दिल्ली के जंतर-मंतर पर चल रहे पहलवानों का धरना प्रदर्शन (Wrestlers Protest) जारी है. कुश्ती खिलाड़ियों की मांग है कि भाजपा सांसद और भारतीय कुश्ती संघ (wrestling federation of india) के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह (brijbhushan sharan singh) को गिरफ्तार किया जाए. इस बीच बृजभूषण ने झूठ और सच का पता लगाने के लिए चुनौती दे दी. जिसे पहलवानों ने स्वीकार भी कर लिया, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सच में नार्को टेस्ट में इंसान सबकुछ उगलने लगता है? विशेषज्ञों की मानें तो इसकी 50 प्रतिशत ही संभावना रहती है. दवा के प्रभाव से यदि कोई बात बाहर आ भी जाती है, तो उसके लिए सबूत भी जुटाना पड़ता है.
नार्को टेस्ट किसी मामले में सच के करीब पहुंचने का एक प्रयास है. यह करीब 60 मिनट की एक प्रक्रिया है. जिस व्यक्ति का नार्को टेस्ट होता है, उसे सोडियम पेंटोथल नाम की दवा दी जाती है. इस दवा के प्रभाव से व्यक्ति सम्मोहक अवस्था में चला जाता है और तब उससे सवाल पूछे जाते हैं. ]
जिस व्यक्ति का नार्को टेस्ट होता है, उसे सोडियम पेंटोथल (sodium pentothal) नाम की दवा दी जाती है. सम्मोहक अवस्था में उस व्यक्ति से सवाल पूछे जाते हैं. दवा के प्रभाव से उस व्यक्ति में संकोच खत्म हो जाता है. दवा की मात्रा ज्यादा हो गई तो व्यक्ति बेहोश भी हो सकता है. दवा के प्रभाव से यदि कुछ बातें बाहर आती है, तो उसके सबूत भी जुटाने पड़ते हैं. नार्कों टेस्ट के जरिए सच बाहर लाना, बस एक कोशिश है, क्योंकि इसमें 50-50 के ही चांस होते हैं. पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी होती है, लेकिन टेस्ट की प्रक्रिया को लाइव नहीं दिखाया जाता है.
विशेषज्ञों की मानें तो नार्को टेस्ट खुद में कोई सबूत नहीं हैं. दवा के प्रभाव से कोई व्यक्ति यह बता दे कि मैने उस व्यक्ति की हत्या की है और फलां जगह पर हथियार छिपाया है और बाद पुलिस वहां पहुंचकर उसे बरामद कर ले, तो वह बात सबूत के तौर पर मान ली जाएगी. इस टेस्ट की प्रक्रिया आसान नहीं होती.