इमरान खान(Imran khan) की मुश्किलें दोतरफा बढ़ रही हैं. पाकिस्तान मूवमेंट पार्टी (Pakistan movment Party) और जमीयत उलेमा ए फजल (JUI-F) प्रमुख फजल-उर रहमान (Maulana fazal ur rehman) ने 23 मार्च को इमरान सरकार के खिलाफ मंहगाई मार्च का ऐलान किया है. मौलाना इससे पहले PML-N और PPP के साथ इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) लेकर आए थे. 28 मार्च को पाकिस्तान की संसद नेशनल असेंबली में उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग होगी. फजल-उर रहमान का दावा है कि इमरान खान बहुमत खो चुके हैं और उनके हाथ से चीजें निकल चुकी हैं. मौलाना फजल-उर रहमान ने पिछले हफ्ते अपने समर्थकों से इस्लामाबाद कूच करने के लिए तैयार रहने को कहा था.
ये वही मौलाना हैं, जिन्होंने 2019 में इमरान सरकार को अल्टीमेटम देते हुए कहा था कि अगर इमरान खान ने कुर्सी नहीं छोड़ी तो वह पूरा पाकिस्तान बंद करा देंगे. उनके इस ऐलान पर इस्लामाबाद में 31 अक्टूबर को आजादी मार्च के हजारों प्रदर्शनकारी जमा हो गए थे. वहीं दूसरी तरफ सेना प्रमुख जनरल बाजवा और सेना के तीन सीनियर लेफ्टिनेंट जनरल का दिया समय भी खत्म हो रहा है. सभी ने इमरान खान को OIC की बैठक के बाद प्रधानमंत्री पद छोड़ने को कहा था.
पाकिस्तान में सत्ता के आंकड़ों पर नजर डालें तो इमरान को पहले 176 सांसदों का समर्थन हासिल था, लेकिन 24 सांसदों के बागी होने के बाद अब इमरान सरकार के साथ 152 सांसद ही खड़े हैं. यानी 342 सदस्यीय नेशनल असेंबली में इमरान खान बहुमत के 172 के आंकड़े से काफी पीछे हैं.हालांकि मंगलवार को OIC के उद्घाटन सत्र में इमरान खान ने एक बार फिर से कश्मीर राग अलापा.
उन्होंने कहा कि भारत ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया क्योंकि उसे हमारी तरफ से किसी तरह का दबाव महसूस नहीं हुआ. इन सबके बावजूद इमरान के सामने गद्दी छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं दिख रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि पाकिस्तान के पीएम इमरान खान 28 मार्च को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करते हैं या फिर बीच का रास्ता अपनाते हुए इस्तीफा देकर किसी और को प्रधानमंत्री बनाते हैं.