जी जनाब ये बनारस है ... बड़े शान से यहां के लोग खुद को बनारसी कहते हैं ... ये बनारसीपन इस शहर के अंदाज में है ... ऐतिहासिक नाम काशी है और अब इसे वाराणसी कहते हैं ... वाराणसी का नाम दो नदियों वरुणा और असी के संगम पर पड़ा है. वैसे वाराणसी का इतिहास शायद इतिहास के पन्नों से भी पुराना है ... तभी तो मार्क ट्वेन ने बनारस के बारे में लिखा था ... 'बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से भी पुराना है, किंवदंतियों से भी प्राचीन है और जब इन सबको इकट्ठा कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है' पर यहां की सियासी हवा इतनी प्राचीन नहीं लगती ... राजनीतिक रण में जो योद्धा यहां से लड़ रहा है वो इस शहर के लिए सिर्फ 5 साल पुराना है ... पर उसे बखूबी पता है कि इस देश की सियासत में धर्म और संस्कृति का क्या महत्व है ... तभी तो उसने देश की धार्मिक और सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले इस प्राचीन शहर को ही चुना ... और आते ही खुद को मां गंगा से जोड़ लिया . और मां गंगा ने इन्हें अपना आशीर्वाद देते हुए 3 लाख से भी ज्यादा वोटों से जीत दिलाई ... दरअसल 1991 में चली हिंदू लहर ने इस शहर की सियासी फिजा ही बदल दी,
वाराणसी में मोदी Vs मोदी
महागठबंधन क्या बिगाड़ेगा खेल ?
त्रिकोणीय लड़ाई में फंसी दिल्ली
क्या शिवेसना फेंक सकती है गुगली ?
रैलियों में मोदी Vs राहुल
किस ओर जाएंगे जगनमोहन ?
क्या KCR बनेंगे किंग ?
किसके इर्द गिर्द लड़ा गया चुनाव ?
2019 में चलेगा मायावती फैक्टर ?
editorji कैफे में बोले सुधीन्द्र भदौरिया: बहनजी PM बनेंगी तो आंबेडकर का सपना साकार होगा