हाइलाइट्स

  • सोवियत यूनियन बिखराव की कगार पर था
  • 1989 में जर्मनी में बर्लिन की दीवार गिरा दी गई
  • पूर्वी यूरोप के कई देश सोवियत से छिटक गए थे
  • 1991 में खाड़ी युद्ध को टीवी पर लाइव देखा गया

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Story of India: मंडल-कमंडल के महाभारत से लेकर करगिल के रण तक, 90 के दौर में कैसे बदला इंडिया? | EP #4

1990 के दशक में भारत ने दुनिया के लिए अपने दरवाजे खोले. उदारीकरण ने देश को नई राह दिखाई. इसके साथ ही बॉलीवुड, राजनीति, समाज हर क्षेत्र को इस दशक ने बदलकर रख दिया. आइए जानते हैं 90 के दौर की कहानी...

Story of India: मंडल-कमंडल के महाभारत से लेकर करगिल के रण तक, 90 के दौर में कैसे बदला इंडिया? |  EP #4

Independence Day 2022 : दुनिया को कई घटनाओं ने हमेशा के लिए बदलकर रख दिया... चाहे वह सेकेंड वर्ल्ड वार हो या अलग अलग कालखंडों में अलग-अलग धर्मों का उदय, औद्योगिक क्रांति ने यूरोप को भी बदला. आजादी के 43 साल बाद भारत में भी एक ऐसा दौर आया जिसने देश को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया. ये था 90 का दौर... वह दौर जिसने भारत के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र पर गहरा असर डाला. आज हम जानेंगे कि 1990 के दौर ने किस तरह से भारत को हमेशा के लिए बदल (How 1990 era changed India) डाला.

इसी दौर में भारत राजनीतिक उथल पुथल से गुजरा... राजीव गांधी का निधन, मंडल-कमंडल की राजनीति (Mandal Kamandal Politics), राम मंदिर आंदोलन (Ram Mandir Movement) ने जहां राजनीतिक तौर पर देश में भूचाल लाने का काम किया तो 1991 के आर्थिक सुधारों ने उन्नति की नई गाथा भी लिख डाली.

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भारत जहां राजनीतिक बवंडर में घिरा था, तो दुनिया में भी ऐसा ही असर दिखाई दे रहा था... सोवियत यूनियन (The Collapse of the Soviet Union) बिखराव की कगार पर था... 1989 में जर्मनी में बर्लिन की दीवार गिरा (Fall of the Berlin Wall) दी गई थी.. पूर्वी यूरोप के कई देश सोवियत से छिटक गए थे. वामपंथ धराशायी हो रहा था और दुनिया के बड़े देश इसे पूंजीवाद की विजय के तौर पर देख रहे थे.

1991 में खाड़ी युद्ध (Gulf War) दुनिया का ऐसा पहला युद्ध बना जिसे टीवी पर लाइव देखा गया.

90 के दौर की शुरुआत में भारत आर्थिक संकट में फंस गया था... देश के आबादी 90 करोड़ थी और उसके पास सिर्फ 1.1 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था... इससे गिनती के दिन का ही आयात हो सकता था... अर्थव्यवस्था को रेटिंग एजेंसियों ने 6 महीने में 2 बार घटाकर अनिश्चित दर्जा दे दिया था. महंगाई बढ़ रही थी और देश दिवालिया होने की कगार पर था.

भारत के पास अमेरिका के नेतृत्व वाले मुक्त व्यापार व्यवस्था से जुड़ने का विकल्प था.

राजीव गांधी की हत्या के बाद कैसे थे हालात

21 मई 1991 में राजीव गांधी की हत्या (Rajiv Gandhi Assassination) के बाद जब नरसिम्हा राव (Narasimha Rao) केंद्रीय राजनीति में लौट आए थे... राव को 24 घंटे से भी कम वक्त में शपथ लेनी थी और ऐसी टीम चुननी थी जो प्रथम परिवार और कमजोर हो चुकी कांग्रेस के लिए भी बेहतर हो. एक रात राव एक शांत चैंबर में पुराने साथी सीताराम केसरी के साथ राव पीसी एलेक्जेंडर का इंतजार कर रहे थे.

तभी उन्हें सूचना मिली कि एक महत्वपूर्ण शख्स उनसे मिलने आया है, यह थे कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा, जो एक काबिल नौकरशाह थे. नौकरशाही के प्रमुख के तौर पर उन्होंने दिसंबर 1990 में कार्यभार संभाला था और करियर के सबसे ज्यादा उथल-पुथल वाले दौर से गुजर चुके थे. सिर्फ डेढ़ साल के अंदर भारत अपने तीसरे प्रधानमंत्री को शपथ दिलाने वाला था.

