Vladimir Putin Birth Anniversary : रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का जन्म 7 अक्टूबर 1952 को हुआ था. व्लादिमीर पुतिन ने KGB एजेंट के तौर पर अपना करियर शुरू किया था. इसके बाद वह आगे बढ़ते हुए रूस के राष्ट्रपति बन गए. आइए जानते हैं रूस के राष्ट्रपति के जीवन के अनछुए पहलू को करीब से...
9 नवंबर 1989…पूर्वी और पश्चिमी बर्लिन के बीच बनाई गई दीवार जनता ने गिरा दी थी... पूर्वी जर्मनी का कम्युनिस्ट शासन इसे देखता रह गया... इस घटना ने जहां पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी को एक किया, वहीं USSR के पतन की पटकथा भी लिख डाली थी दी… धराशायी होती सीमाओं में उदय हो रहा था एक ऐसे राजनेता का जो आने वाले दौर में एक ताकतवर देश का मुखिया बनने वाला था...
बर्लिन की दीवार गिरने के कुछ हफ्ते बाद Dresden में एक भयानक घटना हुई... 5 दिसंबर 1989 को जनता एकजुट होकर सड़कों पर निकल आई थी...
भीड़ ने ईस्ट जर्मनी की सीक्रेट पुलिस के हेडक्वॉर्टर पर धावा बोल दिया. प्रदर्शनकारियों के एक ग्रुप ने सड़क को पार किया. ये भीड़ दूसरी ओर मौजूद बड़े घर में दाखिल होने का फैसला कर चुकी थी... यह घर सोवियत सीक्रेट सर्विस KGB का हेडक्वॉर्टर था.
तब ग्रुप में शामिल रहे सिगफ्राइड दन्नाथ ने बाद में बताया कि गेट पर मौजूद गार्ड उन्हें देखकर अंदर भाग गया ... लेकिन तुरंत ही एक अधिकारी बाहर आया - हाइट में छोटा...सख्त और तमतमाया चेहरा लेकर.
"उसने ग्रुप से कहा, 'इस प्रॉपर्टी में घुसने की कोशिश भी मत करना. मैं और मेरे साथी हथियारों से लैस हैं, और जरूरत पड़ी तो हम इनका इस्तेमाल करने से भी पीछे नहीं हटेंगे... ये सुनते ही वह ग्रुप जो कुछ भी करने पर उतारू था, चुपचाप पीछे लौट गया...
उस KGB अधिकारी को पता था कि हालात कितने खतरनाक हैं. उन्होंने बाद में बताया कि तब सुरक्षा के लिए Red Army (सोवियत सेना) टैंक यूनिट के हेडक्वॉर्टर को फोन घुमाया गया था.
लेकिन उन्हें जो जवाब मिला उसने उस अधिकारी की जिंदगी बदल कर रख दी.
फोन पर उसने कहा - "हम मॉस्को से मिले आदेश के बिना कुछ नहीं कर सकते," दूसरी ओर से आवाज आई - "और मॉस्को खामोश है." मॉस्को का मतलब सोवियत यूनियन की सरकार से था...
"मॉस्को खामोश है" के जवाब ने इस शख्स को झकझोर दिया था... 1989 की क्रान्ति के बाद इस शख्स की तकदीर ऐसी पलटी कि अब वह खुद "मॉस्को" बन चुका है, और इन शख्स का नाम है रूस के राष्ट्रपति Vladimir Putin...
7 अक्टूबर 1952 को हुआ था पुतिन का जन्म
7 अक्टूबर 1952 को ही पुतिन ने इस दुनिया में कदम रखा था... फैक्ट्री मजदूर मां-पिता की संतान पुतिन की दादी लेनिन और स्टालिन की पर्सनल कुक थीं...
पुतिन की बायोग्रफी लिखने वाले लेखक बोरिस रीट्सचस्टर कहते हैं- अनुभव ने उन्हें वह सबक सिखाया जो वह कभी नहीं भूले
सबसे बढ़कर, इसने उन्हें राजनीतिक कमजोरियों को लेकर एक सोच दी जिसे बदलने के लिए पुतिन ने पूरा जोर लगा दिया.
1980's में जर्मनी के ड्रेसडेन पहुंचे थे पुतिन
पुतिन 1980 के दशक के मध्य में केजीबी एजेंट के रूप में अपनी पहली विदेशी पोस्टिंग के लिए जर्मनी के ड्रेसडेन पहुंचे थे...
सोवियत सेना और जासूसों से भरा पश्चिमी यूरोप के करीब यह इलाका मॉस्को का महत्वपूर्ण आउटपोस्ट था.
पुतिन तब से केजीबी में शामिल होना चाहते थे जब वह टीनेजर थे, वह बचपन से ही सीक्रेट सर्विस की कहानियां सुनते रहे थे... उन्होंने बाद में ये कहा था कि एक अकेला शख्स चाह ले तो वह सब हासिल कर सकता है जिसे पूरी सेना हासिल नहीं कर सकती है. एक जासूस हजारों लोगों के भाग्य का फैसला कर सकता है.
