नहाय-खाय से छठ पूजा की शुरुआत होती है. इस दिन लौकी, चने की दाल और चावल का महत्व है. व्रत रखने वाले नहाय खाय के दिन भोजन में यही खाते हैं.
छठ पूजा के दूसरे दिन यानि खरना पर खीर का प्रसाद बनता है जिसे रसिया भी कहते हैं. इसे दूध और गुड़ से बनाया जाता है. ये सबसे महत्वपूर्ण प्रसाद होता है.
छठ पूजा में व्रती महिलाएं पीला सिंदूर लगाती हैं. इसे भाखरा सिंदूर भी कहते हैं. सिंदूर सुहाग और सौभाग्य का प्रतीक होता है.
ठेकुआ के बिना छठ पूजा अधूरी मानी जाती है. इसे आटे और चीनी से तैयार किया जाता है. इसे छठ पूजा का महा प्रसाद माना जाता है. इसे खरना के दिन बनाया जाता है
छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य के बिना पूजा पूर्ण नहीं होती. खरना के अगले दिन डूबते सूर्य को और उसके अगली सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पारण करते हैं.
छठ पूजा में नारियल और सूप का होना जरूरी है. इसके बिना सूर्य देव को अर्घ्य नहीं दिया जा सकता है.