स्वास्तिक एक विशेष तरह की आकृति है, जिसे किसी भी कार्य को करने से पहले बनाया जाता है. ये चारों दिशाओं से शुभ और मंगल चीजों को अपनी तरफ आकर्षित करता है
स्वास्तिक को भगवान गणेश का रूप भी माना जाता है. इसीलिए इसे किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में बनाया जाता है
स्वास्तिक के चिन्ह को मंगल का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से कार्य सफल होते हैं
स्वास्तिक शब्द को ‘सु’ और ‘अस्ति’ का मिश्रण योग माना गया है.‘सु’ का अर्थ है शुभ और ‘अस्ति’ से तात्पर्य है होना.
ऋग्वेद में स्वास्तिक को सूर्य माना गया है और उसकी चारों भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है
स्वास्तिक के मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में भी निरूपित किया जाता है
दूसरे ग्रंथों में स्वास्तिक को चार युग, चार आश्रम (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) का प्रतीक भी माना गया है