उत्तर प्रदेश (UP)के देवबंद ( Deoband) में मुस्लिम धर्मगुरुओं के जलसे के दूसरे दिन यानी रविवार को मुख्य मुद्दा यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) रहा. जिसके खिलाफ प्रस्ताव पेश किया गया और जमीयत से बुलंद आवाज उठी. प्रस्ताव में साफ कहा गया कि समान नागरिक संहिता लागू करना, मतलब मूल संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने की कोशिश है.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा कि कोई भी मुसलमान इस्लामी कायदे कानून में किसी भी तरह की दखलंदाजी को नहीं मानता. अगर कोई सरकार समान नागरिक संहिता को लागू करने की गलती करती है, तो मुस्लिम और दूसरे वर्ग इस घोर अन्याय कभी स्वीकार नहीं करेंगे.
मुस्लिम पर्सनल लॉ में शामिल शादी, तलाक, विरासत आदि के नियम-कानून किसी समाज, समूह या व्यक्ति के बनाए नहीं है. नमाज, रोजा, हज की तरह ये भी मजहबी आदेशों का हिस्सा है, जो पवित्र कुरान और हदीसों से लिए गए हैं.
प्रस्ताव में क्या?
प्रस्ताव के मुताबिक, पर्सनल लॉ में बदलाव या पालन से रोकना धारा 25 में दी गई गारंटी के खिलाफ है. इसके बावजूद कई राज्यों में सत्तारूढ़ लोग पर्सनल लॉ को खत्म करने की मंशा से ‘समान नागरिक संहिता क़ानून’ लागू करने की बात कर रहे हैं. जो देश के संविधान की सच्ची भावना की अनदेखी करना चाहते हैं.
इसके अलावा जलसे के आखिरी दिन ज्ञानवापी और मथुरा विवाद समेत कई अहम मुद्दों पर प्रस्ताव पेश किए गए. इसमें कहा गया कि संसद से यह तय हो चुका है कि 15 अगस्त 1947 को जिस इबादतगाह की जो हैसियत थी, वह उसी तरह बरकरार रहेगी. इसके बावजूद ‘पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) एक्ट 1991’ की स्पष्ट अवहेलना हुई. जबकि, 'बनारस और मथुरा की निचली अदालतों के आदेशों से विभाजनकारी राजनीति को मदद मिली.
बता दें कि इससे पहले शनिवार को मुस्लिम धर्मगुरुओं के जलसे में इस्लामोफोबिया के खिलाफ लामबंदी के लिए प्रस्ताव पेश किया गया था.