राव ने चंद्रा को अंदर बुलाया. शपथ योजना पर चर्चा हुई. इसी दौरान चंद्रा ने अपने साथ लाई एक फाइल निकाली और उसे भावी प्रधानमंत्री को सौंप दिया. इसमें दो नोट थे. एक नोट में आर्थिक संकट का विस्तृत खाका था और दूसरे नोट में देश की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने का खाका था.

इस योजना को पूरा करने के लिए एक काबिल अधिकारी की जरूरत थी. राव ने मशहूर अर्थशास्त्री और आरबीआई के पूर्व गवर्नर आईजी पटेल को टीम में शामिल होने का न्योता दिया. पटेल ने माफी मांगते हुए एक दूसरे नौकरशाह मनमोहन सिंह का नाम विकल्प के तौर पर सुझाया. राव की जरूरत एक ऐसे शख्स की है, जो आईएमएफ और विश्व बैंक को स्वीकार्य हो, जो अर्थव्यवस्था को जाने और उस विशेष स्थिति को समझे, जो राजनीतिक निर्णय प्रक्रिया को नियंत्रित करती है.

मनमोहन सिंह तमाम मानकों पर खरा उतरते थे. मनमोहन और राव ने मिलकर देश को नई तस्वीर में गढ़ा.. भारत को नेहरू के सोशलिज्म को छोड़कर ग्लोबल फ्री मार्केट इकॉनमी में बदल दिया गया.

इन्हें एलपीजी रिफॉर्म्स कहा गया, जिसका मतलब था लिब्रलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन---रिफॉर्म्स से पहले देश की जीडीपी 4 फीसदी के आसपास थी, जो बाद में 6 फीसदी के पार पहुंच गई थी.. हालांकि इस दौर में नौकरियों की कमी और गरीबों की अनदेखी के आरोप भी लगे.

1990 में टीवी-सिनेमा में बदलाव

90 के दशक में भारतीय लोगों के टीवी देखने का अंदाज भी बदला.. अर्थव्यवस्था में बदलाव की वजह से भारत में कई बड़े प्राइवेट चैनल भी आए... सैटलाइट टीवी का चैनल पूरे देश में चला... बड़ी बड़ी कंपनियां भारत आईं तो इन्हें जरूरत थी अपने ब्रैंड्स को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए बड़े चेहरों की...

ऐसे दौर में जब देश निराशा में डूबा था... तब क्रिकेट के मैदान पर हर रिकॉर्ड को ध्वस्त कर रहे एक यंग प्लेयर पर सबकी नजरें गई.... जिसका नाम था सचिन रमेश तेंदुलकर (Sachin Ramesh Tendulkar)... लोग उसके खेल में अपने गम भूल रहे थे, तो कंपनियों को अपना ब्रांड अंबैसडर मिल रहा था.

पहली बार कोई खिलाड़ी लगभग हर फील्ड के ऐड्स में छा गया.. सचिन ने पेप्सी, एमआरएफ सहित कई बड़ी कंपनियों के विज्ञापन किए... वह टीवी पर लगभग हर कमर्शियल में नजर आते थे. भारतीयों ने उनके द्वारा एंडोर्स्ड किए ब्रैंड्स को हाथों हाथ लिया...और वह हैप्पी इंडिया का सूत्रधार बन गए...

90 के दशक में टीवी पर निजी चैनलों की शुरुआत हुई.

अप्रैल 1996 में स्टार ने स्टार प्लस नाम से हिंदी एंटरटेनमेंट चैनल की शुरुआत की. इस चैनल पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम घर घर में छा गए...

एशियानेट चैनल को साल 1993 में शुरू किया गया...

1994 में ही चैनल V की शुरुआत हुई...

90 के दशक को बॉलीवुड के लिए भी याद किया जाता है. यही वह दौर था जब बॉलीवुड में स्टार्स की नई पौध खड़ी हुई. शाहरुख, अक्षय, अजय देवगन, आमिर, सलमान को इसी दौर ने इंडस्ट्री में पहचान दी और इन्हें बड़ी कामयाबी भी मिली.

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बॉलीवुड में 70 के दौर के बाद 90 ही ऐसा दौर है, जिसके गाने आज भी होठों पर रह रहकर आ ही जाते हैं.

1990 में राजनीतिक बदलाव

मंदिर और मंडल कमंडल की राजनीति ने भारत को पूरी तरह बदल दिया.. हालांकि यही वह दौर था जब 1988-89 के दौर में कश्मीर में पंडितों का पलायन हुआ... इस दौर में भारतीय राजनीति में कांग्रेस के विरोध वाली राजनीतिक और राजनीतिक दल मजबूत हुए.

