Partition of India: विभाजन रेखा खींचने वाले Radcliffe को क्यों था फैसले पर अफसोस? | Jharokha 17 Aug

Updated : Aug 22, 2022 19:14
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Mukesh Kumar Tiwari

15 अगस्त (India Independence Day) को आजादी का जश्न मनाने के बाद करोड़ों भारतीय वापस अपनी डेली रूटीन पर लौट जाते हैं. ऐसे भारतीय जो स्वतंत्रता दिवस के जश्न में डूबते हैं, उनमें से ज्यादातर 17 अगस्त की अहमियत से अंजान हैं. 17 अगस्त की तारीख की अहमियत आजाद भारत के इतिहास में इसलिए है क्योंकि इसी दिन रैडक्लिफ लाइन को भारत और पाकिस्तान के बीच एक सीमा रेखा माना गया था... आज हम जानेंगे इसी रैडक्लिफ लाइन के बनने और इसे बनाने वाले के बारे में और साथ ही रोशनी डालेंगे रैडक्लिफ लाइन (Radcliffe Line) बनाने के दौरान हुई गलतियों पर भी... 

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सिरिल जॉन रैडक्लिफ को मिला भारत विभाजन का जिम्मा

ब्रिटिश काउंसलर सिरिल जॉन रैडक्लिफ (Cyril John Radcliffe) को भारत को बांटने का जिम्मा सौंपा गया था. तब भारत आए रैडक्लिफ का दफ्तर दिल्ली में रायसीना रोड पर था... बाद में ये दफ्तर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के नाम से पहचाना गया... यही जगह रैडक्लिफ का दफ्तर और घर दोनों था... इसलिए यही वह जगह बन गया जहां से भारतीय उपमहाद्वीप को दो देशों में बांटने की पटकथा लिखी गई... रैडक्लिफ का घर एक छोटा सा केबिन था, जिसका इस्तेमाल दूसरे विश्वयुद्ध में भी किया गया था... भारत के विभाजन (Partition of India) की रेखा खींचने वाले रैडक्लिफ का जन्म 1899 में हुआ था. वह इंग्लैंड में एक नामचीन वकील थे... वह ब्रिटेन से बाहर सिर्फ इटली ही गए थे वह भी छुट्टियां बिताने... एक तथ्य ये भी है कि जिस शख्स को भारत के विभाजन की जिम्मेदारी दी गई थी, उसने दक्षिण एशिया को सिर्फ 5 हफ्ते पहले ही समझना शुरू किया था...

दोनों देशों की सीमाओं का फैसला 12 अगस्त को हो चुका था लेकिन इसे सार्वजनिक किया गया 17 अगस्त 1947 को... भारत की आजादी के 2 दिन बाद...  ऐसा इसलिए किया गया ताकि दोनों देशों में अचानक इस फैसले से पैदा होने वाले संकट से निपटा जा सके... एक तरफ जिन्ना और मुस्लिम लीग थे जो पहले से ही भारतीय मुसलमानों के लिए एक अलग देश की मांग कर रहे थे और दूसरी ओर, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress)... जिसे अभी भी देश के न बटने की उम्मीद थी... धार्मिक अखंडता को बरकरार रखते हुए वह देश एक रखना चाहती थी... हालांकि प्रिंसली स्टेट्स (Princely state) को लेकर भी ऊहापोह की स्थिति थी... 

अंग्रेजी हुकूमत ने बनाया था बाउंड्री कमीशन

ब्रिटिश पार्लियामेंट ने इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट, 1947 (Indian Independence Act 1947) बनने के साथ ही बाउंड्री कमीशन बनाया था और इस कमीशन के ऐडमिनिस्ट्रेटर थे सिरील रैडक्लिफ... इस कमीशन में 4 और लोग थे, इनके नाम थे मेहर चंद महाजन, जो आगे चलकर भारत के मुख्य न्यायाधीश बने, दूसरे थे तेजा सिंह. इस कमीशन के दो सदस्य पाकिस्तान के थे - दीन मोहम्मद और मोहम्मद मुनीर... कमिटी दो हिस्सों में बटी थी इसलिए रैडक्लिफ ने ही रेखा के सीमांकन पर फैसला लिया था... ब्रिटिश सरकार ने उन्हें इस सोच के साथ चुना था कि उनका भारत से कोई संबंध नहीं है... मोहम्मद अली जिन्ना ने भी उनके नाम को मंजूरी दी थी.

अंग्रेजी हुकूमत ने अंतिम वायसराय लॉर्ड लुइस माउंटबेटन (Lord Louis Mountbatten) को 'भारत' की स्थिति समझने का संवेदनशील काम सौंपा था. एक आकर्षक और व्यवहारकुश मीडिएटर, माउंटबेटन नेहरू और जिन्ना को बातचीत के मेज पर लाने में सक्षम थे. उन्होंने तय किया कि पंजाब और बंगाल के क्षेत्र पश्चिम और पूर्वी पाकिस्तान में शामिल होंगे और प्रिंसली स्टेट के पास भारत या पाकिस्तान के क्षेत्र में शामिल होने का फैसला लेने की आजादी होगी.

