हाइलाइट्स

  • जामिया यूनिवर्सिटी से है जमनालाल बजाज का खास रिश्ता
  • सेठ बछराज ने लिया था जमनालाल को गोद
  • महात्मा गांधी से था जमनालाल का खास जुड़ाव
  • बजाज ऑटो ने दिया मिडिल क्लास को स्कूटर का सुख

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Jamnalal Bajaj: महात्मा गांधी संग साए की तरह चलने वाले Bajaj Group फाउंडर जमनालाल की कहानी | Jharokha

Jamnalal Bajaj Birth Anniversary: जमनालाल बजाज का आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान है. वह गांधीजी के साथ साए की तरह रहे. जमनालाल ही वह शख्स है जिन्होंने Bajaj Auto की नींव रखी थी...

Jamnalal Bajaj: महात्मा गांधी संग साए की तरह चलने वाले Bajaj Group फाउंडर जमनालाल की कहानी | Jharokha

Jamnalal Bajaj Birth Anniversary: जमनालाल बजाज (4 November 1889 - 11 February 1942) भारत के एक मशहूर उद्योगपति, मानवशास्त्री व स्वतंत्रता सेनानी थे. जमनालाल बजाज महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के अनुयायी थे और उनके बेहद करीबी थे. गांधीजी ने उन्हें अपने बेटे की तरह माना. आज भी उनके ट्रस्ट समाजसेवा के कार्यों में जुटा है.

जमनालाल बजाज का जन्म 4 नवम्बर 1889 को जयपुर रियासत के सीकर में '"काशी का बास" गांव में हुआ था. जमनालाल एक गरीब मारवाड़ी परिवार में हुआ था. वे चौथी कक्षा तक पढ़े थे, उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी. आज हम जमनालाल बजाज के जीवन के बारे में जानेंगे इस एपिसोड में

जामिया यूनिवर्सिटी से है जमनालाल बजाज का खास रिश्ता

भारत के तीसरे राष्ट्रपति थे जाकिर हुसैन (Zakir Husain)... जाकिर हुसैन से जुड़ा एक किस्सा बहुत मशहूर है... 1938 में जाकिर साहब बीमार हो गए थे... इलाज के दर्म्यान ही उनके पास एक दिन 200 रुपये पहुंचे... पता करने पर मालूम हुआ कि इसे भिजवाया है जमनालाल बजाज ने.

जाकिर हुसैन ने जमनालाल को पत्र लिख डाला- मैं आपसे सच सच कहता हूं, मैं अपनी बीमारी के लिए पैसे एकत्र करने का साधन नहीं बनना चाहता. हालांकि मेरी आर्थिक दशा ठीक न थी लेकिन मेरे भाइयों ने इसका खर्च उठा लिया और आराम व निवास का इंतजाम दोस्त डॉ. ख्वाजा अब्दुल मुईद (Dr. Khwaja Abdul Mueed) ने किया.

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30 अक्टूबर 1938 को लिखे गए इस पत्र में जाकिर हुसैन ने जमनालाल से अनुरोध किया कि इस धनराशि को जामिया की किसी जरूरत पर खर्च करने की अनुमति दी जाए. जमनालाल का ये धन जामिया के काम आया लेकिन जमनालाल के जीवन में ऐसे और भी कई मौके हुए जब उन्होंने अपनी संपत्ति और धन को दूसरे लोगों को दिया... यहां तक कि गांधी जी को भी कहना पड़ा कि जमनालाल का हर घर एक धर्मशाला है. बापू उन्हें अपना 5वां पुत्र मानते थे.

आज हम जानेंगे इसी बजाज ग्रुप के संस्थापक जमनालाल बजाज के बारे में झरोखा के इस खास एपिसोड में... जमनालाल का जन्म 4 नवंबर 1889 को हुआ था. आइए आज का सफरनामा शुरू करते हैं.

बजाज ऑटो ने दिया मिडिल क्लास को स्कूटर का सुख

रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य के बाद मिडिल क्लास की पहली ख्वाहिश होती है अपनी गाड़ी. आज ज्यादातर लोग कार का शौक रखते हैं और जैसे तैसे अपनी ड्रीम कार खरीदने की होड़ में रहते हैं लेकिन ज्यादा वक्त नहीं हुआ जब ज्यादातर देशवासी टू व्हीलर मिल जाने पर ही संतुष्ट हो जाया करते थे. देश की बहुसंख्यक आबादी को पेट्रोल से चलने वाले स्कूटर का सुख देने का क्रेडिट अगर किसी को जाता है, तो वह है बजाज ऑटो (Bajaj Auto).

