Story of Rifleman Jaswant Singh Rawat : 1962 की जंग के नायक राइफलमैन जसवंत सिंह रावत (Rifleman Jaswant Singh Rawat) का जन्म 19 अगस्त 1941 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में हुआ था. भारतीय सेना में उनका चयन गढ़वाल राइफल्स (Garhwal Rifles ) के लिए किया गया. सेना में शामिल होने के कुछ ही दिन बाद 1962 की जंग शुरू हो गई थी. इस जंग में अरुणाचल में नूरानांग की लड़ाई (battle of Nuranang) के दौरान उन्होंने अदम्य साहस का परिचय दिया. रावत ने अकेले ही चीन के 300 से ज्यादा सैनिकों को मौत की नींद सुला दी थी. जसवंत सिंह रावत को इस वीरता के लिए महावीर चक्र (Maha Vir Chakra posthumously) से सम्मानित किया गया. 2019 में जसवंत की कहानी पर एक हिंदी फिल्म '72 ऑवर्स: शहीद हू नेवर डाइड' (72 Hours: Martyr Who Never Died) भी आई. आज इस एपिसोड में हम जसवंत सिंह रावत के बारे में जानेंगे थोड़ा करीब से...
1962 की जंग में भारतीय सेना की एक पोस्ट... आज इसे जसवंतगढ़ (Jaswantgarh) के नाम से जाना जाता है... यहां एक शहीद सैनिक के कपड़े हर रोज प्रेस होते हैं, उसके जूते हर रोज पॉलिश होते हैं... उसे नाश्ता, लंच सबकुछ सर्व होता है... सैनिक को शहादत के बाद भगवान का दर्जा देकर मंदिर भी बनाया गया है... इस सैनिक का नाम है जसवंत सिंह रावत (Jaswant Singh Rawat)... 19 अगस्त 1941 को जन्मे जसवंत ने 1962 की लड़ाई में चीनियों के दांत खट्टे कर दिए थे... आज झरोखा में हम जानेंगे राइफलमैन जसवंत सिंह के अदम्य साहस के बारे में... जिन्हें शहादत के बाद सेना ने प्रमोशन देकर कैप्टन बना दिया.
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ये किस्सा नवंबर 1962 में भारत-चीन जंग (1962 Sino-Indian War) का है... जंग में चीनी सैनिक भारत में घुसते चले जा रहे थे. 17 नवंबर को चीनी फौज ने सेला पास की तरफ से हमला किया. इस बार वे अपने साथ MMG लेकर आए थे. MMG राइफल की वजह से चीनियों की आक्रमण क्षमता बढ़ गई थी. अब वे एक किलोमीटर दूर से ही भारतीय सैनिकों को निशाना बना सकते थे. चीनी फौज एमएमजी के साथ साथ मोर्टार फायरिंग भी कर रही थी. ये गन अगर लगातार फायर करती रहती, तो इसकी आड़ में चीनी सैनिक काफी अंदर तक घुसकर भारतीय चौकियों में भारी नुकसान पहुंचा सकते थे.
इस कड़ी परिस्थिति में गढ़वाल राइफल्स (Garhwal Rifles) के 3 बहादुर जवानों ने निश्चय लिया कि दुश्मन की एमएमजी को खामोश किया जाए. राइफलमैन जसवंत सिंह, त्रिलोक सिंह और गोपाल सिंह (Rifleman Jaswant Singh Rawat, Lance Naik Trilok Singh Negi and Rifleman Gopal Singh Gusain) बिना वक्त गंवाए अपने मिशन पर निकल पड़े. दुश्मन ऊंचाईं पर थे और सामने की गतिविधि को देख सकते थे. दुश्मन की मजबूत स्थिति का तीन बहादुरों के हौसले पर असर नहीं पड़ा. गोलियों की बौछार के बीच जसवंत सिंह और गोपाल आगे बढ़ने लगे, त्रिलोक सिंह का काम था, दुश्मन का ध्यान बांटना.
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दोनों ने मशीन गन पर कुछ ही दूरी से ग्रेनेड फेंका और चीनी टुकड़ी को वहीं धराशायी कर दिया... हालांकि, गोपाल और त्रिलोक इस लड़ाई में बच नहीं सके जबकि जसवंत सिंह रावत गंभीर रूप से घायल हो गए...
उधर, जंग के बीच अरुणाचल प्रदेश का नूरानांग (Nuranang Battle) नई युद्धभूमि बनता जा रहा था... नूरानांग का मोर्चा संभालने की जिम्मेदारी 4 गढ़वाल राइफल्स को दी गई थी. इसी बटालियन की एक कंपनी नूरनांग पुल की रक्षा के लिए तैनात थी. चीनियों के लिए इस पुल पर कब्जा करना जरूरी थी. इसके बिना वे अरुणाचल में आगे नहीं बढ़ सकते थे.
