लोकसभा में दिल्ली सर्विस बिल बृहस्पतिवार को ध्वनिमत से पारित हो गया.अब सरकार सोमवार को राज्यसभा में इस बिल को चर्चा और पारित कराने के लिए पेश करने वाली है.
क्या है मामला?
दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) अधिनियम 1991 लागू है जो विधानसभा और सरकार के कामकाज के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है. साल 2021 में केंद्र सरकार ने इसमें संशोधन किया था.
जिसमें दिल्ली में सरकार के संचालन, कामकाज को लेकर कुछ बदलाव किए गए थे. इसमें उपराज्यपाल को कुछ अतिरिक्त अधिकार भी दिए गए थे. संशोधन के मुताबिक,चुनी हुई सरकार को किसी भी फैसले के लिए LG की राय लेना जरूरी था.
दिल्ली सेवा अध्यादेश क्या है?
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने 11 मई को इस पर अपना फैसला सुनाया था. उन्होंने कहा था कि दिल्ली में जमीन, पुलिस और कानून-व्यवस्था को छोड़कर बाकी सारे प्रशासनिक फैसले लेने के लिए दिल्ली की सरकार स्वतंत्र होगी.
अधिकारियों और कर्मचारियों का ट्रांसफर और उनकी पोस्टिंग भी दिल्ली सरकार खुद से कर पाएगी. उपराज्यपाल इन तीन मुद्दों को छोड़कर दिल्ली सरकार के बाकी फैसले मानने के लिए बाध्य हैं.
इस फैसले से पहले दिल्ली सरकार के सभी अधिकारियों के स्थानांतरण और तैनाती उपराज्यपाल पास थे. हालांकि, कोर्ट के फैसले के एक हफ्ते बाद 19 मई को केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आई। केंद्र ने 'गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली ऑर्डिनेंस, 2023' लाकर प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार वापस उपराज्यपाल को दे दिया.
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अगर ये बिल पास होता है तो क्या बदलेगा?
इस अध्यादेश के तहत राष्ट्रीय राजधानी सिविल सर्विसेज अथॉरिटी का गठन किया गया. जिसमें दिल्ली के सीएम, दिल्ली के मुख्य सचिव और गृह सचिव को इसका सदस्य बनाया गया है. मुख्यमंत्री इस अथॉरिटी के अध्यक्ष होंगे और बहुमत के आधार पर यह प्राधिकरण फैसले लेगा. लेकिन प्राधिकरण के सदस्यों के बीच मतभेद होने पर दिल्ली के उपराज्यपाल का फैसला ही अंतिम फैसला माना जाएगा. तो कुल मिलकर अगर ये बिल पास होता है तो दिल्ली गवर्नर ही निर्णय लेने में सर्वोपरि होंगे.