Sidhi Peshab kand: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में हुए पेशाब कांड (Sidhi Urine Scandal) पर राजनीति अभी भी जारी है. पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj Singh Chouhan) पीड़ित के पैर धोते नजर आए तो अब कांग्रेस नेता ज्ञान सिंह (Congress leader Gyan Singh) उसे गंगाजल से शुद्ध कर दिया है. लेकिन इस तरह की घटना दोबारा न हो, इस पर किसी का ध्यान नहीं है. शायद यही वजह है कि ग्वालियर (Gwalior) में एक युवक से तलवे चटवा लिया. उधर पेशाब कांड का पीड़ित दशमत रावत अब आरोपी को माफ कर रहा है.
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दरअसल, सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है. इस वीडियो में अब सीधी के कांग्रेस जिलाध्यक्ष ने उसके ऊपर गंगाजल छिड़काते हैं, फिर तौलिए से चेहरा साफ किया और फिर चंदन का टीका लगाकर उसे पवित्र कर रहे हैं. चुनावी साल में हुई इस घटना का पीड़ित दशमत चुपचाप कुर्सी पर बैठा हुआ है. उसके आसपास गांव वालों के अलावा ज्ञान सिंह के समर्थक भी खड़े हैं. इस दौरान वह कांग्रेस नेता यह बताना नहीं भूले कि वह गंगाजल से दशमत के चेहरे को शुद्ध कर रहे हैं.
इससे पहले मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने दशमत को अपने घर बुलाकर उसके पैर धोने के साथ उसका सम्मान भी किया था. अब सीधी के कांग्रेस जिलाध्यक्ष ने उसके ऊपर गंगाजल छिड़का, फिर तौलिए से चेहरा साफ किया और फिर चंदन का टीका लगाकर उसे पवित्र किया.
कुल 230 विधानसभा सीटों में 35 सीटें अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हैं और 80 सीटें ऐसी हैं, जिन पर दलित वोटर्स का दबदबा है. ऐसे में दलित वोटर्स की नाराजगी बीजेपी को भारी पड़ सकता है. यही वजह है कि पेशाब कांड ने पूरी बीजेपी की परेशानी बढ़ा दी है.
यह मामला जैसे ही सामने आया विपक्ष आक्रामक हुआ तो बीजेपी डैमेट कंट्रोल में जुट गई. आरोपी बीजेपी कार्यकर्ता प्रवेश शुक्ला के घर पर बुलडोजर चला दिया गया. वहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पीड़ित दशमत रावत से माफी मांगी. CM शिवराज ने कहा कि मन दुखी है. मेरे लिए जनता ही भगवान है. पीड़ित दशमत रावत को अपने घर मुख्यमंत्री आवास में बुलाकर CM शिवराज ने उसके पैर धोए और सम्मान किया.
दूसरी तरफ गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि आरोपी के खिलाफ एनएसए के तहत केस दर्ज किया गया है. अब देखने वाली बात यह होगी कि चुनावी वर्ष में इस तरह की घटनाओं का क्या असर पड़ता है. क्योंकि राज्य में दलितों की बड़ी आबादी है. यहां की 230 विधानसभा सीटों में से 80 सीटों पर दलित वोट बैंक मजबूत स्थिति में है. यहां की 35 सीटें आरक्षित श्रेणी की हैं.
वर्ष 2013 के विधानसभा चुनावों में बसपा को 21 लाख 27 हजार वोट मिले थे. ये कुल वोटर्स का 6.29 प्रतिशत थे. पिछले 5 चुनाव का ट्रेंड देखें तो लगभग 7 प्रतिशत वोट बसपा का फिक्स रहा है. बसपा अनुसूचित जाति की 35 सीटों पर सीधे मुकाबले की स्थिति में है. बसपा ग्वालियर, चंबल, रीवा, और सागर में ज्यादा मजबूत है. दूसरी तरफ इस बार भीम आर्मी भी राज्य में ताल ठोक सकती है.
बात कांग्रेस पार्टी की करें तो 2018 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति वर्ग की 35 आरक्षित सीटों में से 18 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. नतीजा, कांग्रेस पार्टी गठबंधन की सरकार बन गई थी. लेकिन बाद में हुए सियासी उलट फेर में बीजेपी ने सरकार बना ली.
इस बार बीजेपी कोई मौका छोड़ना नहीं चाहती है और कम से कम 51 प्रतिशत वोट हासिल करने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है. जिनमें सबसे ज्यादा फोकस अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के बीच मौजूदगी दर्ज करने की रणनीति पर काम कर रही है.
साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 41.02 प्रतिशत वोट के साथ 109 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस को 40.89 प्रतिशत वोट के साथ 114 सीटें मिली थीं. इस चुनाव में बीजेपी को बड़े कम अंतर से हार का सामना करना पड़ा था और वहां कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी थी.