पंजाब, पांच नदियों की जमीन है. इसके भुगोल से सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब और झेलम ( Sutlej, Beas, Ravi, Chenab and Jhelum ) नदियां जुड़ी हैं. लेकिन राज्य के तीन क्षेत्र ऐसे हैं, जिन्हें नदियों ने अलग किया है और यही राज्य की राजनीति की एक तस्वीर भी दिखाते हैं.
पूरे चुनावी मौसम ( Punjab Elections 2022 ) में आप मालवा, माझा और दोआब ( Malwa, Majha & Doaba ) के बारे में सुन रहे हैं. पंजाब का राजनीतिक चित्र दिखाने वाले 3 क्षेत्र, तीनों क्षेत्रों की अपनी एक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पहचान है.
पंजाब का माझा, रावी और ब्यास के बीच में पड़ता है. फिर शुरू होता है दोआब.... जिसका शाब्दिक मतलब है दो नदियों के बीच की भूमि. यह ब्यास से शुरू होकर सतलुज तक फैला हुआ है.
सतलुज से आगे मालवा का इलाका है, जो तीनों में सबसे बड़ा है. सबसे पहले मालवा क्षेत्र पर एक नज़र डालते हैं:
मालवा: राजनीतिक वर्चस्व
पंजाब की 117 विधानसभा सीटों में से 69 इसी इलाके से आती हैं और यह सबसे बड़ा इलाका है.
राज्य के दो मुख्यमंत्रियों को छोड़कर सभी इसी क्षेत्र से रहे हैं.
मौजूदा मुख्यमंत्री चन्नी, पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह और बादल, मालवा क्षेत्र से हैं.
2017: कांग्रेस ने 69 में से 40 सीटें जीतीं, AAP ने क्षेत्र में 18 सीटें जीतकर राज्य की राजनीति में धमाकेदार शुरुआत की.
पारंपरिक गढ़ में अकालियों ने अपनी जमीन खो दी, और मालवा में वे सिर्फ 8 सीटें ही जीत सके.
AAP ने 2014 में मालवा क्षेत्र की सभी 4 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी.
मालवा साल भर चलने वाले कृषि आंदोलन का केंद्र भी रहा.
पंजाब यूनिवर्सिटी की स्टडी के मुताबिक, विरोध प्रदर्शन के दौरान जान गंवाने वाले 700 किसानों में से लगभग 80 प्रतिशत मालवा क्षेत्र से ही थे.
यहां जमीन को लेकर असमानता है, बड़े जमींदार सैंकड़ों एकड़ जमीन लिए बैठे हैं जबकि ज्यादातर आबादी के पास छोटी जोत है.
माझा: जहां धर्म और राजनीति साथ हैं
माझा क्षेत्र, पाकिस्तान से लगा हुआ है, और यह रावी और ब्यास नदियों के बीच है.
माझा का अर्थ है 'बीच में'. विभाजन से पहले अविभाजित पंजाब का यह केंद्र हुआ करता था.
25 विधानसभा सीटों के साथ, माझा राज्य में "पंथ" या धार्मिक राजनीति का केंद्र है.
अमृतसर में स्वर्ण मंदिर और पाकिस्तान में दरबार साहिब को जोड़ने वाला करतारपुर कॉरिडोर यहीं है.
यह क्षेत्र परंपरागत तौर पर अकाली दल का गढ़ रहा है, लेकिन 2017 में हालात बदल गए
2017 में, कांग्रेस ने 22 सीटें जीतीं, और शिरोमणि अकाली दल सिर्फ 2 सीटें जीतकर हाशिए पर आ गई.
AAP अभी तक इस क्षेत्र में खाता नहीं खोल सकी है.
दोआब: दलित वोटबैंक
सतलुज और ब्यास के बीच स्थित दोआब, जिसका अर्थ होता है दो नदियों के बीच की भूमि.
अपनी उपजाऊ जमीन और एनआरआई का गढ़ होने के कारण यह राज्य का सबसे समृद्ध हिस्सा है.
23 विधानसभा सीटों के साथ यह पंजाब में राजनीतिक रूप से सबसे छोटा क्षेत्र है.
दलित वोटों के मामले में यह सबसे अहम क्षेत्र है. यहां की सीटों पर अनुसूचित जाति का वोट 25% से 75% तक का है.
पंजाब की कुल आबादी में दलितों की संख्या 32 फीसदी है, जो देश के किसी भी राज्य में सबसे ज्यादा है.
डेरों का केंद्र भी यहीं है, दलित पुनर्जागरण की शुरुआत भी यहीं से हुई.
यहां की अनुसूचित जाति की आबादी बेहतर शिक्षित, अधिक समृद्ध है और उसमें सामाजिक रूप से आपसी जुड़ाव है.
2017 में, कांग्रेस ने अपने इस गढ़ में 15 सीटें जीतीं, 5 सीटें अकाली दल को मिली थीं और दो सीटों पर AAP को जीत मिली थी.
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