राजस्थान के जालोर ज़िले में मटकी में पानी पीने की वजह से हुई दलित छात्र की पिटाई और बाद में हुई मौत को लेकर मीडिया में कई थ्योरी सामने आ रही है. कई मीडिया रिपोर्ट्स में सरस्वती विद्या मंदिर उच्च प्राथमिक विद्यालय के स्टाफ और बच्चों की तरफ से दावा किया गया है कि स्कूल में पानी का कोई मटका ही नहीं है. इतना ही नहीं दावा यह भी किया गया है कि जान-बूझकर इसे जातिगत मोड़ दिया जा रहा है.
इन मीडिया संस्थानों ने दावा किया है कि वह सरस्वती विद्या मंदिर उच्च प्राथमिक विद्यालय गए और बच्चों से बात की. बच्चों ने बताया कि स्कूल में कोई मटकी नहीं है. सभी बच्चे स्कूल में बने टैंक से पानी पीते हैं. वहीं द मूकनायक नाम के एक वेब पोर्टल ने स्टोरी की है जिसमें दावा किया गया है कि दलित छात्र इंद्र को मटकी का पानी पीने की वजह से बुरी तरह पीटा गया था.
इतना ही नहीं उन्होंने छात्रों से बातचीत का वीडियो भी सोशल मीडिया पर शेयर किया है. जिसमें मृतक इंद्र मेघवाल के सहपाठी छात्र बता रहे हैं कि 'मटके से पानी पिया था, इसलिए इंद्र को टीचर ने बहुत मारा, बचाने भी नहीं आया कोई'
परिवार ने बताया पिटाई मटकी छूने की वजह से हुई
हालांकि इस मामले में मृतक छात्र के परिवार और इंद्रकुमार के साथ पढ़ने वाले उसके भाई ने बताया है कि टीचर छैल सिंह ने बच्चे की पिटाई मटकी छूने की वजह से की. पिटाई के बाद बच्चे के कान से खून निकल गया, जिसकी जानकारी मिलने के बाद परिजनों ने मेडिकल से बच्चे को दवाई दिलवा दी, लेकिन तकलीफ बढ़ती गई और इलाज के दौरान 13 अगस्त को अहमदाबाद के एक अस्पताल में मौत हो गई.
इस मामले को लेकर अब तक गहलोत सरकार का जो रवैया रहा है उसको लेकर कांग्रेस सरकार घिर रही है. ख़ासकर मृतक छात्र के परिवार को दी गई आर्थिक सहायता को लेकर. मुख्यमंत्री ने इस मामले में 5 लाख का मुआवजा तय किया था. लेकिन सामाजिक संगठनों के बढ़ते विरोध के बाद प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने परिजनों से मुलाकात की और बाद में कांग्रेस कमेटी की ओर से 20 लाख रुपये देने की घोषणा की.
दलित महिला शिक्षक को जिंदा जलाया
लेकिन राजस्थान में गहलोत सरकार की मुश्किल यहीं खत्म होती नहीं दिख रही. राजधानी जयपुर से एक और दिल दहला देने वाली खबर आई है. वहां के कुछ दबंगों ने एक दलित महिला शिक्षक को जिंदा जला दिया. बुरी तरह झुलसी महिला शिक्षक ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया है. घटना जयपुर के गांव रायसर की है. जानकारी मिली है कि अनीता रैगर नाम की इस महिला ने दबंगों को कुछ पैसे उधार दिए थे. उन्हें जरूरत पड़ी तो उन्होंने पैसे वापस मांगे थे.
मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि वीणा मेमोरियल स्कूल की 32 वर्षीय टीचर अनीता रेगर, अपने 6 साल के बेटे राजवीर के साथ स्कूल जा रही थी. इस दौरान कुछ बदमाशों ने घेरकर हमला कर दिया. अनीता खुद को बचाने के लिए पास ही में कालू राम रैगर के घर में घुसीं. उन्होंने तुरंत 100 नंबर और रायसर थाने को सूचना दी, लेकिन पुलिस नहीं पहुंची. इधर आरोपियों ने पेट्रोल छिड़ककर अनीता को आग लगा दी. यह बयान अनीता की मौत से एक दिन पहले का है, जब अस्पताल में उनका इलाज़ चल रहा था.
राजस्थान में बदमाश बेखौफ क्यों?
सवाल उठता है कि राजस्थान में बदमाश इतने बेख़ौफ़ क्यों हैं? 14 दिसंबर 2021 को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने एससी और एसटी के खिलाफ होने वाले अत्याचार में दर्ज हुए मामलों की जानकारी दी. इसके मुताबिक प्रदेश में पिछले 5 सालों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण अधिनियम) के तहत दर्ज मामलों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिली है.
