हाइलाइट्स

  • एडमंड हिलेरी ने गंगा की धारा के विपरीत नाव चलाने का फैसला किया था
  • एडमंड हिलेरी की कीवी मोटर बोट आज जिम कॉर्बेट के म्युजियम में है
  • गंगा की लहरों में फंस गई थी नावें, ऑपरेशन बीच में रोकना पड़ा था

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Sir Edmund Hillary: माउंट एवरेस्ट फतह करने वाले हिलेरी Ocean to Sky में कैसे हुए नाकाम | Jharokha 25 Aug

29 मई 1953 को जिस एडमंड हिलेरी को एवरेस्ट पर जीत हासिल हुई थी, उन्हीं हिलेरी को 24 साल बाद 1977 में गंगा की धारा में हार भी मिली. आइए जानते हैं एडमंड हिलेरी के उस मिशन के बारे में जिसने उन्हें घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था...

Sir Edmund Hillary: माउंट एवरेस्ट फतह करने वाले हिलेरी Ocean to Sky में कैसे हुए नाकाम | Jharokha 25 Aug

Ocean to Sky Mission : 29 मई 1953 को एवरेस्ट की चोटी फतह करने वाले सर एडमंड हिलेरी (Sir Edmund Hillary) ने 24 साल बाद 25 अगस्त 1977 को अपने एक दूसरे मिशन का आगाज किया था. इसका नाम था ओशिएन टू स्काई (Ocean to Sky). एवरेस्ट मिशन पर फतह हासिल करने वाले हिलेरी को इस मिशन में नाकामी मिली थी और उन्हें हारकर मिशन बीच में छोड़ना पड़ा था. आइए जानते हैं हिलेरी के इसी मिशन के बारे में.

1977 में हिलेरी ने शुरू किया Ocean to Sky Mission

भारत की सबसे बड़ी नदी गंगा जीवनदायिनी है और जब यह पूरे आवेग से बहती है, तो प्रलय भी लाती है... 1953 में एवरेस्ट फतह कर चुके एडमंड हिलेरी ने 24 साल बाद इसी गंगा की धारा के विपरीत नाव चलाने का फैसला किया था... लेकिन इस बार उनके साथ 18 लोग और भी थे और इस यात्रा में खुद उनका बेटा साथ था... इस मिशन को नाम दिया गया... ओशिएन टू स्काई.

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आज की तारीख का संबंध एवरेस्ट पर फतह हासिल करने वाले सर एडमंड हिलेरी से है... 25 अगस्त 1977 को हिलेरी ने आज ही के दिन अपनी ओशिएन टू स्काई यात्रा का आगाज किया था.

हिलेरी ने हल्दिया बंदरगाह से शुरू की यात्रा

25 अगस्त... साल 1977 की वो तारीख जब सर एडमंड हिलेरी ने अपने दोस्तों के साथ भारत की पवित्र गंगा नदी को पार करने के लिए ओशिएन टू स्काई यात्रा हल्दिया बंदरगाह से शुरू की थी... हिलेरी का मकसद था- कलकत्ता से बदरीनाथ तक गंगा की धारा के विपरीत जल प्रवाह पर विजय हासिल करना.

इस साहसी अभियान में उनके साथ तीन जेट नौकाओं का बेड़ा था. पहला गंगा, दूसरा एयर इंडिया और तीसरा कीवी. उनकी टीम में 18 लोग शामिल थे और इसमें उनका 22 साल का बेटा भी साथ था. हिलेरी का ये अभियान उन दिनों बड़ी चर्चा में था और सबकी निगाहें इस मिशन पर थी.

सभी के मन में ये सवाल था कि क्या हिमालय को जीतने वाला गंगा को भी साध लेगा? लेकिन नंदप्रयाग के पास नदी के बेहद तेज बहाव और खड़ी चट्टानों से घिर जाने के बाद उनकी नाव आगे नहीं बढ़ पाई. उन्होंने कई कोशिशें की और आखिरकार उन्हें मानना पड़ा. 24 साल पहले जिस दिलेर ने कुदरत पर विजय पाई थी... 24 साल बाद उसी कुदरत ने एडमंड को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया...