KGB में पुतिन का काम प्रेस क्लिपिंग जमा करना था
शुरुआत में ड्रेसडेन में उनका ज्यादातर काम बेमन का था. व्लादिमीर पुतिन की जीवनी लिखने वाले लेखक माशा गेसन अपनी किताब “मैन विदआउट अ फेस, द अनलाइकली राइज ऑफ व्लादिमीर पुतिन” में लिखते हैं कि “23 साल की उम्र में KGB ज्वाइन करने वाले पुतिन के कई जासूसी किस्से उनके समर्थक सुनाते हैं, मगर जो दस्तावेज उपलब्ध हैं, उसके मुताबिक पूर्वी जमर्नी में पुतिन का काम महज प्रेस क्लिपिंग जमा करना और स्थानीय मीडिया पर नजर रखने भर का था, उन्हें कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी गई थी…”
ड्रेसडेन में स्टासी आर्काइव्स में दस्तावेजों में पुतिन का एक पत्र है. इसमें वह एक मुखबिर के फोन का बंदोबस्त करने के लिए स्टासी बॉस से मदद मांग रहे है.
तब पुतिन की पत्नी रहीं लुडमिला ने बाद में याद किया कि जीडीआर में जिंदगी यूएसएसआर से बहुत अलग थी.
पुतिन पड़ोसियों के लिए केजीबी और स्टासी परिवारों के साथ फ्लैटों के एक विशेष ब्लॉक में रहते थे. वह और उनकी पत्नी कम खर्च करते और कार खरीदने के लिए पैसे बचाने की पूरी कोशिश करते थे...
पूर्वी जर्मनी यूएसएसआर से दूसरे तरीके से अलग थी. यहां कई अलग-अलग राजनीतिक दल थे.
1989 में KGB के लिए नर्क बन गया था पूर्वी जर्मनी
1989 में यह स्वर्ग केजीबी के लिए नर्क बन गया... ड्रेसडेन की सड़कों पर पुतिन ने जनता का गुस्सा देखा..
व्लादिमीर पुतिन मान चुके थे कि सीनियर सोवियत अधिकारी पूर्वी जर्मनी में टैंक भेजेंगे लेकिन मिखाइल गोर्बाचेव का रूस "चुप था". रेड आर्मी को टैंकों का इस्तेमाल नहीं करने दिया गया. किसी ने भी वहां रह रहे केजीबी के लोगों की मदद नहीं की.
आखिर में पुतिन और उनके केजीबी के साथियों ने अपने खुफिया कामों के सबूतों को जला दिया. ऐसी ऐसी चीजें जलाई गई कि भट्टी ही फट गई...
पुतिन को वह देश छोड़ना था जो उनका घर बन चुका था.. पुतिन के बॉस स्टासी के कॉन्टैक्ट्स में से एक मेजर जनरल होर्स्ट बोहेम को भीड़ ने इस कदर अपमानित किया कि उन्होंने 1990 की शुरुआत में आत्महत्या कर ली.. इन्हीं की टेलीफोन लाइन स्थापित करने में पुतिन ने उनकी मदद की थी.
पुतिन के जीवनी लेखक और आलोचक माशा गेसेन ने बताया कि उनके जर्मन दोस्त ने उन्हें 20 साल पुरानी वॉशिंग मशीन दी और इसके साथ वे लेनिनग्राद वापस चले आए.
वह एक ऐसे देश में वापस आ गए थो जो मिखाइल गोर्बाचेव के शासन में खुद पतन के कगार पर था..
उनका शहर लेनिनग्राद अब फिर से सेंट पीटर्सबर्ग बन रहा था. लेकिन पुतिन वहां क्या करते?
रूस लौटकर पुतिन ने शुरू की राजनीतिक पारी
1990 के दशक में सेंट पीटर्सबर्ग आकर पुतिन ने म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन में अहम जिम्मेदारी निभाई…उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जांच हुई और आरोप सही साबित हुए, मगर सेंट पीटर्सबर्ग के तत्कालिन मेयर अनाटोली सोबचाक से अच्छे संबंधों के चलते पुतिन का बाल भी बांका नहीं हुआ.
इसके बाद तो पुतिन राजनीति में ऊपर की ओर चढ़ते चले गए. 1997 में तब के रशियन प्रेसीडेंट बोरिस येल्तसिन ने उन्हें रूस का प्रधानमंत्री बनाया. फिर जब येल्तसिन ने अचानक ही राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दे दिया, तो पुतिन कार्यवाहक राष्ट्रपति बन गए…
इस पद पर उन्होंने सबसे पहला काम यह किया कि येल्तसिन पर लगे भ्रष्टाचार के सभी आरोपों से उन्हें मुक्त कर दिया.
2000 में पुतिन 53 प्रतिशत वोटों के साथ देश के राष्ट्रपति चुने गए… उनकी जीत में उनकी ‘इमेज’ ने एक बड़ी भूमिका निभाई. अपने बाकी के प्रतिद्वंद्वियों से अलग पुतिन कानून और व्यवस्था को मानने वाले उम्मीदवार के रूप में उभरे...
ये वो दौर था, जब रूस भ्रष्टाचार से परेशान था, ऐसे में देशवासियों को पुतिन में एक उम्मीद की किरण दिखाई दी और वे इस उम्मीद पर खरे भी उतरे… उन्होंने देश को आर्थिक संकट से बाहर निकाला. देश ने आर्थिक रूप से जो अच्छे दिन देखे, उसने पुतिन की लोकप्रियता को और भी बढ़ा दिया. नतीजा ये हुआ कि 2004 में लोगों ने एक बार फिर उन्हें अपना नेता चुन लिया. इसके बाद पुतिन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा...
चलते चलते आज की दूसरी अहम घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं
1586 - मुग़ल सेना ने कश्मीर में प्रवेश किया.
1907 - स्वतंत्रता सेनानी दुर्गा भाभी का जन्म हुआ.
1952 - चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी बनी.
1950 - मदर टेरेसा ने मिशनरी ऑफ चैरिटी की स्थापना की थी.