यूपी चुनाव (Assembly Elections in Uttar Pradesh) का पहला चरण होने में दो हफ्ते से भी कम का वक्त है. विधानसभा की लड़ाई अब और तेज होती जा रही है, जिसमें हर दिन नए मोड़ आ रहे हैं. प्रदेश की राजनीति में ओबीसी नेताओं के पाला बदलने के बाद हालात बहुत बदल चुके हैं. शह और मात के इस खेल में, हर कोई अपनी चाल चल रहा है. चुनाव पे चर्चा के इस ऐपिसोड में, हम राज्य में आबादी के समीकरणों पर नजर डालेंगे. वोट कैसे किया जाता है, इस बात से लेकर इसके आगे तक...
चुनाव अपडेट Live
योगी की पार्टी बीजेपी 80 पर्सेंट लोगों के वोट और समर्थन को लेकर आश्वस्त है. लेकिन बाकी के 20 पर्सेंट का क्या? आज हम इन्हीं 20 पर्सेंट के वोटिंग पैटर्न के पीछे की सोच और सत्य की पड़ताल करेंगे.
यूपी की आबादी में सबसे ज्यादा बात होती है मुस्लिमों की.
ये समुदाय क्या सोचकर वोट करता है? और इस बार ये किसे वोट करेंगे?
क्या मुस्लिम एकजुट होकर वोट करते हैं?
क्या समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के पक्ष में मुस्लिमों का एकजुट होना, हिंदुओं को बीजेपी के पक्ष में एकजुट करेगा?
मुस्लिम समुदाय से जुड़े ये सवाल, राजनीतिक पंडितों, राजनेताओं को हर चुनाव से पहले सोचने पर मजबूर कर देते हैं. आइए, यूपी में मुस्लिम वोट को लेकर अपनी जानकारी को दुरुस्त करते हैं.
आबादी: 3.8 करोड़ या 20% के लगभग
देश के किसी भी राज्य में सबसे ज्यादा आबादी और अनुपात के हिसाब से, असम और केरल के बाद तीसरा नंबर
ऐसी 30 सीटें हैं जिनमें 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोट हैं
43 सीटों पर 30 से 40 फीसदी मुस्लिम वोट हैं
70 सीटों पर 20 से 30 फीसदी मुस्लिम वोट हैं
इसका मतलब है कि 143 सीटों पर मुस्लिम वोट 20 फीसदी से ज्यादा है
मुस्लिम आबादी की बहुलता वाली ज्यादा विधानसभा सीटें पश्चिमी और पूर्वी यूपी में हैं
रामपुर में मुस्लिमों की आबादी 50.57%, मुरादाबाद में 47.12%, बिजनौर में 43.04%, सहारनपुर में 41.95%, मुजफ्फरनगर में 41.3%, अमरोहा में 40.78% है. बलरामपुर, आजमगढ़, बरेली, मेरठ, बहराइच, गोंडा और श्रावस्ती में मुस्लिम आबादी 30 फीसदी से ज्यादा है.
आइए अब इन 20 फीसदी मतदाताओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व के बारे में जानकारी लेते हैं
साल 2017 के विधानसभा चुनाव (UP 2017 Assembly Elections) में जब बीजेपी ने जीत हासिल की तो विधानसभा 24 मुस्लिम विधायक जीतकर आए थे. ये कुल विधायकों का 5.9% था. इसमें से 17 एसपी से थे. विधानसभा में मुस्लिम समाज का ये प्रतिनिधित्व 1992 में भी इसी आंकड़े पर था, जब राम मंदिर आंदोलन अपने शीर्ष पर था.
ऐतिहासिक तौर पर, राज्य में क्षेत्रीय पार्टियों के उभार के साथ ही मुस्लिम प्रतिनिधित्व भी बढ़ा है. 1967 में यूपी विधानसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व 6.6% था, साल 1985 में ये बढ़कर 12% हो गया. ये वह दौर था जब सोशलिस्ट पार्टियां मजबूत हो रही थीं और कांग्रेस की जमीन खिसक रही थी. 2012 का विधानसभा चुनाव ऐसा वक्त था, जब आजादी के बाद पहली बार मुस्लिमों को विधानसभा में आबादी के बराबर प्रतिनिधित्व मिला. 20% मुस्लिम वोटर वाले प्रदेश की विधानसभा में 17% MLA विधानसभा में पहुंचे थे. तब इनकी संख्या 68 थी.
2007 में जब मायावती जीती थीं, तब यूपी में 56 मुस्लिम विधायक थे.
आज बीजेपी की लहर में, मुस्लिम प्रतिनिधित्व को जहां होना चाहिए, वह उसके भी तिहाई पर है.
नामांकन और प्रतिनिधित्व के आंकड़ों से पता चलता है कि दो क्षेत्रीय दल, एसपी और बीएसपी, मुस्लिम कैंडिडेट को ज्यादा अवसर देते हैं और इसलिए वह विधायक भी बनते हैं.
