कोविड (COVID) के आने से पहले चीन (China) दुनिया भर मैन्युफैक्चरिंग हब था लेकिन कोविड के दौरान दुनिया के तमाम देशों की चीन पर निर्भर सप्लाई चेन जब बाधित हुई तो चीन के विकल्प की तलाश भी शुरू हो गई. अब जब कोविड का ओमिक्रोन वैरिएंट चीन में अपने पांव पसार रहा है और वहां के मैन्युफैक्चरिंग हब शंघाई और गुआंगडोंग प्रांत में हालात बिगड़ते जा रहे हैं, तब वियतनाम अचानक से 'दुनिया का नया मैन्युफैक्चरिंग हब' बनता जा रहा है. आखिर क्या है इसके पीछे की पूरी वजह... आइए हम आपको बताते हैं. आज तक की खबर के मुताबिक चीन में मैन्युफैक्चरिंग करने वाली तमाम कंपनियां अब वियतनाम का रुख कर रही हैं.
वियतनाम कैसा बन रहा है मैन्युफैक्चरिंग हब?
ऐसे में आने वाले समय में वियतनाम चीन का विकल्प बन सकता है. ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक वियतनाम के पहली तिमाही के आर्थिक आंकड़े दिखाते हैं कि महामारी (कोविड) के बीच भी उसकी तरक्की बराबर होती रही. वियतनाम के सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़ों के हिसाब से 2022 की पहली तिमाही में वियतनाम की अर्थव्यवस्था सालाना आधार पर 5.03% की दर से बढ़ी जबकि इसी दौरान चीन की आर्थिक वृद्धि दर 4.8% रही. इतना ही नहीं वियतनाम का विदेश व्यापार पहली तिमाही में बढ़कर 176.35 अरब डॉलर रहा, जो सालाना आधार पर 14.4 फीसदी ज्यादा है.
भारत और वियतनाम के सबंध
यहां आपको जानना जरूरी है कि चीन ने अपने यहां आर्थिक सुधार 1978 में शुरू किए और अपनी अर्थव्यवस्था को खोलना शुरू किया. वियतनाम ने भी चीन के नक्शे कदम पर चलते हुए 1986 में खुद के बाजार सुधार कार्यक्रम Doi Moi को शुरू किया था.
बात भारत की नजरिए से करें तो दोनों ही देशों ने चीन के साथ युद्ध लड़े हैं और दोनों का ही चीन के साथ सीमा विवाद रहा है, साथ ही, चीन ने आक्रामक रूप से अभी भी दोनों देशों की सीमाओं में अतिक्रमण की गतिविधियां जारी रखी हैं. ऐसे में चीन की आक्रामकता को नियंत्रित करने के लिये भारत और वियतनाम के बीच सहयोग में वृद्धि होना स्वाभाविक है.
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