सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) की संविधान पीठ (constitution bench of supreme court) ने तलाक पर अहम फैसला दिया है. पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा है कि यदि पति-पत्नी सहमत हैं (husband and wife agree) तो फिर तलाक के लिए लागू छह महीने इंतजार की कानूनी बाध्यता नहीं होगी. ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर सीधे अपनी ओर से फैसला दे सकता है.
ये भी पढ़ें : Viral Video: दिल्ली में एक शख्स को बोनट पर लटकाकर 2KM तक चलाई कार, देखिए video
कोर्ट ने कहा कि वह आपसी सहमति से तलाक के इच्छुक पति-पत्नी को बिना फैमली कोर्ट (family court) भेजे बिना भी अलग रहने की इजाजत दे सकता है. बेंच ने कहा, 'हमने व्यवस्था दी है कि इस अदालत के लिए किसी शादीशुदा रिश्ते (married relationship) में आई दरार के भर नहीं पाने के आधार पर उसे खत्म करना संभव है.
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया फैसला
यह मामला साल 2014 में सामने आया था. इसका केस टाइटल था- 'शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन'. इस मामले को सुनते हुए 2 जजों की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की शक्ति पर विचार करना जरूरी माना. यह देखने की ज़रूरत समझी कि क्या तलाक के मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट को विशेष शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए और क्या शादी को जारी रखना असंभव होना भी इसके इस्तेमाल का आधार हो सकता है?
2016 में यह मामला 5 जजों की संविधान पीठ को भेज दिया गया. सितंबर 2022 में जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, ए एस ओका, विक्रम नाथ और जे के माहेश्वरी ने इस मामले को सुना और अब बेंच का फैसला आया है. जजों ने यह माना है कि अनुच्छेद 142 की व्यवस्था संविधान में इसलिए की गई है, ताकि लोगों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट आदेश दे सके.
क्या कहता है हिंदू मैरिज एक्ट
हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 13-B में इस बात का प्रावधान है कि अगर पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक के लिए फैमिली कोर्ट को आवेदन दे सकते हैं. लेकिन फैमिली कोर्ट में मुकदमों की अधिक संख्या के चलते जज के सामने आवेदन सुनवाई के लिए आने में समय लग जाता है. इसके बाद तलाक का पहला मोशन जारी होता है, लेकिन दूसरा मोशन यानी तलाक की औपचारिक डिक्री हासिल करने के लिए 6 महीने के इंतजार करना होता है.