राजस्थान (Rajasthan) के अलवर (Alwar) में 300 साल पुराना मंदिर तोड़ने का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है. दरअसल, राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव (Assembly Election) होने हैं. ऐसे में, कांग्रेस (Congress) और बीजेपी (BJP) इस मुद्दे पर एक-दूसरे को घेरने की पूरी कोशिश में लगे हैं. बीजेपी के हमलावर होने के बाद राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बीजेपी और RSS पर आरोप मंढ़ दिए.
शनिवार को बीजेपी का प्रतिनिधिमंडल अलवर पहुंचा. इसमें अलवर से BJP सांसद योगी बालकनाथ और सीकर से BJP सांसद स्वामी सुमेधानंद सरस्वती शामिल थे. इस दौरान योगी बालकनाथ ने कहा- कांग्रेस तुष्टीकरण की राजनीति कर रही है और इस वजह से हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया और तोड़फोड़ की गई. कांग्रेस, हिंदू धर्म को बदनाम करना चाहती है.
एडीएम सुनीता पंकज ( Sunita Pankaj, ADM, Alwar ) ने कहा- कुल 3 मंदिर थे, 2 निजी थे, और 1 नाले पर बनाया गया था... प्रशासन ने लोगों की सर्वसम्मति से मूर्तियों को हटाया. नगर पालिका द्वारा लोगों की उचित सहमति से गैर-विवादास्पद भूमि पर मंदिर बनेंगे. उन्होंने कहा कि नगर पालिका पिछले साल सितंबर में प्रस्ताव लेकर आई थी, जिसका क्रियान्वयन 17 अप्रैल को किया गया था.
राजस्थान में कैबिनेट मंत्री टीका राम जूली (Cabinet Minister Tika Ram Jul) जौहरी लाल मीणा (Johari Lal Meena) और भंवर जितेंद्र सिंह (Bhanwar Jitendra Singh) की सदस्यता वाले कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने भी अलवर जिले के राजगढ़ का दौरा किया. कांग्रेस महासचिव जितेंद्र सिंह ने कहा- यहां मंदिर बनना चाहिए. बीजेपी के एक बड़ा नेता राजनीति के लिए अलवर आए और खूब रो रहे थे... 'चोर कोतवाल को डांटे' वाली बात है ये... अध्यक्ष और पूरा बोर्ड आज क्यों मौजूद नहीं है?
आईये इस बीच एक नजर डाल लेते हैं इस पूरे घटनाक्रम पर....
अलवर के जिस राजगढ़ शहर में 300 साल पुराना मंदिर तोड़ा गया है वहां की नगर पालिका में 34 सदस्य बीजेपी के हैं और एक सदस्य कांग्रेस का है. अलवर जिला प्रशासन का दावा है कि नगरपालिका की बैठक में सर्व सम्मति से अवैध अतिक्रमण हटाने का फैसला लिया गया था.
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डीएम शिव प्रसाद नाकटे ने कहा है कि 8 सितंबर 2021 को राजगढ़ नगरपालिका की बैठक में सर्वसम्मति से मास्टर प्लान को लागू करने में आ रही बाधाओं को हटाने का फैसला लिया गया था. ये फैसला नगर पालिका के चेयरमैन सतीश दुहारिया की अध्यक्षता में हुई बैठक में किया गया था. जिला प्रशासन के अनुसार अतिक्रमण 17 और 18 अप्रैल को हटाया गया. इस दौरान किसी तरह का विरोध नहीं हुआ.