लोकसभा में दिए आंकड़े
साल 2016 में एससी और एसटी के खिलाफ 6,329 मामले दर्ज हुए. 2020 में यह आंकड़े बढ़कर 8,744 हो गए थे. आंकड़ों के मुताबिक राजस्थान में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (निवारण की रोकथाम) के तहत 2016 में 6,329 मामले दर्ज हुए हैं, वहीं 2017 में 5222 और साल 2018 में 5563 मामले दर्ज किए गए. जबकि 2019 में 8418 मामले दर्ज़ किए गए और 2020 में, 8,744 मामले दर्ज हुए.
सजा की दर में गिरावट
गौरतलब है कि एससी और एसटी पर दर्ज हुए मामलों में सजा की दर में गिरावट देखी गई है. आंकड़ों के मुताबिक 2019 में 1,121 दोषियों को सज़ा मिली. 2020 में यह आंकड़ा घटकर 686 पर पहुंच गया. यानी कि कुल 8,744 मामलों में सजा की दर 7.84 प्रतिशत रही जो पिछले 5 सालों से सबसे कम है.
SC-ST के खिलाफ साबित अपराध
वहीं 2016 में एससी और एसटी के खिलाफ किए गए अपराधों में 680 मामलों में आरोप साबित हुए जो सालभर में दर्ज कुल मामलों का 10.74 फीसदी है. इसी तरह 2017 में दर्ज मामले में 1,845, 2018 में 712 , 2019 में 1,121 और 2020 में 686 मामलों में आरोप साबित हुए.
लोकसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक राजस्थान में एससी एसटी समुदाय को कई तरह के अत्याचारों को झेलना पड़ा है. इन अपराधों में अंतर-जातीय विवाह से लेकर दूल्हे को घोड़ी के चढ़ने पर विवाद जैसी घटनाएं होती रही हैं. ये आंकड़े यह बताने को काफी हैं कि राजस्थान सरकार अपराध पर लगाम लगाने में पूरी तरह विफल रही है. फिलहाल बीजेपी सरकार पर कानून-व्यवस्था को लेकर सवाल खड़ी करने वाली कांग्रेस के लिए अपने राज्य को दुरुस्त करने की बड़ी ज़िम्मेदारी है. कम से कम इंसानियत के नाते इस तरह के जघन्य अपराध पर सरकार को बेहद सख्त होने की ज़रूरत है.
'एक औरत को दिए गए न्याय का अंत'
गुजरात दंगों की पीड़िता बिलकिस बानो ने अपने गुनहगारों की रिहाई पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि 'जब मैंने सुना कि जिन 11 आरोपियों ने मेरा पूरा जीवन नष्ट किया. मेरे पूरे परिवार को खत्म किया. वो सभी रिहा कर दिए गए. अब वो आज़ाद घूम रहे हैं. ये सुनने के बाद मैं सुन्न हो गई हूं. मेरा न्याय से भरोसा उठ गया है?' बिलकिस ने जो कहा वह किसी भी महिला को अंदर तक हिलाकर रख देगा.
वो कहती हैं- ‘दो दिन पहले 15 अगस्त, 2022 को जब मैंने सुना कि मेरे परिवार और मेरी जिन्दगी बर्बाद करने वाले, मुझसे मेरी तीन साल की बेटी को छीनने वाले 11 दोषियों को आजाद कर दिया गया है तो 20 साल पुराना भयावह अतीत मेरे सामने मुंह बाए खड़ा हो गया. मेरे पास शब्द नहीं बचे हैं. मैं सदमे में हूं. मैं सिर्फ इतना कह सकती हूं कि किसी महिला के लिए न्याय इस तरह कैसे खत्म हो सकता है?
मैंने अपने देश की न्यायालय पर भरोसा किया. मैंने सिस्टम पर भरोसा किया और मैं धीरे-धीरे अपने ट्रामा के साथ रहना सीख रही थी. मेरा दुख और डगमगाता भरोसा मेरे अकेले के लिए नहीं है बल्कि हर उस महिला के लिए है जो कोर्ट में इंसाफ की जंग लड़ रही है.'
एक तरफ बतौर महिला बिलकिस बानों का दर्द और असुरक्षा का माहौल, वहीं दूसरी तरफ ये महिला हैं जो इन दोषियों को क्षमा नीति के तहत मिली रिहाई पर माला पहनाकर नायक की तरह स्वागत कर रही हैं. 15 अगस्त को आज़ाद हुए इन कैदियों का नाम जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, विपिन चंद्र जोशी, केशरभाई वोहानिया, प्रदीप मोढ़डिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना है.
