कम उम्र में न्यूट्रिशन की कमी और टाइप 2 डायबिटीज़ के मामले देश में दिन प्रति दिन बढ़ते जा रहे हैं. 2019 में हुए UNICEF के एक सर्वे के अनुसार 5 से 9 साल की उम्र का हर 10 में से 1 बच्चा प्री डायबिटिक और 1 परसेंट बच्चे डाइबिटिक पाए गए.
इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों ने 1993 में पुणे मैटरनल न्यूट्रिशन स्टडी की शुरुआत की जिसमें लगभग 700 परिवारों को तीन दशक तक निगरानी में रखा गया. ये स्टडी अब अमेरिकन डायबिटीज़ एसोसिएशन के डायबिटीज़ केयर नाम के एक जर्नल में प्रकाशित की गई है. इस स्टडी के लिए प्रेग्नेंसी से पहले, प्रेगनेंसी के दौरान और उसके बाद महिलाओं और उनके बच्चों के स्वास्थ्य पर नज़र रखी गई. ये सभी बच्चे अब वयस्क हो चुके हैं.
रिसर्चर्स ने पाया कि 18 साल की उम्र में 37 प्रतिशत पुरुष और 18 प्रतिशत महिलाएं प्री डायबिटिक थे, वो भी तब जब उनमें से आधे लोगों का वज़न ज़रूरत से कम था. यहां तक कि 6 और 12 साल की उम्र में भी उनके ब्लड में ग्लूकोज़ लेवल बढ़ने के लक्षण नज़र आ रहे थे. जिसे देखते हुए टीम इस निष्कर्ष पर पहुंची कि गर्भ में बच्चे की सही से ग्रोथ ना हो पाना कम उम्र में डायबिटीज़ के खतरे को बढ़ा सकता है.
स्टडी में पाया गया कि गर्भ में पैंक्रियाज़ की सही से ग्रोथ ना हो पाने की वजह से बड़े होकर पैंक्रियाज़ सही से फंक्शन नहीं कर पाते हैं जिसकी वजह से बढ़ती उम्र के साथ बदलती शरीर की ज़रूरतें पूरी नहीं हो पाती हैं.
जन्म के समय बच्चे का साइज़ छोटा होना, प्रेग्नेंसी के दौरान हाइपरग्लाइसीमिया और बचपन से हाइपरग्लाइसीमिया ये सभी भविष्य में डायबिटीज़ का शिकार होने के साइन हो सकते हैं. अंत में टीम ने सुझाव दिया कि डायबिटीज़ की जांच करने की उम्र को 30 से 25 कर दिया जाना चाहिए और डायबिटीज़ से बचने के लिए गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला के न्यूट्रिशन इंटेक पर ध्यान दिया जाना चाहिए.