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बजाज ऑटो की वजह से ही हमें दुनिया में एक नया नाम मिला- स्कूटरवाला... दुनिया में कम से कम लागत में स्कूटर बनाने व बेचने का करिश्मा किया है बजाज ऑटो ने. बजाज ऑटो 3 दशक तक दुनिया का ऐसा प्रॉडक्ट रहा है जिसकी लोगों ने 15 से 20 साल तक इंतजार किया है. यानी जिन लोगों ने अपनी शादी में स्कूटर बुक किया उसे मिला बिटिया की शादी के वक्त... कई लोगों ने तो बजाज स्कूटर्स के सिर्फ बुकिंग नंबर बेचकर ही घर बना लिए. शुरुआती वर्षों में बजाज ऑटो की नेटवर्थ 5 लाख रुपये थी जो साल 2003 में 50 बिलियन रुपये हो गई.

सेठ बछराज ने लिया था जमनालाल को गोद

जमनालाल बजाज वर्धा के एक अमीर कारोबारी सेठ बछराज के दत्तक पौत्र थे. उनका जन्म 4 नवंबर 1889 को भारत के जयपुर में सीकर के गांव काशी-का-बास (Kashi Ka Bas) में हुआ था. वह कनीराम और बिरदीबाई के तीसरे बेटे थे. दूर के रिश्तेदार सेठ बछराज ने जमनालाल को गोद लिया और वर्धा ले आए. जब उन्हें गोद लिया गया था तब वह सिर्फ चार साल के थे. सेठ बछराज के इस दत्तक पुत्र ने राष्ट्र के लिए अपने समर्पण भाव से वर्धा को आजादी के आंदोलन का और अंतरराष्ट्रीय महत्व का केंद्र बनाया.

महात्मा गांधी से था जमनालाल का खास जुड़ाव

एक अमीर परिवार में पले-बढ़े जमनालाल ने फिजूलखर्ची और मौज मस्ती से भरा जीवन नहीं चुना. परिवार की सारी दौलत और समृद्धि युवा जमनालाल को संतुष्ट नहीं कर सकी और वह एक ऐसे शख्स की तलाश में लग गए जो उन्हें ऐसे रास्ते पर ले जाए, जिसपर वह चलना चाहते थे. इसी कोशिश में उन्होंने कई नेताओं, साधुओं और धार्मिक हस्तियों से मुलाकात की. कोई भी उन्हें प्रभावित न कर सका. आखिरकार वह मिले महात्मा गांधी से और बापू ने जमनालाल बजाज पर ऐसा असर डाला कि दोनों के बीच एक मजबूत रिश्ता बन गया.

बापू ने कहा था- जमनालाल ने तन, मन और धन से साथ दिया

1915 में गांधी की भारत वापसी के बाद, जमनालाल बजाज ने अहमदाबाद में सत्याग्रह आश्रम का दौरा किया और गांधी से बातचीत की. इसका परिणाम ये हुआ कि जमनालाल गहराई से गांधी के साथ जुड़ गए और ये जुड़ाव ऐसा था कि जीवनभर कायम रहा. उन्होंने अपना जीवन पूरी तरह से गांधी के मिशन और कार्य को समर्पित कर दिया. गांधी ने 1942 में जमनालाल बजाज को भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि "मेरा कोई काम ऐसा नहीं था जिसमें मुझे तन मन और धन में उनका पूरा सहयोग न मिला हो. राजनीति के प्रति न उनमें और न ही मुझमें कोई आकर्षण था. वह इसमें लाए गए क्योंकि मैं उसमें था. मेरी असली राजनीति बेहतर कार्य थी, और उनकी भी यही राजनीति थी.

कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष भी रहे थे जमनालाल बजाज

1920 तक गांधी ने भारत की आजादी के आंदोलन की बागडोर संभाली और जमनालाल पूरे दिल से इसमें जुड़ गए. वे 1920 में आयोजित नागपुर कांग्रेस की स्वागत समिति के अध्यक्ष थे और उन्हें कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष के रूप में चुना गया था. असहयोग आंदोलन के बीच जमनालाल बजाज ने ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई राय बहादुर की उपाधि को त्यागने की हिम्मत दिखाई. 1921 में, वे विनोबा भावे को सत्याग्रह आश्रम की एक शाखा शुरू करने के लिए वर्धा लाने में सफल रहे.

नागपुर में ध्वज सत्याग्रह का आयोजन किया था

1923 में, जलियांवाला बाग हत्याकांड की याद में उन्होंने सरकारी प्रतिबंध के बावजूद नागपुर में ध्वज सत्याग्रह का आयोजन किया जिसके बाद उन्हें 18 महीने की जेल की सजा सुनाई गई और 3,000/- रुपये जुर्माने का दंड भी लगाया गया. वे स्वतंत्रता संग्राम के अहम नायक बनकर उभरे. उन्होंने अपने गुरु के मिशन और काम को आगे बढ़ाने के लिए गांधी सेवा संघ का गठन किया था, तब गांधी जी जेल में थे.

