साल 2020 में एक महामारी (Coronavirus) ने दुनिया को ठप कर दिया. अब लगभग 2 साल बाद, नया वेरिएंट,फिर जीवन पर असर डाल रहा है. हालांकि, हम मनुष्य स्वभाव से बेहद लचीले हैं. महामारी के तकलीफदेह दौर के बीच, हमने सामान्य ज़िंदगी की ओर लौटने के लिए रास्ते भी बनाए हैं. और हमारा एक रास्ता इलेक्शन (Elections) से होकर गुजरता है. जब हर बात बिगड़ने लगती है, डेमोक्रेसी को खड़ा होना ही पड़ता है, है न? लेकिन कैसे और किस कीमत पर?
चुनाव पर चर्चा के इस हफ्ते के ऐपिसोड में, हम पीछे मुड़कर देखेंगे और पूछेंगे कि क्या देश हाल के दिनों में अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा है?
जब देशभर में ओमिक्रॉन (Omicron in India) के मामले खतरनाक रूप से बढ़ रहे हैं, तब उत्तर प्रदेश में चुनावी प्रचार (Narendra Modi Election Campaign) पर अभी लगाम लगनी शुरू हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लखनऊ रैली, जिसमें शुरुआती तौर पर 10 लाख लोगों के शामिल होने का अंदाजा था, वह रद्द कर दी गई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) की नोएडा रैली रद्द हो चुकी है. कांग्रेस ने राज्य में प्रस्तावित चार मैराथन दौड़ और सभी बड़ी रैलियों को स्थगित कर दिया है. अखिलेश यादव ने भी अपना अयोध्या, गोंडा और बस्ती दौरा रद्द कर दिया है. लेकिन, क्या यह काफी है? या बहुत देर हो चुकी है?
ऐसी तस्वीरें हम बीते साल से ही देख रहे हैं. एक तरफ बंगाल में रैलियां- दूसरी तरफ मायूसी और हताशा. देश में महामारी के दौरान हुई मौतों (Death in India due to Corona) का आधिकारिक आंकड़ा 5 लाख का है लेकिन अनाधिकारिक तौर पर इसे 50 लाख बताया जाता है. यह कहना कि कोविड ने भारत में स्वास्थ्य ढांचे को धराशायी कर दिया, कम होगा.
सिर्फ 8 महीने पहले तक, उत्तर प्रदेश में कोविड -19 के करीब 30,000 मामले सामने आए थे. फिर भी हमने देखा कि राजनीतिक लोगों ने दूसरी घातक लहर से थोड़ी देर से सीखा. इससे पहले कि हम इस बात पर विचार करें कि इतने बड़े पैमाने पर चुनाव का क्या मतलब है, जब देश संभावित तीसरी लहर के मुहाने पर खड़ा है, आइए उत्तर प्रदेश में कोविड के हालात पर एक नज़र डालते हैं.
कुल केस - 17 लाख से ज्यादा
कुल मौतें - 22,916
सिर्फ 37 फीसदी जनसंख्या को ही वैक्सीन की दोनों खुराक लगी है
उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में टीकाकरण (Corona Vaccination in Uttar Pradesh) की रफ्तार अच्छी है. डब्ल्यूएचओ ने भी राज्य के डोर टू डोर कैंपेन की सराहना की है, लेकिन पीठ थपथपाने से पहले कुछ ऐसी अहम बातें हैं जिनपर गौर किया जाना चाहिए..
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उत्तर प्रदेश में ऑक्सीजन की स्थिति पर विचार किए जाने की जरूरत है. अप्रैल 2021 में योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को निर्देश दिया था कि ऑक्सीजन की कमी के बारे में अफवाह फैलाने वालों की संपत्ति जब्त करने के साथ उनपर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) लगाया जाए.
दूसरी लहर के दौरान गंगा में शवों और अंतिम संस्कार की तस्वीरों ने देश की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया था. श्मशान घाट में जगह न होने की खबरों के बाद सरकार ने वहां होर्डिंग लगवाए और फोटोग्राफी को भी बैन कर दिया, इसे कौन भूल पाएगा?
भयावह तस्वीरों की कई कहानियां सामने आईं. अब जब पूरे देश में ओमिक्रॉन के मामले खतरनाक रफ्तार से बढ़ रहे हैं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अधिकारियों से रैलियों पर प्रतिबंध लगाने और चुनाव टालने को कहा.
हालांकि राजनीतिक दलों ने कई बड़ी रैलियों को रद्द कर दिया है और साथ ही राज्य में कई सुरक्षा उपायों को लागू भी किया गया है.
