया और गठबंधन एसपी से कर लिया. इस बार एसपी से भी गठबंधन तोड़ लिया.''

सिंह ने दावा किया कि उनकी पार्टी किसी से भी गठबंधन करेगी, तो इस भरोसे पर करेगी कि वह बीजेपी की ए, बी, सी टीम के रूप में न खड़ा हो.

दरअसल, राजभर की पार्टी का कोई गठबंधन लंबे समय तक नहीं चला है. साल 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले राजभर ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से गठबंधन किया था, लेकिन साल 2019 के लोकसभा चुनाव तक दोनों के बीच दूरियां बढ़ीं और रास्ते अलग हो गये.

इसके बाद साल 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले सुभासपा को एसपी गठबंधन में शामिल कर राजभर ने विपक्षी एकता का नारा दिया था, लेकिन यह गठबंधन भी राष्ट्रपति चुनाव के दरम्यान टूट गया.

राजभर ने एसपी प्रमुख अखिलेश यादव को एसी कमरों से बाहर निकलकर संघर्ष के लिए नसीहत दी थी. अब जबकि 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी तेज हो गई है, तो यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर राजभर किसके साथ रहेंगे.

बीजेपी ने राजभर को लेकर निगेटिव टिप्पणी नहीं की

उत्तर प्रदेश की राजभर बिरादरी में पकड़ रखने वाले ओमप्रकाश राजभर के सामने अब 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए एक तरह से विकल्पहीनता की स्थिति आ गई है, क्योंकि एसपी से गठबंधन टूटने के बाद बीएसपी और कांग्रेस ने भी उनसे दूरी बना ली है. हालांकि, अभी तक बीजेपी ने राजभर को लेकर कोई नकारात्मक टिप्पणी नहीं की है.

इस बारे में पूछे जाने पर सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि '' क्या दीपक सिंह कांग्रेस के और आकाश आनन्द बीएसपी के मालिक हैं. कांग्रेस के लिए फैसला सोनिया गांधी या प्रियंका गांधी को करना है, जबकि बीएसपी के लिए मायावती को निर्णय लेना है, ये तो बीच में चर्चा में बने रहने के लिए लोग बोलते रहते हैं.''

तो क्या आप इन दलों से तालमेल के लिए संपर्क बना रहे हैं, इस सवाल पर राजभर ने कहा कि ''आप लंबे समय से देख रहे हैं, जब चुनाव आता है, तब गठबंधन की बात होती है. इस समय कौन सा चुनाव है कि कोई गठबंधन करेगा और बात करेगा. अभी तो चल रहा है कि अपनी-अपनी पार्टी और अपना-अपना संगठन मजबूत करो. जब आपके पास ताकत रहेगी, अनुभव रहेगा, लोग रहेंगे तो 20 लोग आपसे बात करेंगे.''

राजभर को दी गई वाई कैटिगरी की सिक्योरिटी

राष्ट्रपति चुनाव के दौरान राजभर को यूपी सरकार ने वाई श्रेणी की सुरक्षा मुहैया कराई तो बीजेपी से सुभासपा के गठबंधन को लेकर अटकलें तेज हो गईं, लेकिन जब बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि '' ऐसे विषयों पर प्रदेश नेतृत्व की सहमति से केंद्रीय नेतृत्व फैसले लेता है, लेकिन अभी यह काल्पनिक प्रश्न है.'' उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि क्या सुभासपा ने इसके लिए कोई पहल की है, अभी इसमें कयास लगाकर कोई भी टिप्पणी उचित नहीं होगी.

ओमप्रकाश राजभर से जब पूछा गया कि अगर किसी बड़े दल से आपका गठबंधन नहीं हुआ तो क्या विकल्प के तौर पर आप छोटे दलों को फिर से एकजुट करेंगे. इस पर राजभर ने कहा कि यह तो आखिरी विकल्प है, अभी तो किसी से कोई बातचीत ही नहीं हुई है. राजभर ने कहा, ''हम अभी संगठन पर पूरा ध्यान दे रहे हैं और हर दिन प्रदेश में 50 से 60 बैठकें हो रही हैं. हमने यूपी को चार भागों में बांट दिया है, पूर्वांचल, पश्चिमांचल, मध्यांचल और बुंदेलखंड. प्रदेश में चार प्रांत बना दिये हैं और सभी प्रांतों में पार्टी के संगठनात्मक स्तर पर 14-14 मोर्चे बना दिए हैं.''

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उन्होंने कहा कि संगठन मजबूत करने के बाद ही इस विषय पर कोई बातचीत होगी. उत्तर प्रदेश में एक जानकारी के मुताबिक करीब चार फीसदी राजभर बिरादरी की संख्या है, जिनमें श्रावस्ती, बहराइच, बलरामपुर, अयोध्या, अंबेडकरनगर, गोरखपुर, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, कुशीनगर, महराजगंज, देवरिया, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, चंदौली, सोनभद्र, मऊ आदि जिलों में करीब 10 फीसदी इस बिरादरी की आबादी है.

कांशीराम के साथ राजभर ने शुरू की राजनीति

राजनीतिक जानकारों के अनुसार बीएसपी संस्थापक कांशीराम के सानिध्य में राजनीति का ककहरा सीखने वाले ओमप्रकाश राजभर ने अपनी बिरादरी के लोगों को एकजुट कर 2002 में सुभासपा की स्थापना की और साल 2004 में लोकसभा चुनाव में 14 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे.

इसके बाद वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव से ही वह छोटे दलों के गठबंधन से चुनाव मैदान में उतरने का फार्मूला बनाए, लेकिन उन्हें पहली बार सफलता 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी से गठबंधन के बाद मिली.

बीजेपी ने राजभर को समझौते के तहत आठ सीट दी और चार सीट पर इनके उम्मीदवार जीत गये. राजभर को योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व की सरकार में मंत्री बनाया गया, लेकिन दो वर्ष के भीतर ही यह गठबंधन टूट गया.

इसके बाद वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले राजभर ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया और 17 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे जिनमें विधानसभा की 6 सीट पर सुभासपा को जीत मिली.

राष्ट्रपति के चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के कार्यक्रम में लखनऊ में न बुलाए जाने से नाराज राजभर ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन दिया और वह चुनाव जीत गईं.

इसके बाद एसपी ने एक पत्र जारी कर राजभर को कहीं भी जाने के लिए आजाद कर दिया. फिर राजभर ने भी एसपी गठबंधन से अलग होने का ऐलान कर दिया.

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