Prashant Kishor-Congress Deal: चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) और कांग्रेस (Congress) का गठबंधन एक बार फिर से नहीं हो पाया. पिछले 15 दिनों से चल रही अटकलों पर प्रशांत किशोर ने खुद ही विराम लगाते हुए कहा कि कांग्रेस को मेरी नहीं, अच्छी लीडरशिप और बड़े पैमाने पर बदलाव की जरूरत है.
सवाल उठता है कि कई दौर की बैठकों, 600 पेज के प्रेजेंटेशन के बाद भी प्रशांत किशोर और कांग्रेस की बात क्यों नहीं बनी?
मीडिया रिपोर्ट्स में प्रशांत किशोर और कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं होने को लेकर कई थ्योरी चल रही है.
पहली थ्योरी
एक रिपोर्ट्स के मुताबिक कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 'एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप 2024' बनाया है. यह ग्रुप रणनीति तैयार करने के लिए बनाई गई है. कांग्रेस ने पीके को इसी ग्रुप में शामिल होने का न्योता दिया था. लेकिन वह वरिष्ठ नेताओं के साथ खुद के लिए अधिक स्वतंत्रता ढूंढ़ रहे थे. कांग्रेस उन्हें सभी वरिष्ठों के साथ मिलकर काम करवाना चाह रही थी. जबकि पीके पार्टी को लेकर सभी बड़े फैसले ख़ुद करना चाह रहे थे. लिहाज़ा बात नहीं बनी.
दूसरी थ्योरी
दूसरी रिपोर्ट्स के मुताबिक पीके ने प्रियंका गांधी वाड्रा को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का सुझाव दिया था. जबकि पार्टी राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनाना चाहती है. प्रशांत किशोर चाहते थे कि पीएम कैंडिडेट और पार्टी अध्यक्ष दो अलग-अलग शख्स हों. इस मुद्दे पर भी दोनों की बात नहीं बनी.
तीसरी थ्योरी
तीसरी रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रशांत किशोर का मानना था कि कांग्रेस- बिहार, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर जैसे अहम राज्यों मेंअपने पुराने सहयोगियों को छोड़ दें और पूरी तरह कांग्रेस के लिए समर्पित हो जाएं. PK ने सुझाव दिया था कि कांग्रेस, ममता बनर्जी की TMC और केसीआर की TRS जैसी रीजनल पार्टीज से गठबंधन कर ले. जबकि कांग्रेस पुराने सहयोगियों को साथ लेकर चलना चाहती है.
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चौथी थ्योरी
चौथी रिपोर्ट्स के मुताबिक जिस एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप की बात सुरजेवाला कर रहे हैं, प्रशांत किशोर को इस ही ग्रुप का सदस्य बनने का ऑफर मिला था जो उन्होंने ठुकरा दिया. सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस नेतृत्व के साथ प्रशांत किशोर की किसी बड़े पद को लेकर बात चल रही थी इसीलिए महज एक कमिटी का सदस्य बनाए जाने का प्रस्ताव पीके को रास नहीं आया.
पांचवी थ्योरी
पांचवीं रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रशांत किशोर ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव से से मुलाकात की थी और उनकी फर्म IPAC ने पहले ही राव की पार्टी TRS के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन कर लिया था. पहले ही पीके के सुझावों से असहज कांग्रेस को उनका राव से मिलना और टीआरएस के साथ उनकी डील रास नहीं आई और एक बार फिर पीके कांग्रेसी होते-होते रह गए.
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हालांकि ज्यादातर थ्योरी के मुताबिक कांग्रेस, किसी बाहरी व्यक्ति को अपनी कमान पूरी तरह से नहीं देना चाहती थी. वहीं प्रशांत किशोर अपने हाथ बांध कर काम नहीं करना चाहते थे. 45 साल के प्रशांत किशोर त्वरित बदलाव चाहते थे, जबकि पार्टी नेतृत्व, चरणबद्ध तरीके से बदलाव चाहती थी.
पिछले साल भी वार्ता असफल होने के बाद प्रशांत किशोर ने कहा था कि वह पार्टी का बड़ा भरोसा जीतने में विफल रहे. एक इंटरव्यू के दौरान पीके ने कहा था कि कई लोगों को लगता है कि प्रशांत किशोर और कांग्रेस को स्वाभाविक तौर पर एक साथ आकर काम करना चाहिए. लेकिन इसके लिए दोनों पक्षों को भरोसे का बड़ा कदम लेना होगा. यह कांग्रेस के भीतर नहीं हो पाया.
उन्होंने एक पुराना अनुभव शेयर करते हुए कहा था, मेरा यूपी में उनके साथ काम करने का बुरा अनुभव है. लिहाजा मैं बेहद सशंकित था. मैं नहीं चाहता था कि हाथ बांधते हुए मैं इसमें शामिल होऊं... कांग्रेस नेतृत्व, मेरी पृष्ठभूमि के कारण, मैं उनके प्रति 100 फीसदी वफादार रहूंगा, इसको लेकर उनका सशंकित होना गलत भी नहीं था. लेकिन वो एक बात को लेकर निश्चिंत थे कि बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस में व्यापक बदलाव जरूरी हैं.
एक नजर डालते हैं कि पीके की तरफ से प्रेजेंटेशन में क्या कहा गया था?
पीके ने प्रेजेंटेशन में क्या कहा था?
- कांग्रेस पूरे देश में सिर्फ अकेले चुनाव लड़े
- कांग्रेस सभी पार्टियों के साथ आए और UPA को मजबूत करे
- कुछ जगहों पर कांग्रेस अकेले चुनाव लड़े
- कुछ जगहों पर सहयोगियों के साथ मिलकर
- बताए सुझावों पर 10 दिनों के अंदर काम शुरू हो
- कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति हो
- महासचिव प्रियंका गांधी का पार्टी में रोल तय हो
- संसदीय बोर्ड का पुनर्गठन किया जाए
विवाद की वजह
यानी कि कांग्रेस को आगे की राह अब खुद ही चलनी होगी. अगर प्रशांत किशोर की सलाह मानें तो समस्याओं को ठीक करने के लिए, कांग्रेस को लीडरशिप और मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत होगी. अच्छी बात यह है कि इस बार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को भरोसे में लिया और उनकी सलाह पर आगे बढी हैं. इतना ही नहीं यह भी तय किया गया है कि भावी चुनावों में पार्टी की जीत और हार ही वरिष्ठ नेताओं की जवाबदेही तय करने का मानक होगा.