1991 से, बीजेपी ने राज्य में सिर्फ 8 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं. 2017 में जब राज्य में बीजेपी की प्रचंड लहर थी, तब भगवा पार्टी ने एक भी मुस्लिम कैंडिडेट नहीं उतारा था.
इससे उलट, 1991 में, बड़ी पार्टियों के टिकट पर लगभग 200 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में थे, इसमें से आधे तो बीएसपी के टिकट पर थे जबकि बाकी एसपी और कांग्रेस से थे. 2012 के चुनाव में एक बार फिर मुस्लिम कैंडिडेट की संख्या बढ़ी. 230 मुस्लिम उम्मीदवारों में से एसपी और बीएसपी ने 80-80 को टिकट दिया था.
उत्तर प्रदेश कुछ समय से इसी 20% के कथित उत्पीड़न के लिए आरोपों के साए में रहा है. सिर्फ 2021 से ही यूपी में सांप्रदायिक घृणा के कुछ इस तरह के मामले सामने आए हैं:
- बुलंदशहर में पेशे से कसाई कसाई 42 साल के मोहम्मद अकील को पुलिस ने अवैध पशु हत्या के एक मामले में कथित तौर पर उसके घर की छत से फेंक दिया
- कोविड मानदंडो के उल्लघंन के आरोपों में पुलिस द्वारा पकड़े गए एक 17 साल के युवक की हिरासत में मौत हो गई, परिवार ने पुलिसवालों पर हिरासत में टॉर्चर का आरोप लगाया
- शामली के रहने वाले समीर चौधरी को कई लोगों ने लाठी-डंडों से पीटा. पीड़ित के परिवार ने मीडिया को बताया कि जब वह काम से घर लौट रहा था, तब उसे उग्र हिंदूवादी कार्यकर्ताओं ने पीट-पीट कर उसे मार डाला.
- मथुरा जिले में, शेर खान उर्फ शेरा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी और उसके 6 साथी गांववाले भी घायल हो गए. उनपर गांव के एक समूह ने हमला किया जिसे उन लोगों द्वारा गाय की कथित तस्करी किए जाने की सूचना मिली थी.
- दक्षिणपंथी संगठनों ने मुजफ्फरनगर में तीज के मौके पर सड़कों पर गश्त की. संगठन क्रांति सेना के सदस्यों ने मेहंदी की दुकान के मालिकों से मुस्लिम पुरुषों को काम पर न रखने की अपील की. उनका कहना था कि वे हिंदू महिलाओं के लिए कोई खतरा नहीं चाहते थे
- पानी पीने के लिए मंदिर में घुसने पर 14 साल के मुस्लिम लड़के की बेरहमी से पिटाई की गई थी. मंदिर के बाहर एक एक बोर्ड लगा हुआ था. ये मंदिर हिंदुओं का पवित्र स्थल है, यहां मुसलमानों का प्रवेश वर्जित है
- इस आश्वासन के बावजूद कि राज्य में अल्पसंख्यकों को कोई खतरा नहीं है, ये केवल 2021 में यूपी से सामने आए कई मामलों में से कुछ ही हैं. अब्बा जान, जिन्ना, 80:20 और राज्य में मुसलमानों की निंदा करने वाले विज्ञापन, फेहरिस्त लंबी है जिनसे खाई बढ़ती जा रही है.
- उत्तर प्रदेश में 20% का ये छोटा सा आंकड़ा आइसलैंड की आबादी से भी ज्यादा संख्याबल है - लेकिन सवाल अभी भी वहीं का वहीं है कि क्या नेता समुदाय के पास उनकी समस्याओं और मुद्दों को सुलझाने के लिए जाते हैं, या उसे सिर्फ वोट बैंक के तौर पर देखते हैं?
इंडिया टुडे टीवी द्वारा दायर आरटीआई के मुताबिक, 2017 और 2020 के बीच 14,454 लोगों को एंटी-रोमियो स्क्वॉड ने टारगेट किया. इसकी शुरुआत 2017 में योगी आदित्यनाथ के CM पद संभालने के बाद की गई थी, ताकि राज्य में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. सुरक्षा के लिए जबरन धर्मांतरण के खिलाफ एक और कानून लाया गया, जिसे 'लव जिहाद' कानून के रूप में जाना जाता है. इस कानून के लागू होने के बाद, पहले 9 महीनों में, पुलिस ने 63 एफआईआर दर्ज की और 163 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया. अब कोई सोचेगा कि इससे महिलाओं के खिलाफ अपराध कम हुए हैं, लेकिन आंकड़े ऐसा नहीं कहते.
राष्ट्रीय महिला आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2021 में यूपी में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की 15,828 शिकायतें मिलीं. सभी राज्यों में ये सबसे ज्यादा हैं. ये हमें सवाल करने के लिए मजबूर करते हैं.
देखें- UP Election 2022: मथुरा में अमित शाह का दावा- मोदी सरकार नहीं होती तो राम मंदिर नहीं बनता