कभी पैदल चलते हुए या गाड़ी में ट्रैवल (People around the roads) करते हुए सड़कों के चौराहों और किनारों की ओर आपने ज़रूर देखा होगा. आपको ऐसी हज़ारों बस्तियां (Slum areas) और लोग दिखे होंगे जो अपने गांव खलियान और घरों को छोड़ कर अपने छोटे से परिवार (Migratory People) के बड़े सपनों को पूरा करने शहरों की झुग्गियों में बस गए हैं.
इन्हें जीने के लिए क्या चाहिए दो वक़्त की रोटी और सोने के लिए ज़मीन. इनके ज़्यादा बड़े सपने नहीं होते, ना ही होती हैं बड़ी उम्मीदें. लेकिन सपने देखने का अधिकार सबको है और ऐसे में ज़रूरी है कि सबको आगे बढ़ने का एक समान और बेहतर अवसर मिलें.
इसी को ध्यान में रखते हुए यूनाइटेड नेशंस हर साल 15 मई को इंटरनेशनल डे ऑफ फ़ैमिलीज़ (International Day of families) सेलिब्रेट करता है. फैमिली वेलफेयर, जेंडर इक्वैलिटी, एजुकेशन, हेल्थ और चिल्ड्रन राइट्स को लेकर लोगों में जागरुकता फैलाने के ले ये दिन बहुत अहम है. इस साल इंटरनेशनल फैमिलीज़ डे की थीम 'फैमिलीज़ एंड अर्बनाइजेशन" (Families and urbanisation) चुनी गई है.
इस थीम का एकमात्र लक्ष्य है सस्टेनेबल और फैमिली फ्रेंडली अर्बन पॉलिसीज़ बनाना, ताकि बाहर से आकर शहरों में बसे लाखों लोगों की बेहतर भविष्य की उम्मीदें ज़िंदा रहें. वो और उनकी आने वाली पीढ़ियां बेहतर ज़िंदगी जीएं.