अरविंद केजरीवाल और डिंपल यादव दोनों के कोविड पॉजिटिव होने के बाद यह सवाल ज़रूर पूछा जाना चाहिए कि क्या जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ जायज है? यह पहली बार नहीं है जब यूपी, चुनावों की वजह से विनाशकारी त्रासदी की ओर बढ़ रहा है. पिछले साल ही दूसरी लहर की शुरुआत में हुए पंचायत चुनाव में ड्यूटी के दौरान 1621 शिक्षकों की मौत हो गई थी.
क्या देश हाल के दिनों में अपने सबसे काले दौर में से एक को देख रहा है?
क्या हमने समय रहते आपदा से बचने का उपाय किया?
या यह सब बहुत कम है - और अब बहुत देर हो चुकी है?
हमें उम्मीद है कि हमें इसे पता नहीं लगाना पड़ेगा
जब से कोरोनवायरस की वैक्सीन को सरकार की हरी झंडी मिली है, डॉक्टरों और संस्थानों ने वायरस को बढ़ने से रोकने के लिए जनता के टीकाकरण के महत्व पर बार-बार जोर दिया है. हालांकि, स्थिति की गंभीरता ने भी वैक्सीनेशन कैंपेन के राजनीतिकरण में कोई रुकावट नहीं डाली. हालांकि अखिलेश यादव ने बाद में वैक्सीन लगवाई लेकिन समाजवादी पार्टी के नेता ने शुरुआत में इसे 'बीजेपी की वैक्सीन' कहकर टीका लगवाने से इनकार कर दिया था.
एक ओर, उत्तर प्रदेश का रवैया सबसे जुदा है लेकिन थ्योरी ऑफ इवॉल्युशन पर भी ध्यान देना चाहिए. जीवित रहने के लिए, प्रजातियां नए तरीके सीखती हैं. यूपी में एक वर्ग ने ऐसा किया भी.
दो साल पहले उत्तर प्रदेश में एक इंटीग्रेटेड इमर्जेंसी रिस्पॉन्स सपोर्ट सिस्टम शुरू हुआ था. राज्य में पुलिस, फायर विभाग और एम्बुलेंस के लिए अलग-अलग हॉटलाइन को हटा दिया और इमर्जेंसी नंबर 112 की शुरुआत की गई.
कुछ लोग भगवान राम को यूपी की राजनीति के केंद्र में देख सकते हैं लेकिन इस चुनावी मौसम में एक नया भगवान मैदान में है. यूपी सिंहासन के लिए चल रहे महाभारत में भगवान कृष्ण सक्रिय रूप से शामिल हैं. निजी तौर पर नहीं, बल्कि सपनों के जरिए
आप एक बार फिर से चीख सकते हैं, ये क्या हो रहा है? लेकिन रुकिए, रुकिए. यह सीधे-सादे नागरिकों और उन्हें खुश करने वाले वायरल वीडियो का मामला नहीं है. राजनेताओं के मुताबिक, भगवान कृष्ण भी कैंपेन में शामिल हैं - आप राज्य के लिए जिम्मेदार प्रतिनिधियों को जानते हैं, इसलिए हम इसे एक झटके से खारिज नहीं कर सकते. यह गंभीर है - मानिए या न मानिए.
बीजेपी के राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने दावा किया है कि भगवान कृष्ण उनके सपनों में आए और उनसे कहा कि सीएम योगी आदित्यनाथ को मथुरा से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहिए. सांसद ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर योगी को कृष्ण की जन्मस्थली से पार्टी का उम्मीदवार घोषित करने का आग्रह किया है.
सांसद ने आगे दावा किया कि भगवान ने उन्हें मध्यस्थता करने और यह संदेश देने के लिए कहा है कि यह उनकी इच्छा है कि वे योगी को मथुरा से चुनाव लड़ते हुए देखें.
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दिव्य वाहक पर कटाक्ष करते हुए अपने सपनों की बात बताई. पूर्व सीएम ने कहा कि भगवान कृष्ण हर रात सपने में उन्हें यह बताने के लिए प्रकट होते हैं कि सपा ही अगली सरकार बनाने जा रही है.
हालांकि, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) ने अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के सपनों पर कटाक्ष किया है. योगी ने तो यहां तक कह दिया कि सपा सरकार कंस की पूजा करती है.
मिलते हैं अगली बार चुनाव पे चर्चा के नए एपिसोड में... इसी जगह इसी समय... अपना ध्यान रखिएगा