महात्मा गांधी के भरोसेमंद बन गए थे जमनालाल बजाज

1924 में, गांधी ने जेल से रिहा होने के बाद राष्ट्र से जुड़े कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया. जमनालाल वह मजबूत स्तंभ थे जिसपर गांधी कभी भी भरोसा कर सकते थे. वे 1925 में ऑल स्पिनर्स एसोसिएशन के निर्वाचित कोषाध्यक्ष थे और 1927 में इसके कार्यकारी अध्यक्ष बने. वे एक वास्तविक सामाजिक क्रांतिकारी थे. 17 जुलाई 1928 को वर्धा में लक्ष्मी नारायण मंदिर में रूढ़िवादी हिंदुओं के कड़े विरोध के बावजूद दलितों के लिए दरवाजे खुले. उन्होंने 1929 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अस्पृश्यता विरोधी उपसमिति के सचिव के रूप में कार्य किया. वे विले पार्ले में नमक सत्याग्रह शिविर के निर्वाचित नेता थे. नमक सत्याग्रह ने अहमदाबाद के सत्याग्रह आश्रम में गांधी के प्रवास को समाप्त कर दिया.

जमनालाला ने विनोबा भावे को पौनार का घर दिया था

सत्याग्रह आश्रम के बंद होने के बाद गांधी ने वर्धा को अपना मुख्यालय बनाया. जमनालाल बजाज ने 1934 में अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ (एआईवीआईए) को जगह देने के लिए वर्धा में अपना एक बंगला गांधी को दे दिया. गांधी को वर्धा में बसने के लिए राजी करने और 1936 में सेवाग्राम आश्रम की स्थापना के लिए मनाने का श्रेय जमनालाल को ही जाता है. अक्टूबर 1937 में वर्धा राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन के संगठन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहाँ गांधी ने बुनियादी शिक्षा पर अपने विचार प्रस्तुत किए, जिसे बाद में कांग्रेस के मंत्रालयों के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया गया था. उन्होंने 1938 में पौनार में धाम नदी के सामने अपना लाल बंगला विनोबा भावे को दिया क्योंकि विनोभा भावे का स्वास्थ्य सही नहीं था. यहां विनोबा का पौनार आश्रम या ब्रह्म विद्या मंदिर स्थित है.

जमनालाल को महात्मा गांधी मानते थे पांचवां बेटा

महात्मा गांधी के चार बेटे थे लेकिन वो जमनालाल बजाज को अपना पांचवां बेटा मानते थे. गांधी ने कहा था कि जमनालाल का बनाया हर घर धर्मशाला बन गया. उन्होंने अपने निवास-बजाजवाड़ी- को कांग्रेस नेताओं, कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों के लिए गेस्ट हाउस के रूप में बदल दिया. ये सभी गांधी से मिलने वर्धा आते थे. यहां तक ​​कि उन्होंने वर्धा आने वाले सभी लोगों के लिए वाहन उपलब्ध कराया और खुद पैदल चले. उन्होंने जयपुर राज्य के प्रजा मंडल आंदोलन को संगठित करने में वहां के राजा की मदद की और 1938 में इसके निर्वाचित अध्यक्ष बने और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. 1941 में निजी सत्याग्रह को लेकर उन्हें सजा सुनाई गई.

11 फरवरी 1942 को हुई थी जमनालाल की मृत्यु

उन्होंने माता आनंदमयी का मार्गदर्शन लिया, जिन्हें वे अपनी आध्यात्मिक माँ मानते थे. अंत में, वह अन्य सभी कार्यों से हट गए और गोपुरी, वर्धा में एक घासफूस की झोपड़ी में रहने लगे, एक चारपाई में सोने लगे. अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद इस चरण में खुद को गो सेवा के लिए समर्पित किया. उन्होंने 11 फरवरी 1942 को वर्धा में अपना नश्वर जीवन छोड़ दिया. गोपुरी में जमनालाल बजाज की समाधि पर बकुल के पेड़ के सामने गीतई मंदिर है, और यहां हर साल दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि देने के लिए एक समारोह आयोजित किया जाता है.

चलते चलते 4 नवंबर को हुई दूसरी घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं

1955 - रीता भादुड़ी (Rita Bhaduri) का जन्म हुआ.

1618 - मुगल शासक औरंगजेब (Aurangzeb) का जन्म हुआ.

1925 - लेखक और फिल्मकार ऋत्विक घटक (Ritwik Ghatak) का जन्म.

1970 - फिल्म अभिनेत्री तब्बू (Tabu) का जन्म हुआ.

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