सितंबर में 3 कृषि बिलों के कानून बनने के बाद से ही किसानों में खासा असंतोष दिख रहा है
इसी विरोध प्रदर्शन के चलते पंजाब, हरियाणा के किसान 26 और 27 नवंबर को दिल्ली कूच के लिए निकले.. हालांकि इन किसानों को दिल्ली के एंट्री प्वाइंट पर ही रोक लिया गया .उसके बाद से ये किसान वहीं बॉर्डर पर बैठ गए..सरकार के साथ पांच राउंड की बातचीत के बावजूद किसानों और सरकार के बीच गतिरोध अभी भी कायम है...आइये देखते हैं कि दरअसल किसान आंदोलन कर क्यों रहे हैं.
पहले आपको उन कानूनों के बारे में बताते हैं जिनको लेकर विवाद है...वो तीन कानून हैं
किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020
किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक
आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020
अब इन कानूनों को लेकर किसानों में डर क्यों है
- नई व्यवस्था में मंडी और एमएसपी सिस्टम खत्म हो जाएगा
- डर है कि सरकार गेहूं और चावल लेना बंद कर देगी
-डर है कि उन्हें अपना माल प्राइवेट कंपनियों और बड़े कॉरपोरेट घरानों को बेचना पड़ेगा
तो इसे लेकर किसानों की मांगें क्या हैं
- तीनों कृषि कानून को वापस लिया जाए
-किसानों का कहना है कि इनसे खेती का निजीकरण होगा और बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा
-किसानों को लिखित में आश्वासन दिया जाए कि एमएसपी सिस्टम जारी रहेगा
-किसान बिजली बिल 2020 का भी विरोध कर रहे हैं
-किसानों का आरोप है कि इससे बिजली वितरण प्रणाली का निजीकरण हो जाएगा
दरअसल लेकिन किसान पीछे हटते दिखाई नहीं दे रहे. इस बात का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि
- किसानों और सरकार के बीच अब तक पांच दौर की बैठक हो चुकी है
- दोनों पक्षों के बीच अगले दौर की बैठक 9 दिसंबर को होगी
- सरकार का कहना है कि MSP जारी रहेगी और उसे छेड़ा नहीं जाएगा
- कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर की ओर से कहा गया कि APMC यानि मंडी व्यवस्था को और मजबूत किए जाने की ज़रुरत है
-और इस पर सरकार किसानों की गलतफहमी दूर करने के लिए भी तैयार है
- किसानों के साथ बातचीत में सरकार की ओर से कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव दिया गया है लेकिन किसान नेताओं ने ठुकरा दिया
-सरकार की ओर से अब तक की बैठकों में ये कहा गया कि कानून रद्द करने के अलावा
कोई और रास्ता निकाला जाए
-हालांकि किसानों का कहना है कि अब हम सरकार से चर्चा नहीं, ठोस जवाब चाहते हैं.
जाहिर अब इसकी निगाहें 9 दिसंबर पर टिकी हैं..जब किसान और सरकार एक बार फिर बातचीत की मेज़ पर होंगे.
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