Udaipur Chintan Shivir: कांग्रेस की तीन दिवसीय 'चिंतन शिविर' रविवार को खत्म हो गया. इस बैठक के दौरान पार्टी को मजबूत करने, आम लोगों से कनेक्शन बढ़ाने, असंतुष्ट नेता यानी कि जी 23 समूहों (Congress G- 23) के लिए एक अलग दल बनाने की बात और कांग्रेस को लेकर किसी भी हालत में बाहर यह मैसेज नहीं जाए कि संगठन में कोई दरार है या असंतोष है. कुल मिलाकर विमर्श इसी के आसपास रहा. इस बैठक में ऐसा कुछ नहीं हुआ, जिससे लोगों के बीच कांग्रेस को लेकर या उनकी विचारधारा को लेकर कोई सार्थक संदेश जाए. सबसे पहले कांग्रेस 'चिंतन शिविर' के उन मुद्दों पर बात करते हैं, जिसको लेकर पार्टी का दावा है कि हालात सुधरेंगे.
कांग्रेस पार्टी में बड़े सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए एक सलाहकार समूह बनाने का फैसला किया गया है. इस समूह में कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य ही शामिल हो सकते हैं. कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के मुताबिक सलाहकार समूह कोई निर्णय नहीं लेगी, बल्कि सुझाव देगी. माना जा रहा है कि इस तरह वरिष्ठ नेताओं के अनुभव का लाभ लिया जाएगा. यानी कि जिस तरह बीजेपी में मार्गदर्शक मंडल बनाया गया था, उसी आधार पर कांग्रेस में सलाहकार समूह बनेगा. तो क्या कांग्रेस के असंतुष्टों यानी कि जी 23 समूह के नेताओं को ठिकाने लगाने की तैयारी शुरू हो गई है. क्योंकि बीजेपी में मार्गदर्शक मंडल के नेताओं का क्या हश्र हुआ, यह आपको पता है.
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पिछले कुछ सालों में कांग्रेस के कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए हैं. फिर चाहे वो यूपी के लोक निर्माण विभाग (PWD) मंत्री जितिन प्रसाद हों, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा हों, मणिपुर के सीएम एन. बीरेन सिंह, नगालैंड के सीएम नेफियू रियो या फिर त्रिपुरा के सीएम माणिक साहा. ऐसे में कांग्रेस के लिए अपने नेताओं को रोकना भी बड़ी चुनौती रही है. सोनिया गांधी ने पार्टी के लोगों को सचेत करते हुए कहा कि ऐसा समय आया है जब हमें अपनी निजी आकांक्षाओं को संगठन के अधीन रखना है. पार्टी ने हमें बहुत कुछ दिया है, अब इसे चुकाने का समय है.
एक नजर उन प्रस्तावों पर डालते हैं जिसको लेकर शिविर में चर्चा हुई है और माना जा रहा है कि इसे आने वाले समय में लागू किया जा सकता है.
'चिंतन शिविर' का प्रस्ताव
एक परिवार, एक टिकट पर बन रही है सहमति
परिवार के दूसरे व्यक्ति को टिकट देने के लिए शर्त
किसी पुराने नेता का बेटा एकाएक चुनाव नहीं लड़ेगा
चुनाव लड़ने के लिए संगठन को देने होंगे पांच साल
प्रियंका 2019 से सक्रिय राजनीति में उतरी थीं
अगला लोकसभा चुनाव लड़ने का रास्ता हुआ साफ
सीएम गहलोत के बेटे वैभव गहलोत भी कई वर्षों से सक्रिय
कोई भी व्यक्ति पांच सालों तक ही किसी पद पर रहेगा
दोबारा पद पाने के लिए 3 साल का होगा ‘कूलिंग पीरियड’
3 साल के बाद ही दोबारा उस पद के लिए माना जाएगा योग्य
कांग्रेस का अपना ‘पब्लिक इनसाइट डिमार्टमेंट’ हो
यह चुनाव से पहले या बाद में, हमेशा करेगा सर्वेक्षण
जनता के मुद्दों को सही ढंग से समझने की होगी कोशिश
अच्छा काम करने पर पदोन्नति, नहीं करने पर छोड़े पद
ब्लॉक और पोलिंग बूथ के बीच मंडल समितियां बनाने का प्रस्ताव
हर ब्लॉक समिति के तहत तीन से पांच मंडल समितियां बनेगाी
हर मंडल समिति के तहत 15 से 20 बूथ आएंगे
स्थानीय समिति-कांग्रेस कार्य समिति, सभी में युवा-वरिष्ठों को बराबर मौका
हर समिति में 50 प्रतिशत स्थान 50 साल से कम उम्र के लोगों को मिले
2 अक्टूबर से शुरू होगी कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत जोड़ो यात्रा
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यह पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस में 'चिंतन शिविर' का आयोजन किया गया हो. इससे पहले चार बार कांग्रेस ने 'चिंतन शिविर' का आयोजन किया था. सिर्फ एक बार ही ऐसा हो पाया जब 'चिंतन शिविर' के बाद कांग्रेस के चुनाव में सफलता मिली. शुरुआत 1974 से करते हैं
'चिंतन शिविर' का सक्सेस रेट
नरौरा 'चिंतन शिविर'
कांग्रेस का पहला 'चिंतन शिविर' 1974 में हुआ था.