नूरानांग के पुल पर चीनी कब्जा नहीं कर पा रहे थे, उनकी हताशा बढ़ती जा रही थी, वे यह नहीं समझ पा रहे थे कि उनसे आधा संख्या और कम हथियारों वाली भारतीय फौज आखिर इतना कड़ा मुकाबला कैसे कर रही है.
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चीन के हमले के बीच नूरानांग में तैनात जवानों को पीछे हटने का हुक्म सुनाया गया था लेकिन जसवंत सिंह पोस्ट छोड़कर नहीं हटे. सैंकड़ों चीनियों को रोकने के लिए उन्होंने अद्भुत प्लान बनाया. ऊंचाई वाली जगह पर बंदूक तैनात की और वहां से इस तरह फायरिंग शुरू की कि दुश्मन अंदाजा न लगा पाए कि ऊपर कितने भारतीय मौजूद हैं. इस काम में जसवंत का साथ दिया स्थानीय लड़कियों नूरा और सेला (Noora and Sela) ने...
दोनों बहनें जसवंत के साथ डटी रहीं... चीनी सैनिकों को जबर्दस्त प्रतिरोध का सामना करना पड़ा. चीनी सेना ने तीन बार हमला किया और उन्हें शिकस्त मिली. इस हमले में 300 से ज्यादा चीनी सैनिक मारे गए थे. 72 घंटे तक वो सच जान नहीं सके... चौथे हमले से पहले चीनी कमांडर को कुछ शक हुआ. उसने उस शख्स को पकड़ा जो जसवंत को राशन की सप्लाई कर रहा था. भारी टॉर्चर के बाद उसने असलियत बता दी. चीनी सैनिक असलियत जान चुके थे. इसके बाद चीनियों ने घात लगाकर पहले जसवंत की मदद कर रही दोनों बहनों पर हमला किया, दोनों शहीद हो गईं. फिर जब जसवंत को उन्होंने चारों ओर से घेरा तो जसवंत ने खुद को गोली मार ली.
चीनी सैनिकों को जब ये बता चला कि उनके साथ 3 दिन से अकेले जसवंत सिंह लड़ रहे थे, तो वे हैरान रह गए. चीनी सैनिक उनका सिर काटकर ले गए. जल्द ही जंग में युद्धविराम की घोषणा हुई. इसके बाद चीनी कमांडर ने जसवंत की बहादुरी का लोहा माना.
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जसवंत और उनके कमांडिंग अफसर दोनों को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. इस लड़ाई के लिए 4 गढ़वाल राइफल्स को नूरानांग युद्ध सम्मान दिया गया.
इस जंग के बाद जसवंत सिंह, जसवंत बाबा बन गए... नूरानांग में जसवंत सिंह का स्मारक (Memorial for MVC Jaswant Singh Rawat) है. जिस पोस्ट से जसवंत सिंह ने मोर्चा संभाला था, उसे मंदिर में बदल दिया गया है. इस स्मारक में उनका बिस्तर, कपड़े और जूते हैं. 4 जवानों को खासतौर पर उनकी सेवा में लगाया गया है. कहा जाता है कि जसवंत सिंह आज भी सरहद की रखवाली करते हैं. उनके जूते पॉलिश करने वालों का कहना है कि कई बार जूते कीचड़ में सने मिलते हैं, कई बार बिस्तर की चादर पर सिलवटें होती हैं, जैसे रात को कोई उसपर सोया हो. जसवंतगढ़ से गुजरने वाले सिपाही से लेकर जनरल तक स्मारक को सैल्यूट किए बिना आगे नहीं बढ़ते हैं.
सेना उन्हें कई प्रमोशन दे चुकी है, यहां की खूबी ये है कि हर आने जाने वाले को सेना की ओर से चाय दी जाती है. यहां पर कुछ बंकर आज भी सेना द्वारा संजोकर रखे हुए हैं. इनमें आज भी साल 1962 युद्ध के दौरान इस्तेमाल किए गए फोन, बर्तन, रसोई, चूल्हा, हैलमेट वॉर सब संजोकर रखा हुआ है.
चलते चलते आज हुई दूसरी घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं-
1666 - शिवाजी (Chhatrapati Shivaji Maharaj) आगरा में फलों की टोकरी में छिपकर औरंगजेब (Aurangzeb) की कैद से फरार हुए
1757 - ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) ने भारत में एक रुपये का पहला सिक्का (First Rupee Coin of the East India Company) ढाला
1907 - निबंधकार, उपन्यासकार, आलोचक हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (Hazari Prasad Dwivedi) का जन्म
2019 - भारतीय फिल्मों के संगीतकार खय्याम (Mohammed Zahur Khayyam) का निधन
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