India @75: क्या कहता है देश का 'बहीखाता'? पड़ोसियों के मुकाबले हम कहां?

Updated : Aug 10, 2021 09:56
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Editorji News Desk

देश अपनी आजादी की 75 वीं सालगिरह (75th anniversary of independence) मना रहा है...तमाम कुर्बानियों और सदियों के इंतजार के बाद मिली आजादी ने जैसे-जैसे अपने पंख फैलाए...हम आर्थिक आसमान पर ऊंची उड़ान भरते गए...इन 75 सालों में हम 2.9 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनोमी बन चुके हैं...अब अगला लक्ष्य 5 ट्रिलियन डॉलर के सपने को हकीकत में बदलने का है.
आज हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (fifth largest economy) हैं...दुनिया के तमाम बड़े ब्रांड या तो भारत में मौजूद हैं या फिर आने को तैयार हैं...क्योंकि क्रय शक्ति के मामले में हम दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा बाजार हैं...ऐसे मौके पर अतीत के पन्नों को खंगालना दिलचस्प रहेगा...जिससे हम ये जान पाएंगे कि कैसे हमारे मुल्क ने ये सपनों जैसी उड़ान भरी?

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अब जल्दी से तुलना कर लेते हैं आजादी के ठीक बाद के दौर और वर्तमान स्थिति के बारे... तब और आज की कुछ चीजों की कीमतों में तुलना आपको चौंका सकती हैं....इसके बाद हम जानेंगे उन रपटीली राहों के बारे में जिनसे गुजर कर आज हम इस मुकाम पर पहुंचे हैं...इसके साथ ये भी जानने की कोशिश करेंगे कि हम अपने पड़ोसियों के मुकाबले कहां खड़ें हैं?

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सामान 1947 2021
सोना (प्रति 10 ग्राम) 88.62 46,970
पेट्रोल (प्रति लीटर ) 27 पैसे 110 रुपये
दूध (प्रति लीटर ) 12 पैसे 49 रुपये
चावल (प्रति किलो) 12 पैसे 40-80 रुपये
चीनी (प्रति किलो) 40 पैसे 40-45 रुपये
इन आंकड़ों को देखकर आप सोच सकते हैं कि देश में महंगाई (inflation in the country) कितनी बढ़ गई है....लेकिन ये तुलना बिल्कुल सतही होगी...क्योंकि इसी हिसाब से हमारी आमदनी भी बढ़ी है. 1947 में देश में प्रति व्यक्ति सालाना आय 274 रुपये थी, जो साल 2021 में 1.41 लाख रुपये हो गई है. जाहिर है तस्वीर को साफ करने के लिए हमें कुछ और आंकड़ों पर भी गौर फरमाना होगा.

बदलाव 1951 2021
जनसंख्या 36.10 करोड़ 139 करोड़ (वर्ल्डोमीटर)
शहरी जनसंख्या 17 फीसदी 35 फीसदी
जनसंख्या घनत्व 114 प्रति वर्ग किमी 410 प्रति वर्ग किमी
बिजली की खपत 16 kwh 1,181 kwh
साक्षरता दर 18 फीसदी 77.7 फीसदी
लोकसभा सीट (1951) 489 545
राज्यसभा सीट (1951) 216 250
दरअसल वक्त बीतने के साथ-साथ भारत की इकॉनोमी का आकार-प्रकार लगातार बदलता रहा. लेकिन इस दौरान हम बड़ी चुनौतियों से भी दो-चार होते रहे. शासन के हर दौर में डॉलर के मुकाबले हमारा रुपया कमजोर होता गया. चाहे नेहरू, इंदिरा, नरसिम्हा राव हों या वाजपेयी, मनमोहन की सरकार हो या नरेन्द्र मोदी की रुपए की सेहत हमेशा गिरती ही रही. आइए जान लेते हैं इन 75 सालों में रुपया बनाम डॉलर का मुकाबला क्या कहता है?
Header- रुपया बनाम डॉलर
1966 तक भारतीय रुपये की वैल्यू डॉलर नहीं ब्रिटिश पाउंड के मुकाबले आंकी जाती थी
1966 में डिवैल्युवेशन के बाद रुपया 1 डॉलर के मुकाबले 7.50 रुपये के बराबर था
1974 में रुपये में गिरावट शुरू हुई, एक डॉलर की कीमत 8.38 रुपये हुई
1991 में उदारीकरण की शुरुआत में एक डॉलर की कीमत 22.74 रुपये हुई
1998 में गैर कांग्रेसी सरकार बनी, 41.26 रुपये प्रति डॉलर हो गया रुपया
1999 में अटल सरकार बनी, रुपया 45.32 के स्तर पर पहुंच गया
2012 में रुपये का अवमूल्यन हुआ, रुपया 53.44 रुपये प्रति डॉलर तक टूटा
2018 में जबर्दस्त गिरावट आई, डॉलर के मुकाबले रुपया 70.09 तक पहुंचा