आपातकाल के बाद जनता पार्टी ने सरकार तो बनाई लेकिन चली नहीं... 1980 में मंडल कमीशन ने 52 फीसदी ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण की बात कही... इसका असर यूपी और बिहार में सबसे ज्यादा हुआ... 120 संसदीय सीटों वाले यूपी और बिहार में कुछ क्षेत्रीय ताकत उभरीं...

1989 के आम चुनाव में बोफोर्स का जिन्न कांग्रेस को ले डूबा और वीपी सिंह की जीत हुई... सत्ता में आते ही वीपी सिंह ने मंडल कमीशन को लागू कर दिया... पूरे भारत में आरक्षण व विरोधी आंदोलन तेज हुआ... नतीजतन क्षेत्रीय दल और भी मजबूत हुए और कांग्रेस का हिंदी पट्टी के राज्यों में प्रभाव कम होता चला गया...

कांग्रेस अकेले दम पर केंद्र की सत्ता में नहीं आई... इसी दौर ने भारत में गठबंधन सरकार की शुरुआत की...

1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद को ध्वस्त किया गया... जातीय राजनीति को धर्म की तरफ मोड़ने की कोशिश में बीजेपी काफी हद तक कामयाब हुई... 1984 में 2 सीटें जीतने वाली पार्टी 1996 में 161 सीटें जीती..

1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार भी बनी... यह पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया...

1990 का मुंबई अंडरवर्ल्ड

फरवरी 1981 में, मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर के सामने पेट्रोल पंप पर साबिर इब्राहिम कासकर की हत्या कर दी गई. 4 लोगों ने पॉइंट ब्लैंक से उसे 5 गोलियां मारी गई. कासकर दाऊद इब्राहीम का भाई था. इस हत्या ने मुंबई में डी कंपनी और अंडरवर्ल्ड के खूनी खेल की शुरुआत की जो अगले 20 सालों तक चलती रही...

1980 और 90 का दशक पैसेवालों, अंडरवर्ल्ड के नेक्सस के बीच झूलता रहा.. लॉ एंड ऑर्डर को करप्शन और दहशत से धराशायी कर दिया गया... दाऊद के बदले की आग ने पठान गैंग का सफाया कर दिया.. डी गैंग के नाम की दहशत मुंबई की हवा में तैरने लगी... उगाही का खुला खेल चला और जिसने हामी नहीं भरी उसे जान गंवानी पड़ी...

इसके बाद अंडरवर्ल्ड ने कुछ ऐसा किया जिसने सिर्फ मुंबई को ही नहीं, बल्कि देश को भारी चोट पहुंचाई... 12 मार्च 1993 को मुंबई बम धमाकों को अंडरवर्ल्ड की सरपरस्ती में अंजाम दिया गया. धमाके में 250 से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी और 800 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए...

कब हुआ राजीव गांधी का निधन

21 मई, 1991 की रात दस बज कर 21 मिनट पर तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक आत्मघाती बम धमाके में भारत रत्न राजीव गांधी की हत्या कर दी गई. उनके जन्म के तीन साल बाद देश आजाद हुआ था... बड़े होने के बाद राजीव गांधी ने न केवल जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी की राजनीतिक विरासत को संभाला, बल्कि देश को तकनीक व वैश्विक बुलंदियों तक पहुंचाने के लिए अभूतपूर्व कार्य किए... उनका बचपन, शिक्षा, राजनीतिक जीवन और लव लाइफ हर लम्हें के दिलचस्प किस्से हैं.

राजीव गांधी हत्याकांड एक ऐसा हत्याकांड था जिसने देश ही नहीं पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था... इस हत्या के पीछे था श्रीलंका में सक्रिय संगठन लिट्टे यानी लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम...

परमाणु परीक्षण

11 मई 1998 में भारत ने पोखरण में ऑपरेशन शक्ति के तहत सफल परमाणु परीक्षण किया था. उसके बाद 13 मई को न्यूक्लियर टेस्ट किए गए. इन परीक्षणों का नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था. उस वक्त देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अलट बिहारी वाजपेयी ने 11 मई 1999 में 11 मई को नेशनल टेक्नोलॉजी डे के रूप में घोषित किया था. नेशनल टेक्नोलॉजी डे राजस्थान के पोखरण के परमाणु परीक्षणों की वर्षगांठ का प्रतीक है.

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90 का दौर ऐसा दौर जिसने भारत को हर रूप में बदलकर रख दिया... भारत के बनने की कहानी में 90 में हर कदम पर कई कहानियां हैं. आशा करते हैं, आपको हमारी दी गई जानकारी से भारत के 90 के दौर का गहरा अहसास हो गया होगा.

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