ये कहानी है बंगाल से चुन कर आए एक सांसद के बारे में जो एक रोज दिल्ली स्थित अपने आवास के बरामदे में बैठ अपनी बहन के साथ शाम की चाय पी रहे थे और उन्होंने अपने घर के सामने से गुजरते राष्ट्रपति के घोड़ों को देख कर कहा कि वो अगले जन्म में ऐसे ही कुलीन घोड़े के रूप में जन्म लेना चाहते हैं. इस पर उनकी बहन बोलीं कि राष्ट्रपति का घोड़ा क्यों...भाई आप इसी जन्म में राष्ट्रपति ही बनेंगे. सौभाग्य देखिए कि साल 2012 में उस बहन का भाई राष्ट्रपति बन भी गया. ये सांसद थे प्रणब मुखर्जी
प्रणब मुखर्जी इंदिरा गांधी की नजर में तब आए जब उन्होंने पश्चिम बंगाल के मिदनापुर से उपचुनाव लड़ रहे वी के कृष्ण मेनन का शानदार तरीके से इलेक्शन मैनेज किया. बंगाल की एक सीट से एक मलयाली उम्मीदवार की जीत के पीछे प्रणब मुखर्जी की बड़ी भूमिका थी और फिर यहीं से ही प्रणब कांग्रेस और राष्ट्रीय राजनीति में एक से बढ़ कर एक भूमिकाएं निभाते चले गए.
प्रणब मुखर्जी 1969 राज्यसभा के लिए चुने गए और यहां से शुरू हुई उनकी पॉलिटिकल पारी में उन्होंने अपनी योग्यता के दम पर अनेकों मुकाम हासिल किए. साल 1982 में मात्र 47 साल की आयु में वो देश के सबसे युवा वित्त मंत्री बने. साल 2004 में उन्होंने वित्त, रक्षा और विदेश मंत्रालय को संभाला और इस उपलब्धि को पाने वाले वो देश के पहले नेता बने. कांग्रेस के सबसे भरोसेमंद नेताओं में से एक और पार्टी का तेज माने जाने वाले प्रणब दा की प्रतिभा का अंदाजा आप यहीं से लगा लीजिए कि 2012 में राष्ट्रपति बनने से पहले साल 2004 से 2012 तक उन्होंने 90 विभिन्न 'मंत्रियों के समूहों' की अध्यक्षता की थी.
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि प्रणब दा के रिश्ते हमेशा ही कांग्रेस के साथ मधुर रहे. जब तक इंदिरा गांधी थीं तब तक प्रणब पार्टी में नंबर दो की हैसियत रखते थे और उनकी हत्या के बाद वो पीएम पद की दौड़ में भी थे. लेकिन तत्कालीन हालातों में राजीव गांधी देश के पीएम बने और उन्होंने प्रणब दा को अपनी कैबिनेट में जगह नहीं दी. इस से नाराज प्रणब ने कांग्रेस छोड़ दी और अपनी एक नई पार्टी बनाई, हालांकि इसे कुछ खास सफलता नहीं मिली और 1991 में उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया. प्रणब दूसरी बार पीएम की कुर्सी तक पहुंचते पहुंचते तब रह गए जब साल 2004 में मनमोहन सिंह को कांग्रेस ने प्रधानमंत्री बनाया और प्रणब उनके तहत विदेश मंत्री बने. यहां ये भी बताना दिलचस्प होगा कि 1982 में जब प्रणब मुखर्जी वित्त मंत्री थे उस वक़्त मनमोहन सिंह आऱबीआई के गवर्नर थे और इन्हें रिपोर्ट करते थे.
लेकिन प्रणब मुखर्जी का व्यक्तित्व ऐसा था कि वो हमेशा हर किसी से सीखने को उत्सुक रहते थे और दूसरे लोग भी उनके अनुभव से ज्ञान प्राप्त करते थे. उनकी प्रतिभा की स्वीकारिता हर पार्टी, हर विचारधारा में थी और यही कारण था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें अपने पिता तुल्य बताया था. इतना ही नहीं प्रणब पहले ऐसे कांग्रेस से जुड़े नेता भी रहे जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दशहरा कार्यक्रम में शामिल हुए. अपनी 50 साल की राजनीतिक यात्रा में प्रणब दा को कई सम्मान मिले और राष्ट्र के प्रति उनकी सेवाओं को देखते हुए वर्ष 2019 में उन्हें भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से अलंकृत किया गया. 11 दिसंबर 1935 को पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के मिराती गांव में जन्में प्रणब दा की देह भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन भारतीय राजनीति के परिदृश्य में वो हमेशा अमर रहेंगे.
प्रणब मुखर्जी
1935-2020