यूपी चुनाव (UP Elections 2022) में बीजेपी की जीत ने जितना हैरान विरोधियों को किया है, उतना ही हैरान Bahuan Samaj Party (BSP) की हार ने हर विश्लेषक को किया है. हार भी ऐसी कि महज 1 सीट पर पार्टी आकर सिमट गई है. बीएसपी को अभी 13 पर्सेंट से भी कम वोट मिलते दिखाई दे रहे हैं. बीएसपी को ये वोट पर्सेंट मिलना इसलिए भी हैरान करता है क्योंकि पार्टी जिस दलित वोट की नुमाइंदगी करती है, राज्य में उसकी आबादी 20-21 है. आज भी दलित समुदाय की ज्यादातर आबादी बीएसपी प्रमुख मायावती को ही अपना नेता मानती है.
बता दें कि 2017 में बीएसपी को 22.23% वोट मिले थे. इन चुनावों में पार्टी को 19 सीटें मिली थीं. तमाम दावों के बावजूद बीएसपी का 1 सीट पर आकर सिमट जाना मायावती के राजनीतिक करियर का अंत हो जाना तो नहीं?
कोई उत्तराधिकारी नहीं
यूपी में बीएसपी के मुकाबले में बीजेपी, एसपी और कांग्रेस है. एसपी और कांग्रेस में जहां अगली पीढ़ियों ने कमान संभाल ली है, तो बीजेपी एक संगठनात्मक ढांचे के साथ आगे बढ़ रही है लेकिन बीएसपी में कोई मजबूत उत्तराधिकारी आज भी नहीं दिखाई देता है. मायावती ने हाल में अपने सिपहसलारों को नई जिम्मेदारी सौंपी, जिसमें उन्होंने अपने भाई आनंद कुमार और भतीजे आकाश आनंद को अहम भूमिका में रखा. आनंद कुमार को बसपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया, तो आकाश आनंद को नेशनल को-ऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी दी गई. मायावती ने इस तरह से बसपा में नंबर दो की पोजिशन पर भाई और भतीजे को बिठाया, लेकिन मायावती जैसा कद और समुदाय में उनके जैसी पकड़ बना पाने वाला माद्दा किसी में नहीं दिखाई देता है.
नहीं दिखता दूसरा नेता
उत्तराधिकारी के अलावा एक पक्ष ये भी है कि बीएसपी में मायावती के अलावा कोई दूसरा नेता दिखाई नहीं देता है. मायावती के कई भरोसेमंद उनका साथ छोड़ चुके हैं. इसमें स्वामी प्रसाद मौर्य, रामबीर उपाध्याय सरीखे राजनेता हैं. फेहरिस्त लंबी है. मायावती के कई साथी अब दूसरे दलों का रुख कर चुके हैं. ऐसे में यह राजनीतिक स्थिति बताती है कि मायावती और बीएसपी का राजनीतिक भविष्य अब संकट में है. और पार्टी को इसपर अब गंभीरता से सोचना होगा.
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