पश्चिम बंगाल में होने जा रहे पंचायत चुनाव पर आम आदमी पार्टी ने बड़ा फैसला लिया है. पार्टी अब राज्य में पंचायत चुनाव नहीं लड़ेगी. पार्टी नेतृत्व के इस फैसले को एक तरफ दिल्ली विधानसभा को लेकर लाए गए केंद्र के अध्यादेश पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (cm mamata banarjee) से मिले समर्थन के रूप में देखा जा रहा है. वहीं 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पूर्व विपक्षी एकजुटता के रूप में भी देखा जा रहा है.
क्योंकि पश्चिम बंगाल में लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं, जिनमें तृणमूल कांग्रेस (trinamool congress) के पास 24, भाजपा 16 और कांग्रेस पार्टी के पास 2 सीटें हैं. ऐसे में आम आदमी पार्टी (aam aadmi party) पश्चिम बंगाल की राजनीति में प्रवेश कर किसी भी तरह से विपक्षी एकजुटता पर अडंगा नहीं बनना चाहती है.
क्योंकि, राज्यसभा में अध्यादेश (ordinance) पास होने से रोकने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गैर भाजपा शासित राज्यों से समर्थन मांगने में जुटे हैं. इससे पहले मार्च 2022 में आम आदमी पार्टी ने कहा था कि वह साल 2023 में होने वाले पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव (west bengal panchayat election) लड़ेगी. पार्टी नेतृत्व ने स्थानीय स्तर पर चुनाव प्रचार अभियान भी शुरू कर दिया था.
पिछले साल तक पश्चिम बंगाल की राजनीति(west bengal politics) में अपना भविष्य तलाशने की कोशिश में जुटी आम आदमी पार्टी की सियासी महत्वाकांक्षा का अंदाजा इस बात भी लगाया जा सकता है कि 13 मार्च 2022 को पार्टी की महिला विंग ने कोलकाता(kolkata) में एक राज्य सम्मेलन आयोजित किया. उस बैठक में यह तय किया गया था कि आप महिला शक्ति की एक राज्य स्तरीय संचालन समिति होगी.
अगले छह महीनों में विंग को ब्लॉक स्तर तक और मजबूत करने के लिए गठित किया गया था. उस वक्त दिल्ली के केंद्रीय पर्यवेक्षकों ने पांच लोगों को चुना था, जो पश्चिम बंगाल के हर जिले में पार्टी के अन्य सभी पदाधिकारियों के साथ समन्वय करने में जुटे थे. जिनमें उत्तर 24 परगना(north 24 pargana) से देवता दास, कोलकाता से सोमा भद्रा, हावड़ा (howrah) से सुभ्रा बनर्जी, हुगली से तनुका संतरा और दक्षिण 24 परगना से गार्गी बोस को जिम्मेदारी दी गई थी.
वर्तमान में सियासी हालात काफी बदल गए हैं. दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी सत्ता में है. लेकिन दिल्ली में शुरू से अधिकारों की लड़ाई लड़ रही है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में दिल्ली सरकार(delhi gorenment)को उपराज्यपाल के मुकाबले ज्यादा अधिकार दिए तो केंद्र सरकार अध्यादेश लेकर आ गई.
इस अध्यादेश के मुताबिक दिल्ली का 'बॉस' उपराज्यपाल ही होंगे. इसके बाद से केजरीवाल सभी गैर भाजपा दलों से समर्थन मांगने में जुटे हैं, ताकि राज्यसभा से इस बिल को पास होने से रोका जा सके. राज्यसभा में भाजपा और भाजपा समर्थित दलों के कुल 105 सांसद हैं और विपक्षी दलों के 133 सांसद हैं. ऐसे में केजरीवाल (cm arvind kejriwal)पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव लड़कर कोई सियासी दुश्मनी मोल लेना नहीं चाहते हैं.