खुद को लेकर निष्पक्ष सोच को ही बरकरार रखने की कोशिश में रैडक्लिफ ने पूरा काम बेहद सीक्रेट तरीके से किया.... लॉर्ड वेवेल ने बंटवारे का एक खाका ही तैयार किया था... इसकी मदद से रैडक्लिफ को यह तय करने में आसानी हुई कि कौन सा क्षेत्र किस देश को दिया जाए... बड़ी बात ये थी कि इस बंटवारे का कोई भी उचित पैमाना नहीं था... रैडक्लिफ रिसर्च और स्टडी के लंबे दौर से गुजरे... उन्होंने बताया था कि दोनों ही पक्षों ने उन्हें लंबी लंबी प्रेजेंटेशन इस बात के लिए दी कि कोई शहर उन्हें क्यों दिया जाए. बेहद कम समय और उच्च अधिकारियों के लगातार पड़ते दबाव की वजह से उन्हें अपना काम जल्द से जल्द खत्म करना था... बाद में रैडक्लिफ ने स्वीकार भी किया कि अगर उन्हें थोड़ा और वक्त दिया गया होता, तो वे बेहतर तरीके से अपना काम कर पाते...

कमीशन को पंजाब को दो हिस्सों में बांटने को कहा गया जिसमें मुस्लिम और गैर-मुस्लिमों के इलाके अलग अलग होंगे... अंतिम फैसला रैडक्लिफ को ही करना था. 

भारत विभाजन से लगभग 9 करोड़ लोग प्रभावित हुए

रैडक्लिफ की रिपोर्ट पेश की गई, अगस्त 1947 में विभाजन का नक्शा पेश किया गया, और रॉयल इंडिया को 'रैडक्लिफ लाइन' ने स्वतंत्र भारत और पाकिस्तान में विभाजित कर दिया... इसने सीमाओं पर रह रहे लगभग 9 करोड़ आबादी को भी एक झटके में अपनी जमीन से हटने के लिए मजबूर कर दिया था... 175,000 वर्ग मील (450,000 किमी) के क्षेत्र का विभाजन किया गया... 

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रैडक्लिफ लाइन के नाम से जानी गई इस नई सीमा से कोई भी खुश नहीं था... पाकिस्तान को बॉर्डर पर कुछ मुस्लिम बहुल इलाकों से भी हाथ धोना पड़ा था... लाहौर लगभग भारत के पास आने ही वाला था लेकिन हिंदुओं और सिखों की घनी आबादी के बावजूद वह पाकिस्तान के पास गया. रैडक्लिफ ने यह निर्णय अंतिम पलों में इसलिए लिया ताकि पाकिस्तान के पास कोई एक बड़ा शहर रह जाए. वह कलकत्ता को पहले ही भारत के हिस्से में दे चुके थे...

गुजरात से लेकर जम्मू तक हुआ बंटवारा

इस रेखा ने भारत और पाकिस्तान को गुजरात के कच्छ के रण से लेकर जम्मू और कश्मीर में जम्मू में अंतर्राष्ट्रीय सीमा तक बांट दिया. इस रेखा ने सामने आने के बाद दंगे, बलात्कार, सामूहिक हत्याओं, भारत और पाकिस्तान से हिंदुओं, मुसलमानों और सिखों के पलायन का काला अध्याय भी हमारे इतिहास में लिख दिया... और बाद में 1947 में कश्मीर पर हुई जंग ने दोनों पड़ोसियों के बीच एक अंतहीन नफरत और अविश्वास का रास्ता तैयार किया...

रैडक्लिफ लाइन ने ब्रिटिश इंडिया को तीन हिस्सों में बांट दिया- पश्चिमी पाकिस्तान, भारत और पूर्वी पाकिस्तान। लेकिन 1971 में, पूर्वी पाकिस्तान में लोगों ने पश्चिमी पाकिस्तान के शासकों के खिलाफ विद्रोह कर दिया. नतीजतन, एक नया देश अस्तित्व में आया जिसे बांग्लादेश के रूप में जाना गया. 

बहरहाल, सच यही है कि रैडक्लिफ लाइन में कई खामियां रहीं जो आज भी भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद की वजह है... इस लाइन ने एक रात में भारत पाक की सीमा पर रहने वाले करोड़ों लोगों का भाग्य लिख दिया था...

चलते चलते आज के दिन हुई दूसरी अहम घटनाओं पर भी नजर डाल लेते हैं

1909 - भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान् क्रान्तिकारी मदन लाल ढींगरा (Madan Lal Dhingra) को फांसी दी गई

1945- इण्डोनेशिया को आजादी मिली

1947 - भारत की आज़ादी के बाद पहली ब्रिटिश सैन्य टुकडी स्वदेश रवाना

1988 - पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया-उल-हक (Muhammad Zia-ul-Haq) और अमेरिका के राजदूत अर्नाल्ड राफेल की एक हवाई दुर्घटना में मौत

cyril john radcliffePartition of IndiaHistory15 august 1947

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