साल 1861 में धारा 377 को पेश किया गया. इसे 'प्रकृति के नियम के खिलाफ' यौन गतिविधियों में अपराध घोषित कर दिया गया.
धारा 377 के खिलाफ पहली याचिका एड्स भेदभाव विरोधी आंदोलन द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में दायर की गई थी. हालांकि 2001 में इसे खारिज कर दिया गया.
नाज फाउंडेशन ने दिल्ली हाईकोर्ट में धारा 377 की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए एक जनहित याचिका दायर की.
दिल्ली HC ने याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि इस याचिका पर सुनवाई का कोई कारण नहीं है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने LGBTQ समुदाय के पक्ष में फैसला सुनाया. साथ ही समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने इसे प्राकृतिक व्यवहार के विरूद्ध बताया और इसे अपराध ठहराया.
सुप्रीम कोर्ट ने 2013 के फैसले को पलट दिया. सेम सेक्स रिलेशनशिप को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाला फैसला दिया.
सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक विवाह की मान्यता पर फैसला सुना सकता है.