क्या प्रशांत किशोर ( Prashant Kishor ) राजनीति से संन्यास लेने जा रहे हैं? यह सवाल उठ खड़ा हुआ है उनके उस हालिया बयान के बाद जिसमें उन्होंने जन सुराज नाम से एक मंच बनाने की बात कही है. चुनावी रणनीति बनाने वाले प्रशांत किशोर ने ऐलान किया है कि वह फिलहाल कोई राजनीतिक पार्टी नहीं बना रहे हैं. PK ने कहा कि वह बिहार में 3 हजार किलोमीटर की पदयात्रा करेंगे, यह पदयात्रा चंपारण के गांधी आश्रम से शुरू होगी. राजनीतिक पार्टी न बनाने और पदयात्रा के ऐलान के बाद अब प्रशांत किशोर को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि क्या उन्होंने सच में राजनीति से संन्यास ले लिया है या यह फिर उनकी कोई राजनीतिक बिसात है?
भारत में पदयात्रा का मतलब क्या है?
पदयात्रा खासतौर से कोई भी संगठन या व्यक्ति अपने समर्थकों को प्रेरित करने के लिए करता है. पदयात्रा किसी धार्मिक आयोजन से भी जुड़ी हो सकती है. हालांकि, भारत में व्यक्तिगत तौर पर जिन लोगों ने भी पदयात्रा की है, वे सभी राजनेता ही रहे हैं. इसमें चंद्रशेखर ( Chandra Shekhar ) की पदयात्रा का जिक्र सबसे पहले किया जाता है. पूर्व PM चंद्रशेखर ने पद पर काबिज होने से पहले 1983 में कन्याकुमारी से दिल्ली तक की यात्रा की थी. 2003 में आंध्र प्रदेश के नेता वाई एस राजशेखर रेड्डी ( Y S Rajasekhara Reddy ) की 1,500 किमी की पदयात्रा, 2013 में चंद्रबाबू नायडू ( N. Chandrababu Naidu ) की 1,700 किमी की पदयात्रा, 2017 में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ( Digvijaya Singh ) की 6 महीने की पदयात्रा और फिर 2017 में जगनमोहन की 3,648 किमी लंबी पदयात्रा की. पदयात्रा के जरिए न सिर्फ नेता अपने कैडर का गढ़ते हैं बल्कि उसे एकजुट भी करते हैं. अब सवाल ये है कि कहीं पीके यानी प्रशांत किशोर भी सिलसिलेवार तरीके से इसी फॉर्मूले पर तो आगे नहीं बढ़ रहे हैं.
नई पार्टी बनाने से पूरी तरह इनकार नहीं
ऐसे व्यक्ति जिन्होंने पद यात्राएं की, उनका अगला मकसद उस पदयात्रा की कमाई से राजनीति में मुकाम हासिल करना ही रहा. महात्मा गांधी का राजनीतिक जीवन भी पदयात्रा के बाद ही शुरू हुआ. राजनीतिक पंडित मान रहे हैं कि अब तक तमाम राजनीतिक पार्टियों को प्रयोग के रास्ते से गुजार चुके PK का अगला प्रयोग खुद पर ही हो सकता है. उनकी पूरी रणनीति सिलसिलेवार ढंग से खुद को राजनीति में स्थापित करने की हो सकती है. वह आज भले राजनीतिक पार्टी बनाने से इनकार कर रहे हों, लेकिन भविष्य में इसके पूरे आसार हैं कि वह एक पार्टी बनाएं. उनके पूर्व के बयान और किए गए काम इससे मेल भी खाते हैं.
2025 चुनाव की तैयारी
बिसात है तो मैदान भी होगा... और टारगेट भी! अब जब पदयात्रा की बात हुई है, जन सुराज अभियान की बात हुई तो यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इसका केंद्र बिहार है. बिहार, पीके का गृह राज्य भी है और वह जगह भी जहां के मैदान में वह नीतीश को जीत दिला चुके हैं. 2014 के तुरंत बाद बीजेपी की उस हार का पूरा क्रेडिट तब प्रशांत किशोर को ही दिया गया था. पीके, बिहार का रग रग पहचानते हैं. अब हो सकता है कि पीके के निशाने पर 2025 का बिहार विधानसभा हो और वह इसी तरह खुद को बढाएं. इसी टारगेट के लिए उन्होंने कभी नीतीश का साथ छोड़ा था और अभी कांग्रेस का भी साथ छोड़ दिया....
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