इसका आयोजन UP के बुलंदशहर के नरौरा में हुआ
तब समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण का प्रभाव था
इंदिरा गांधी ने 'चिंतन शिविर' का किया था आयोजन
व्यक्तिगत हमलों की काट ढूंढने पर विचार-विमर्श
चिंतन के बाद भी इंदिरा सरकार पर हावी हुआ विपक्ष
1977 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार
पचमढ़ी 'चिंतन शिविर'
1998 में कांग्रेस का दूसरा 'चिंतन शिविर'
इसका आयोजन MP के पचमढ़ी में हुआ
सीताराम केसरी को अध्यक्ष पद से हटाया
सोनिया गांधी बनाई गईं कांग्रेस अध्यक्ष
राजीव गांधी की हत्या के 7 साल बाद परिवार की वापसी
शिविर में एकला चलो की नीति पर चलने का निर्णय
1998 और 1999 के चुनाव में कांग्रेस को मिली हार
अटल बिहारी वाजपेयी 1999 में मजबूत नेता बने
शिमला 'चिंतन शिविर'
तीसरा 'चिंतन शिविर' 2003 में शिमला में हुआ
कांग्रेस ने गठबंधन की राजनीति को स्वीकारा
2004 चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता में की वापसी
कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए का गठन हुआ
जयपुर 'चिंतन शिविर'
जनवरी 2013 में जयपुर में हुआ था 'चिंतन शिविर'
बैठक में राहुल गांधी को उपाध्यक्ष बनाया गया
कांग्रेस विरोधी लहर को खत्म करने पर चर्चा नहीं
मोदी लहर को रोकने पर भी नहीं हुई बात
2014 के चुनाव में कांग्रेस की शर्मनाक हार
ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या उदयपुर 'चिंतन शिविर' से कांग्रेस को फायदा मिलेगा. हालांकि देखें तो नव संकल्प शिविर के बाद भी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को लेकर असमंजस की जो स्थिति दूर नहीं हुई है. कांग्रेस भले ही पदयात्रा के जरिए लोगों को जोड़ने की कोशिश में जुटी है. लेकिन जिस तरह बीजेपी ने मीडिया और सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपने सियासी नैरेटिव सेट करने और लोगों तक अपना संदेश पहुंचाने के लिए किया है. कांग्रेस उन मोर्चों पर बेहद कमजोर नजर आती है. इतना ही नहीं कांग्रेस अब तक यह बताने में विफल रही है कि वह पीएम नरेंद्र मोदी को कैसे घेरेगी. 2024 के लोकसभा चुनाव में क्या कांग्रेस, विपक्ष के गठबंधन का नेतृत्व करेगी या विपक्षी दलों से बातचीत कर एक नया फ़्रंट बनाएगी. इसको लेकर भी स्थिति साफ नहीं है.
मौजूदा दौर में कांग्रेस को तृणमूल या आम आदमी पार्टी जैसे गैर-भाजपा राजनीतिक दल भी चुनौती दे रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस को अपनी ताक़त और कमज़ोरियों को आंकना होगा और उसी हिसाब से आगे की योजना तैयार करनी होगी.