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महाराष्ट्र में चले सियासी सस्पेंस थ्रिलर का अगर कोई हीरो है ... तो वो हैं मराठा छत्रप और एनसीपी प्रमुख शरद पवार ...
करीब महीने भर के सियासी समर में यूं तो नूरा कुश्ती खूब हुई ... सियासी चालें भी चली गईं ... शह और मात का खेल भी हुआ ... वार-पलटवार भी खूब हुए ... पर सियासत की इस बिसात में भाजपा की चाणक्य नीति को अगर किसी ने मात दी है तो वो हैं शरद पवार. इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम के बीच अगर कोई नाम सबसे ज्यादा पावरफुल बन के उभरा है तो वो है शरद पवार का.
नैट- होटल के बाहर नारेबाजी और पोस्टर वाला कल का -- महाराष्ट्र चे एक ही वाघ शरद पवार शरद पवार - फिर एकाध बाइट समर्थकों की फसी फीड से
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23 नवंबर की सुबह सुबह जब महाराष्ट्र के राजभवन से फडणवीस और अजित पवार के सरप्राइज शपथ की तस्वीरें आईं तो हर कोई चौंक गया, क्या आम लोग और क्या राजनीतिक पंडित. सीनियर पवार की राह आसान नहीं थी ... पवार परिवार के अजित को हथियाने वाली भाजपा के धन-बल के आगे अच्छे से अच्छे फेल हो चुके हैं ... पर पवार को
जरूर 1980 की याद आई होगी, जब तब की उनकी सोशलिस्ट कांग्रेस ने 2019 की ही तरह 54 सीटों पर जीत दर्ज की थी, पर यशवंतराव चव्हाण ने उनके विधायकों को तोड़ लिया था और उनके साथ बमुश्किल पांच छह विधायक ही बचे थे. पर इस बार पवार ने ठान लिया था कि अबकी बार 1980 नहीं होने देंगे.
बाइट- पवार की - 23 तारीख की - अब तो बीजेपी की सरकार नहीं बनने देंगे
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और पवार ने बता दिया और जता दिया कि गठबंधन के इस खेल में उनका कोई सानी नहीं, तभी तो महज 38 साल की उम्र में महाराष्ट्र में गठबंधन की पहली सरकार बनाने वाले पवार के पैंतरों को भाजपा भांप न सकी, और पवार ने पावर दिखाते हुए न सिर्फ पार्टी को टूट से बचाया बल्कि पूरा गेम ही बदल दिया.
नंबर जोड़ने में पुराने उस्ताद रहे हैं शरद पवार ... तभी तो महाराष्ट्र की राजनीति ने पहली बार विधायकों की परेड भी देख ली ... चाचा पवार के आगे भतीजे पवार की नहीं चली और भाजपा चारों खाने चित्त हो गई. सियासत में खेल खराब करना क्या होता है ये शरद पवार ने दिखा दिया, और सिखा भी दिया.
बाइट- फडणवीस के इस्तीफा देने वाली -
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और महज 80 घंटे बाद ही देवेंद्र फडणवीस की बतौर सीएम दूसरी पारी का समापन हो गया.
सियासत में शरद पवार पुराना चावल कहलाते हैं ... उनकी राजनीति में भरोसा करना आसान नहीं, तभी तो संजय राउत तक को कहना पड़ा था कि शरद पवार को समझने के लिए 100 जन्म लेने पड़ेंगे
बाइट- संजय राउत
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शांत दिखने वाले पवार बेहद जुझारू रहे हैं और साथ ही आक्रामक भी ... विधानसभा चुनाव के शुरू होने तक वो सीन में कहीं नहीं थे, पार्टी के बड़े और पुराने नेता जा रहे थे ... साथी पार्टी कांग्रेस का हाल भी बेहाल था, कांग्रेस आलाकमान ने तो हाथ खड़े कर दिए थे... भाजपा-शिवसेना की बड़ी जीत का सबको यकीन था ... लेकिन तभी सरकार की ईडी ने पवार को छेड़ दिया और फिर 78 साल के इस नौजवान ने अपना रंग दिखाया ... ये तस्वीर तो आपको याद ही होगी ... सतारा में चुनाव प्रचार के दौरान मूसलाधार बारिश में भी 78 साल का ये शख्स बिना रुके और डिगे भाषण दे रहा है ... और देखते ही देखते पवार ने सियासी हवा काफी बदल दी.
अजित पवर का भाजपा को समर्थन देना भले ही पवार के लिए चौंकाने वाला रहा हो, लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति के इस भीष्म पितामह ने राजनीति की पिच पर सधी हुई बल्लेबाजी की और तीनों दलों के नेताओं और विधायकों को अपने साथ जोड़े रखा, तब तक जब तक कि महा विकास अघाड़ी बन नहीं गई. सोनिया गांधी को शिवसेना के साथ आने के लिए मनाने का श्रेय भी पवार को ही जाता है. तो वहीं अजित पवार पर सख्त ऐक्शन न लेकर भी उन्होंने पार्टी में उनके सपोर्ट बेस को कुंद करते हुए उन्हें बैकफुट पर ला दिया.
बाइट- उद्धव ठाकरे की शरद पवार को धनयवाद देते हुए - सीएम चुने जाने के बाद की
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यूं तो महाराष्ट्र में सियासी घमासान नतीजों के बाद से ही शुरू हो गया था ... लेकिन 23 नवंबर से 27 नवंबर के दौरान की उठापटक के बाद भले ही महाराष्ट्र का ताज उद्धव ठाकरे के सिर सजा हो, लेकिन ये ताज सजाने वाले कोई और नहीं पवार हैं और उनका पावर है. इस पूरे सियासी मैच के मैन ऑफ द मैच हैं शरद पवार.
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