मंगलवार को लोकसभा (Loksabha) में बीजेपी के लिए उस वक्त असमंजस हालात हो गए, जब उसकी अपनी ही सांसद पार्टी लाइन से अलग जातिगत जनगणना (Caste bases census) का मुद्दा उठानी लगी. दरअसल मंगलवार को ओबीसी संविधान संशोधन 2021
पर सदन में चर्चा के दौरान बदायूं से सांसद संघमित्रा मौर्य (Sanghmitra Maurya) ने विपक्ष की कई पार्टियों की ओर से उठाई जा रही मांग के सुर में सुर मिला दिया. बुधवार को संघमित्रा ने कहा कि पिछली सरकारों ने जातिगत जनगणना का विरोध किया था लेकिन अब केंद्र की मोदी सरकार ने राज्यों को इसका अधिकार दे दिया है. वो बोलीं कि कांग्रेस की जो सरकारें सही ना कर सकीं, उसे मोदी सरकार ने कर दिखाया है. उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों में मवेशियों की गिनती होती थी लेकिन पिछड़ी जाति के लोगों की सही गिनती नहीं होती थी.
मौर्य ने ये भी कहा कि जब 1931 में जातिगत जनगणना हुई थी तो देश में महज 52 फीसदी पिछड़ा वर्ग था लेकिन अब किसी कोई नहीं पता कि ये संख्या कितनी हैं, ऐसे में अगर फिर से ऐसी जनगणना होती है तो ओबीसी समुदाय के लोगों को सरकारों की योजनाओं का फायदा पहुंचेगा. आपको बता दें कि जातिगत जनगणना को लेकर लंबे वक्त से मांग की जा रही है .बिहार में बीजेपी के साथी नीतीश कुमार भी जातिगत जनगणना की वकालत करते आ रहे हैं.