कीवी मोटर बोट कॉर्बेट म्युजियम में है

45 साल पहले एडमंड हिलेरी ने जिस कीवी मोटर बोट (Kiwi Motor Boat) का इस्तेमाल अपने अधूरे मिशन के लिए किया था, वह आज कॉर्बेट नेशनल पार्क (Jim Corbett National Park
) के म्यूजियम में है. कीवी बोट कॉर्बेट नेशनल पार्क की अमूल्य धरोहर के रूप में संरक्षित की गई है और जिसे देखने हर साल देश-विदेश से हजारों पर्यटक कॉर्बेट नेशनल पार्क के धनगढ़ी पहुंचते हैं.

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एवरेस्ट फतह करने वाले पहले शख्स सर एडमंड हिलेरी ने 'ओशिएन टू स्काई' अभियान में इस बोट का इस्तेमाल किया था. मिशन बीच में ही छोड़ना पड़ा था जिसके बाद हिलेरी ने अभियान में इस्तेमाल होने वाली तीनों बोट उपहार के तौर पर भारत सरकार को दे दी. इसमें से एक कीवी बोट को भारत सरकार ने एक मई 1979 को कॉर्बेट नेशनल पार्क प्रशासन को सौंपा था. इसके अलावा दो अन्य गंगा और एयर इंडिया नाम की बोट को सुंदरबन (पश्चिम बंगाल) और सीमा सुरक्षा बल (Border Security Force) को सौंप दिया गया था.

1953 में माउंट एवरेस्ट को फतह किया था हिलेरी ने

ये तो हुई आज के दिन की बात... लेकिन 1977 में इस यात्रा की शुरुआत से 24 साल पहले हिलेरी ने माउंट एवरेस्ट को फतह किया था... एवरेस्ट पर विजय हासिल करने वाले न्यूजीलैंड के नागरिक एडमंड हिलेरी का कदम 8,850 मीटर ऊंचे एवरेस्ट पर किसी मानव का पहला कदम माना जाता है. इस उपलब्धि के बाद वे एडमंड हिलेरी से सर एडमंड हिलेरी बन गए थे. उन्होंने 29 मई 1953 को सिर्फ 33 साल की उम्र में नेपाल के पर्वतारोही शेरपा तेनजिंग नोर्गे के साथ माउंट एवरेस्ट पर कदम रखा था. एवरेस्ट शिखर पर सबसे पहले पहुंचकर सुरक्षित वापस लौटने वाले हिलेरी और शेरपा तेनजिंग (Sir Edmund Hillary and Tenzing Norgay) ही थे.

एवरेस्ट फतह करने वाले दिलेर एडमंट के बारे में अक्सर लोग सवाल करते हैं कि हिमालय को फतह करने के बाद उन्होंने कैसा महसूस किया, इस सवाल का जवाब अक्सर ही लोग तलाशते हैं... एडमंड ने लिखा है- हमने ऐसा महसूस नहीं किया कि हमने एवरेस्ट पर विजय पा ली है, बल्कि हमें लगा कि हमने उसके अहंकार को चूर चूर कर दिया है...

एवरेस्ट फतह के बाद हिलेरी-तेनजिंग ने कैसा महसूस किया?

एडमंड और तेनजिंग ने एवरेस्ट शिखर पर जो 15 मिनट की अवधि गुजारी, वह उनके जीवन के लिए निर्णायक साबित हुई... एडमंड, तेनजिंग से हाथ मिलाना चाहते थे, जबकि तेनजिंग ने खुशी के मारे एडमंड को बाहों में भर लिया था. एडमंड ने स्वीकार किया कि उन्होंने थोड़ी हिचकिचाहट महसूस की थी.

मगर इसमें कोई शक नहीं कि दोनों ने संतुष्टि के साथ एक दूसरे की पीठ थपथपाई थी. एडमंड ने अपना ऑक्सीजन सेट उतार दिया और जैकेट के अंदर से कैमरा निकालकर चोटी पर खड़े तेनजिंग की तस्वीर खींचने लगे. तेनजिंग के हाथ में बर्फ काटने वाली कुल्हाड़ी थी... झंडे लहरा रहे थे...

