मोहम्मद रफ़ी: वो आवाज़ जिसपर आज भी 'गुन गुना रहे हैं भंवरे' और लोग कहते हैं- 'ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं

Updated : Jul 30, 2021 17:09
|
Editorji News Desk

ना फनकार तुझसा तेरे बाद आया

मोहम्मद रफ़ी तू बहुत याद आया......

आनंद बख्शी के लिखे बोल और मोहम्मद अज़ीज़ की आवाज में गाए गए इस गाने में 100 फीसदी सच्चाई है कि रफी साहब (Mohammed Rafi) के बाद उनसा कोई फनकार नहीं आया. आवाज के इस जादूगर को मशहूर संगीतकार नौशाद ने भारत के नए तानसेन की संज्ञा दी थी. भारत क्या, पूरी दुनिया के करोड़ों लोगों के लिए, मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ जिंदगी का हिस्सा बन गई थी. रफी साहब की आवाज़ से ही लोगों का दिन शुरू होता था और उनकी आवाज़ पर ही रात ढलती थी. उनकी आवाज आज भी युवाओं से लेकर बुजुर्गों के दिलों के तार छेड़ देती है.


एक कैदी की आखिरी ख्वाहिश थी मोहम्मद रफी की आवाज़


बीबीसी की एक रिपोर्ट में संगीतकार नौशाद के उस किस्से का जिक्र किया गया है जिसमें उन्होंने बताया था कि एक बार एक अपराधी को फांसी दी जी रही थी. उससे उसकी अंतिम इच्छा पूछी गई तो उसने ना तो अपने परिवार से मिलने की ख्वाहिश जाहिर की और ना ही दुनिया की किसी शय की
उसने सिर्फ एक ही फरमाइश की जिसे सुन कर जेल कर्मचारी सन्न रह गए. उसने कहा कि वो मरने से पहले रफ़ी का गाया बैजू बावरा फ़िल्म का गाना 'ऐ दुनिया के रखवाले' सुनना चाहता है. इस पर एक टेप रिकॉर्डर लाया गया और उसके लिए वह गाना बजाया गया.


ये बात शायद कम ही लोग जानते हैं कि इस गाने के लिए मोहम्मद रफ़ी ने 15 दिन तक रियाज़ किया था और रिकॉर्डिंग के बाद उनकी आवाज़ इस हद तक टूट गई थी कि कुछ लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि रफ़ी शायद कभी अपनी आवाज़ वापस नहीं पा सकेंगे. लेकिन रफ़ी ने लोगों को ग़लत साबित किया और देश ही नहीं दुनिया के सबसे मशहूर गायक बने.


आवाज़ के जादूगर


भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोग रफ़ी साहब की आवाज के दीवाने थे. 4 फरवरी 1980 को श्रीलंका के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मोहम्मद रफ़ी को श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में एक शो के लिए आमंत्रित किया गया था. उस दिन उनको सुनने के लिए 12 लाख लोग जमा हुए थे, जो उस वक्त का विश्व रिकॉर्ड था.

 


गायकी की हर विधा में माहिर


रफ़ी साहब के गाने लोगों की जिंदगी में चहलकदमी करते नजर आते हैं. चाहे किसी युवा के प्रेम का अल्हड़पन हो, दिल टूटने की दर्द, प्रेमिका के हुस्न की तारीफ़... मोहम्मद रफ़ी का कोई सानी नहीं था.
मानवीय भावनाओं के जितने भी पहलू हो सकते हैं... दुख, ख़ुशी, आस्था या देशभक्ति या फिर गायकी का कोई भी रूप हो जैसे भजन, क़व्वाली, लोकगीत, शास्त्रीय संगीत या ग़ज़ल, मोहम्मद रफ़ी हर विधा में माहिर थे.

 

ऐसे मिला गाने का मौका

रफ़ी साहब को पहला ब्रेक दिया था म्यूजिक डायरेक्टर श्याम सुंदर ने अपनी पंजाबी फ़िल्म 'गुल बलोच' में. इसके बाद नौशाद और हुस्नलाल भगतराम ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उस ज़माने में शर्माजी के नाम से मशहूर आज के ख़य्याम ने फ़िल्म 'बीवी' में उनसे गीत गवाए.


एक इंटरव्यू में ख़य्याम साहब ने कहा था, 1949 में मेरी उनके साथ पहली ग़जल रिकॉर्ड हुई जिसे वली साहब ने लिखा था. ग़ज़ल के बोल थे... 'अकेले में वह घबराते तो होंगे, मिटा के वह मुझको पछताते तो होंगे...' गाने के बाद ख़य्याम का रिएक्शन कुछ यूं था- रफ़ी साहब की आवाज़ के क्या कहने!  जिस तरह मैंने चाहा उन्होंने उसे गाया. जब ये फ़िल्म रिलीज़ हुई तो ये गाना रेज ऑफ़ द नेशन हो गया.


मोहम्मद रफ़ी के करियर का सबसे बेहतरीन वक़्त था 1956 से 1965 तक का समय. इस बीच उन्होंने कुल छह फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीते और रेडियो सीलोन से प्रसारित होने वाले बिनाका गीत माला में दो दशकों तक छाए रहे.


बताया जाता है कि 31 जुलाई, 1980 को रफ़ी के निधन के दिन मुंबई में तेज बारिश हो रही थी बावजूद इसके उनकी अंतिम यात्रा में दस हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए और उनके हर चाहने वाले की जुबान उन्हीं के गाए गीत के ये बोल थे... अभी ना जाओ छोड़ कर... कि दिल अभी भरा नहीं...

death anniversaryMohammed Rafisingers

Recommended For You

editorji | भारत

History 05th July: दुनिया के सामने आई पहली 'Bikini', BBC ने शुरू किया था पहला News Bulletin; जानें इतिहास

editorji | एडिटरजी स्पेशल

History 4 July: भारत और अमेरिका की आजादी से जुड़ा है आज का महत्वपूर्ण दिन, विवेकानंद से भी है कनेक्शन

editorji | एडिटरजी स्पेशल

Hathras Stampede: हाथरस के सत्संग की तरह भगदड़ मचे तो कैसे बचाएं जान? ये टिप्स आएंगे काम

editorji | एडिटरजी स्पेशल

History 3 July: 'गरीबों के बैंक' से जुड़ा है आज का बेहद रोचक इतिहास

editorji | एडिटरजी स्पेशल

History: आज धरती के भगवान 'डॉक्टर्स' को सम्मानित करने का दिन, देखें इतिहास