- दरअसल 15 अगस्त को गुजरात सरकार ने अपनी क्षमा नीति के तहत बिलकिस बानो गैंगरेप और उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या करने वाले 11 दोषियों को गोधरा उप जेल से रिहा कर दिया. इस फैसले को लेकर कांग्रेस ने सीधे-सीधे गुजरात सरकार पर हमला बोला है. कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने प्रेस कॉफ्रेन्स कर कुछ तथ्य सामने रखे हैं.
● गुजरात सरकार का दावा है कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार अभियुक्तों को रिहा किया है. जबकि माननीय सर्वोच्च अदालत ने गुजरात सरकार को 3 महीने के भीतर रिहाई पर विचार करने को कहा था. इसलिए बलात्कार एवं हत्या के अभियुक्तों को रिहा करने का फैसला पूर्ण रूप से कार्यपालिका का है न कि न्यायपालिका का.
● गुजरात सरकार के अनुसार अभियुक्तों के क्षमा एवं रिहाई का निर्णय 1992 की नीति के तहत लिया गया है. लेकिन सच्चाई ये है कि 8 मई 2013 को गुजरात सरकार द्वारा यह नीति समाप्त कर दी गई थी. और मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा कि उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. मैं आपके लिए गुजरात सरकार का वह परिपत्र भी लाया हूं, जिसके अनुसार 1992 की नीति को समाप्त किया गया था.
आज गुजरात सरकार की ऑफिशियल वेबसाइट पर भी 1992 की नीति का कोई जिक्र नहीं है. यह नीति वहां भी दिखाई नहीं देती.
● 2014 के केंद्रीय गृह मंत्रालय के दिशा निर्देशों के अनुसार भी हत्या, सामूहिक बलात्कार जैसे मामलों में अभियुक्तों की क्षमा या रिहाई पर रोक लगा दी गई है.
● सबसे महत्वपूर्ण कानूनी तथ्य यह है कि ऐसे किसी भी अपराध जिसकी जांच केंद्रीय एजेंसी द्वारा की गई हो, जैसा इस प्रकरण में सीबीआई द्वारा जांच की गई, तो राज्य सरकार अभियुक्तों की रिहाई या क्षमा का निर्णय नहीं ले सकती. CRPC की धारा 435 के तहत राज्य सरकार को केंद्र सरकार से अनुमति लेनी होती है. जब तमिलनाडु की मुख्यमंत्री सुश्री जयललिता ने राजीव गांधी के हत्यारों को रिहा करने का फैसला लिया था तब सुप्रीम कोर्ट ने क्या आदेश दिया था.
ऐसे में हम केंद्रीय गृह मंत्री एवं प्रधानमंत्री से जानना चाहते हैं कि क्या गुजरात सरकार ने रिहाई देते समय आपकी अनुमति ली थी? अगर राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से अनुमति नहीं ली थी तो क्या गुजरात सरकार के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी?
इसके साथ ही कांग्रेस प्रवक्ता ने कुछ सवाल भी दागे हैं...
1. क्या सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में यह बात लाई गई कि 8 मई 2013 को 1992 की नीति को समाप्त कर दिया गया था.
2. जेल सलाहकार समिति में कौन-कौन लोग हैं जिन्होंने सर्वप्रथम इन अभियुक्तों कोरिया और क्षमा करने की अनुशंसा की.
आपकी जानकारी के लिए बता दूं, साल 2008 में मुंबई में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में 11 अभियुक्तों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी. बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी इस सज़ा पर मुहर लगाई.
सभी दोषियों ने 15 साल से अधिक वक़्त की सज़ा काट ली थी. इस आधार पर इनमें से एक अभियुक्त राधेश्याम शाह ने सज़ा में रियायत की गुहार लगाई.
दरअसल उम्रक़ैद की सज़ा पाने वाले क़ैदी को कम से कम चौदह साल जेल में बिताने होते हैं. चौदह साल के बाद उसकी फ़ाइल को रिव्यू में डाला जाता है. उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार आदि के आधार पर उनकी सज़ा घटाई जा सकती है. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को माफ़ी के मामले पर विचार करने को कहा और फिर दोषियों की रिहाई के आदेश मिले.
आज की दोनों खबरों में कठघरे में प्रदेश सरकार है. सवाल उठता है कि आप किसी खास पार्टी की सरकार के पक्ष में हैं या फिर बतौर नागरिक पीड़ित परिवार के पक्ष में?