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फिर उन्होंने चोटी की तरफ आनेवाली सभी मेड़ों की तस्वीरें खींची और अपने अगले लक्ष्य के बारे में सोचा था. तेनजिंग ने प्रार्थना की और बर्फ के नीचे कुछ मिठाई और अपनी बेटी पेम पेम की रंगीन पेंसिल गाड़ दी... जब एडमंड को जॉन हंट का दिया हुआ क्रॉस याद आया तो उन्होंने उसे तेनजिंग के बनाए गड्ढे के बगल में गाड़ दिया.

एडमंड ने लिखा- इसमें कोई शक नहीं कि अजीब चीजें एक दूसरे के बगल में गाड़ी गई. मगर ये चीजें इस बात का प्रतीक थीं कि पर्वत से मनुष्य को आध्यात्मिक शक्ति और शांति मिलती है.

दोनों वहीं बैठ गए और कैंडल मिंट केक बांटकर खाया... उसका ठंडा स्वाद माहौल से मिलता जुलता था... इसके बाद दोनों नीचे उथरे... 8 हजार मीटर से ज्यादा की चढ़ाई करने के बाद दर्द से उबरने में हफ्तों लगते हैं... बेस कैंप पहुंचने से पहले ये खबर दुनिया में पहुंच चुकी थी... उन्होंने वहां अपनी जीत की खबर बीबीसी रेडियो पर सुनी.

एवरेस्ट से नीचे आकर हिलेरी ने मां को खत लिखा

एडमंड ने इसके बाद गहरी नींद ली और अपनी मां के नाम एक एयरोग्राम लिखा- (डाक पहुंचानेवाले धावक नियमित रूप से बेस कैंप से काठमांडू तक चिट्ठियां लेकर जाते थे)... एडमंड ने खत में लिखा- प्यारी मां... शायद मैंने दुनिया को ज्यादा खुशी नहीं दी है, मगर मैंने हिलेरी वंश के नाम को कुछ प्रसिद्ध बनाने की कोशिश जरूर की है. पत्र के आखिर में उन्होंने लिखा- लौटकर तुम्हें ढेर सारे किस्से सुनाउंगा...

हिमालय जैसी ऊंची कद काठी वाले हिलेरी का दिल भी हिमालय से कम विशाल नहीं था... हिमालय के लोगों की भलाई के लिए कई स्कूल, अस्पताल, व हवाईअड्डे बनाने वाले हिलेरी अपनी दूसरी पत्नी लेडी जून हिलेरी के साथ ऑकलैंड में सादगी से रहे. जिस हिमालय ने हिलेरी को शोहरत की बुलंदी पर पहुंचा, उसी हिमालय ने हिलेरी से उनकी पहली पत्नी और एक बेटी को भी छीन लिया.

हिलेरी की पहली पत्नी लुईस और बेटी बलिंडा का हेलिकॉप्टर दुर्घटना में साल 1975 में निधन हो गया था. वे उस वक्त हेलीकॉप्टर से न्यूजीलैंड की सहायता से बनाए गए एक अस्पताल में काम करने के लिए उत्तरी नेपाल में स्थित लुकला जा रही थीं.... हिलेरी की मृत्यु 11 जनवरी 2008 को 88 साल की उम्र में ऑकलैंड में हुई...

चलते चलते आज की दूसरी अहम घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं...

1975 - भारत पोलो विश्व विजेता बना

2001 - लंदन में ऑस्ट्रेलियाई लेग स्पिनर शेन वॉर्न (Shane Warne) टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में 400 टेस्ट विकेट लेने वाले पहले स्पिन गेंदबाज बने

2003 - मुंबई के गेटवे ऑफ़ इंडिया (Gateway of India) और मुंबा देवी मंदिर के पास हुए कार बम विस्फोट में 50 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई

2011 - श्रीलंका (Sri lanka) की सरकार ने देश में घोषित इमर्जेंसी को 30 साल बाद वापस लिया

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