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आज जब हम आजादी की 75 वीं सालगिरह मना रहे हैं, तो रुपया डॉलर के मुकाबले टूटकर करीब 75 रुपये प्रति डॉलर के लेवल पर पहुंच गया है. आंकड़ों के आइने में तकरीबन हर दौर में रुपये के कमजोर होने की तस्वीर दिखाई देती है...लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हमारी आर्थिक स्थिति भी कमजोर होती गई...GDP मीटर पर निगाह डालें तो इन 75 सालों में कई बार ऐसे दौर आए जब हमारी इकॉनोमी ने ऊंची छलांग भी लगाई है.
Header- क्या कहता है देश का GDP मीटर?
वर्ष 1961 में भारत का जीडीपी ग्रोथ रेट 3.72 फीसदी पर था
1964 में अकाल पड़ा, जिसकी वजह से 1965 में GDP ग्रोथ रेट -2.64% पर पहुंच गया
बाद में इसमें जर्बदस्त सुधार हुआ, 1967 में GDP ग्रोथ रेट 7.83% पर
जब देश में इमरजेंसी लगी थी, तब जीडीपी ग्रोथ रेट 9.15 फीसदी थी
जिसके बाद हालात बिगड़े, 1982 में GDP ग्रोथ रेट गिरकर 3.48% पर आ गई
उतार-चढ़ाव का दौर देखने के बाद 1999 में GDP फिर से 8.85% पर पहुंच गई
बाद में कमोबेश स्थिति ठीक रही लेकिन साल 2019 में ये गिरकर 5.02% पर आई

आज कोरोना और दूसरे आर्थिक फैसलों का असर ये है कि देश की GDP का ग्रोथ रेट -7.7% पर पहुंच गया है. इसकी वजह लॉकडाउन तो है ही साथ ही नोटबंदी जैसे कुछ फैसले भी हैं जिसने नकारात्मकता बढ़ाई है और फिलहाल तो अर्थव्यवस्था की कमर टूटी हुई दिख रही है....और साल 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी का लक्ष्य असंभव सा लग रहा है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि यदि देश का GDP ग्रोथ रेट 9 फीसदी के आसपास रहता है तो हम 2031 तक ये लक्ष्य हासिल कर सकते हैं. लगे हाथ ये भी जान लेते हैं कि भारत का ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी वाला सफर कैसा रहा?

Header-ट्रिलियन डॉलर वाला सफर कैसा रहा?
साल 2007 में भारत की GDP एक ट्रिलियन डॉलर हुई
इसके बाद 2 ट्रिलियन डॉलर का सफर तय करने में 10 साल लगे
3 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने में भारत को केवल 4 साल लगे
जाहिर है भारत की इकोनॉमी प्रगति के रास्ते पर है लेकिन हकीकत ये है कि हमारा पड़ोसी चीन हमसे मीलों आगे है. बांग्लादेश का ग्रोथ रेट भी हमारे लिए उदाहरण बन सकता है....हमारी स्थिति समझने के लिए कुछ आंकड़ों पर गौर कर लेते हैं.

Header पड़ोसियों की तुलना में हम कहां हैं?
इकोनॉमी के आकार के मामले में केवल चीन हमसे आगे है
भारत की GDP फिलहाल 2.9 ट्रिलियन डॉलर है जबकि चीन की 15.68 ट्रिलियन डॉलर
बांग्लादेश का ग्रोथ रेट हमसे अच्छा पर उसकी इकोनॉमी 353 बिलियन डॉलर की ही है
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था 296 बिलियन डॉलर की है, भारत से करीब 10 गुना कम
चीन दुनिया की दूसरी, भारत पांचवीं, बांग्लादेश 37वीं और पाकिस्तान 42वीं बड़ी अर्थव्यस्था (सोर्स- वर्ल्ड बैंक)

दरअसल सिक्के का दूसरा पहले ये भी है कि साउथ एशिया में बांग्लादेश की प्रगति सबसे अच्छी है. मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर में बांग्लादेश तेज़ी से प्रगति कर रहा है. कपड़ा उद्योग में बांग्लादेश चीन के बाद दूसरे नंबर पर है. हाल के एक दशक में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था औसतन 6 फ़ीसदी की वार्षिक दर से आगे बढ़ी है. बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय 2,227 डॉलर हो गई है जबकि भारत की 1,947 डॉलर है जो कि बांग्लादेश से 280 डॉलर कम है. मतलब साफ है अर्थव्यस्था के मोर्चे पर भारत को फिर से लंबी छलांग लगानी होगी....आजादी की 75वीं सालगिरह हमारे आर्थिक तानेबाने को दुरुस्त करने का एक बेहतर मौका हो सकता है.

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