मणिपुर में पिछले साल मई में जातीय हिंसा भड़कने के बाद कई मेइती-कुकी दंपतियों को अलग-अलग रहना पड़ रहा है.महीने में केवल एक बार मिलना, बच्चों को नहीं देख पाना और भविष्य में रिश्ता टूटने का डर उनकी नियति बन गया है.जातीय संघर्ष से प्रभावित राज्य में इंफाल घाटी में मेइती बहुतायत में हैं तो कुकी समुदाय के लोग पर्वतीय क्षेत्रों में रह रहे हैं। राज्य में अब भी स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है जहां अंतरजातीय विवाह करने वाले दंपत्ति अब तक इस हिंसा का दंश झेल रहे हैं.तीन मई, 2023 के बाद से हिंसा में अब तक 200 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और हजारों लोग विस्थापित हो गए.
इन दंपतियों की अनेक करुणा भरी कहानियां हैं.एक मां है जो महीने में एक बार अपने बच्चों से मिल पाती है तो एक पिता ने अपनी बेटी के जन्म से अब तक उसे नहीं देखा है. यहां तक कि ऐसे हालात बन गए हैं कि परिवारों पर टूटने का खतरा भी पैदा हो गया है.जातियों के बीच टकराव के हालात ऐसे हैं कि एक महिला को लगता है कि कहीं उसका पति उसे छोड़ तो नहीं देगा, वहीं एक शादीशुदा जोड़ा सोच रहा है कि उनका भविष्य अब क्या होगा. भविष्य को लेकर इन लोगों के मन में अनिश्चितता बनी हुई है.
कुकी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली इरेने हाओकिप शादी के बाद इंफाल में रहने लगीं.42 वर्षीय हाओकिप को पिछले साल कुकी बहुल चुराचांदपुर में अपने माता-पिता के पास लौटना पड़ा.वहीं, उनके पति और पांच साल का एक बेटा तथा तीन साल की बेटी इंफाल में ही रह रहे हैं.
हाओकिप ने न्यूज़ एजेंसी ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मेरे पति निर्माण मजदूर के रूप में काम करते थे. मेरी उनसे मुलाकात बिष्णुपुर में पड़ोस में एक मकान के निर्माण के दौरान हुई थी.हमें प्यार हो गया.वह मुझसे मिलने अक्सर इलाके में आते थे। हमने 2018 में शादी कर ली और हमारे दो बच्चे हुए.’’
बिष्णुपुर मेइती बहुल इंफाल और कुकी बहुल चुराचांदपुर के बीच है। यहां पहले दोनों समुदायों के लोग रहते थे और अब इसे ‘बफर जोन’ माना जाता है.हाओकिप ने कहा, ‘‘मेरे पति ने पिछले साल मुझे मेरे माता-पिता के पास भेज दिया.उन्हें संघर्ष शुरू होने के बाद घाटी में मेरी सुरक्षा की फिक्र थी.बच्चे उनके साथ हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि मेइती के बच्चे होने की वजह से वे चुराचांदपुर में सुरक्षित नहीं हैं.’’
हाओकिप हर महीने पड़ोसी राज्य मिजोरम में अपने पति और बच्चों से मिलने जाती हैं.इसके लिए उन्हें एक तरफ से 15 घंटे सफर करना होता है.उन्होंने बताया, ‘‘वह (पति) वहां बच्चों को भी लेकर आते हैं. कई अन्य दंपति भी ऐसा कर रहे हैं.हम महीने में एक बार मिलते हैं और अपने-अपने घर वापस आ जाते हैं.मेरे बच्चे मेरी कमी महसूस करते हैं लेकिन यह जिंदा रहने और मां की ममता के बीच किसी एक चीज को चुनने जैसा है.’’
कई स्थानीय लोग बताते हैं कि मणिपुर में मेइती-कुकी विवाह पहले असामान्य नहीं होते थे और इन्हें लेकर कभी कोई सामाजिक समस्या नहीं रही.दोनों समुदाय के लोग आपस में घुल-मिल जाते थे.समस्या गत वर्ष तीन मई को तब शुरू हुई जब मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति दर्जे की मांग के खिलाफ पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाला गया था और हिंसा भड़क गई.
कुकी समुदाय के लैशराम सिंह हिंसा शुरू होने के करीब एक महीने बाद ही पिता बने थे लेकिन उन्होंने अब तक अपनी बेटी का चेहरा नहीं देखा है.जब उन्हें 2022 में अपनी पत्नी के गर्भवती होने का पता चला था तो खुशी से फूले नहीं समाए सिंह ने अपनी बेटी के लिए कई सपने देखे थे.इस दंपति ने जून महीने में अपनी पहली संतान के जन्म से पहले कपड़ों और खिलौनों की खरीदारी की। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था.
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हिंसा शुरू होने के बाद सिंह कुकी बहुल पहाड़ी क्षेत्र में आ गए और उनकी पत्नी अचनबा, जो मेइती हैं, वहीं रुकी रहीं.अचनबा के माता-पिता की पांच साल पहले मौत हो गई थी और उन्हें पिछले साल मई में इंफाल घाटी में एक राहत शिविर में जाना पड़ा जहां उन्होंने जून में एक बच्ची को जन्म दिया.सिंह ने पिछले 11 महीने से अब तक अपनी बेटी का चेहरा नहीं देखा है.
अचनबा को कभी-कभी डर लगता है कि यह दूरी कहीं उनके रिश्ते को समाप्त नहीं कर दे.उन्होंने कहा, ‘‘ना तो मैं विधवा हूं और ना ही तलाकशुदा। फिर पता नहीं, यह किस तरह का अलगाव है.’’
पिछले साल तक महिलाओं के बाजार इमा कीथेल में एक दुकान चलाने वाली कुकी समुदाय की निर्मला अब पहाड़ी क्षेत्र में रहती हैं और उनके पास आजीविका का कोई स्थायी स्रोत नहीं है। उनके पति मेइती हैं और अपने बेटे तथा माता-पिता के साथ इस समुदाय के बाहुल्य वाले इंफाल के सुगनू इलाके में रहते हैं। शुरू में निर्मला के पति पैसे भेजते थे लेकिन अब उन्होंने ऐसा करना बंद कर दिया है.
निर्मला को डर लगता है कि कहीं उनके पति उन्हें छोड़ नहीं दें.मेइती समुदाय की पेमा दिंपू और उनके कुकी पति के बीच अक्सर यह चर्चा होती है कि उन्हें किसी और राज्य में जाकर बस जाना चाहिए। पेमा इंफाल में रहती हैं, जबकि उनके पति पहाड़ी क्षेत्र में रहते हैं.